पद्मश्री सम्मान: कर्पूरी ठाकुर के विशेष सहयोगी सुरेंद्र किशोर (वरिष्ठ पत्रकार) को मिलने के मायने
धारदार पत्रकारिता कर रहे सुरेंद्र किशोर अपनी सादगी, ईमानदारी और शुचिता के लिए जाने जाते हैं। सत्ता के प्रति उन्हें मोह कभी नहीं रहा और यही कारण है कि वे जननायक कर्पूरी ठाकुर, लोक नायक जयप्रकाश नारायण के भी लाड़ले रहे। लंबे अरसे से श्री सुरेंद्र किशोर जी को पढ़ता रहा हूं। निःसंदेह जिस सहजता से क्लिष्ट विषय पर भी जिस सहजता से वे लिख जाते हैं, वह अद्भुत, अद्वितीय है।
अनेक समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में अपनी लेखनी का लोहा मनवा चुके सुरेंद्र किशोर जी की मनी कंट्रोल, जागरण में स्तंभकार के रूप में विशिष्ट पहचान है। उनका आशीर्वाद है कि वीर छत्तीसगढ़ में भी उनके लेखों के प्रकाशन का सौभाग्य मुझे मिला।
पद्मश्री सम्मान पाने वाले लोगों के मध्य सुरेंद्र किशोर की चर्चा
क्यों…!
सुरेंद्र किशोर जी चर्चा विशेष तौर पर इसलिए हो रही है क्योंकि पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रमाणिकता के वे पर्याय बन चुके हैं। सच के साथ रहते हैं और विचारधारा के नाम पर वे अंधी पत्रकारिता नहीं करते। समृद्ध परिवार से आने वाले सुरेंद्र जी ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर बिना दहेज के विवाह किया था। विद्रोही सुपुत्र के विवाह में पिता शामिल नहीं हुए लेकिन महत्वपूर्ण बाराती थे कर्पूरी ठाकुर।

कर्पूरी ठाकुर के साथ सुरेंद्र किशोर के संबंधों को लेकर वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश कुमार सिंह लिखते हैं – “भारत रत्न से नवाजे गये कर्पूरी ठाकुर और सुरेंद्र किशोर के जुड़ाव की कहानी भी अनूठी है. जिन दिनों कर्पूरी ठाकुर बिहार के उपमुख्यमंत्री हुआ करते थे, उनके पास समाजवादी युवजन सभा से जुड़ा एक तेज- तर्रार युवक छात्रों की समस्या लेकर आया, पुरजोर ढंग से सिफारिश की और चला गया. छात्रों की समस्याओं को दूर करने के लिए आवेदन भी बढ़िया ढंग से लिखा हुआ, सुंदर हस्तलिपि में. जाने के बाद वहां बैठे किसी नेता ने कर्पूरी ठाकुर से कहा कि आपने इस युवा को ध्यान से सुना क्या, इसने लगातार दूसरों के बारे में बात की, अपने लिए तो एक शब्द नहीं बोला. अमूमन होता तो ये है कि लोग नेताओं के पास अपने फायदे, अपने काम के लिए ही ज्यादा पहुंचते हैं और ये युवा किसी और की लड़ाई लड़ने आया है, इसकी बातचीत में ईमानदारी झलकती है।”
कर्पूरी ठाकुर को ये बात समझ में आ गई और अपनी एक पीड़ा, समस्या की तरफ भी ध्यान गया। खुद तो राजनीति में ईमानदारी और शुचिता के आग्रही थे कर्पूरी ठाकुर, लेकिन कोई निजी सहायक ऐसा नहीं मिल रहा था, जो ईमानदार भी हो और काम करने में भी निपुण व तेज- तर्रार। अगर व्यक्ति ईमानदार होता है, तो अपनी ईमानदारी के बोझ तले दबकर ज्यादातर मामलों में अकर्मण्य या फिर उद्दंड हो जाता है, सहज नहीं रह पाता और अगर बंदा काम का हो, तो ज्यादातर मामलों में ईमानदार नहीं होता, चालू- पुर्जा होता है, तीन- तेरह करने में संकोच नहीं करता।
कर्पूरी ठाकुर ने इस युवा को अपने साथ जोड़ने की पहल की। अपने दो प्रमुख साथियों सभापति सिंह और रामबहादुर सिंह को इस युवक के पास भेजा। सुरेंद्र किशोर उस जमाने में छपरा के मशहूर राजेंद्र कॉलेज में पढ़ते थे और पढ़ाई के दौरान ही समाजवादी आंदोलन से जुड़ गये थे, छात्र संगठन- समाजवादी युवजन सभा में तेजी से उभर रहे थे लेकिन सुरेंद्र किशोर ने इन दोनों नेताओ की बात नहीं मानी, ये भी तब, जबकि मनुहार करने के लिए आए नेता सामान्य नहीं थे, बिहार की राजनीति में बड़े हस्ताक्षर थे, रामबहादुर सिंह तो बाद में केंद्रीय मंत्री भी रहे।आखिरकार कर्पूरी ठाकुर ने खुद सुरेंद्र किशोर को मनाने की सोची।

