सुरेंद्र किशोर : अखिल भारतीय सेवाओं में कर्तव्यनिष्ठ अफसरों की कमी से हैं ये समस्याएं…

ईडी निदेशक आई.आर.एस.अधिकारी संजय मिश्र और बिहार के अपर मुख्य सचिव के.के.पाठक चर्चा में रहे हैं।

चर्चा में इसलिए रहे क्योंकि ये कर्तव्यनिष्ठ अफसर हैं।वे भ्रष्टाचार और काहिली से समझौता नहीं करते।

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जिन अफसरों के आप नाम नहीं जानते,वे ‘‘यथास्थितिवादी’’ हैं।
संजय मिश्र से नरेंद्र मोदी सरकार बेहतर काम लेना चाहती थी,ले भी रही थी। और नीतीश कुमार सरकार के.के.पाठक से लाख बाहरी-भीतरी विरोध के बावजूद बेहतर काम अब भी ले रही है।
ईमानदार अफसर थर्मामीटर की तरह होते हंै।वे जहां जाते हैं भ्रष्टाचार व काहिली के बुखार की गंभीरता का तुरंत पता चल जाता है।
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संजय मिश्र का मामला दूसरा था।
केंद्रीय सेवाओं के अत्यंत ईमानदार अफसरों की भारी कमी के कारण केंद्र सरकार संजय मिश्र का कार्यकाल बढ़ाती जा रही थी तो सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप गलत नहीं था।पर इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका किन-किन नेताओं ने लगाई थी,वह गौर तलब है ?
वे थे–कांग्रेस,और तृणमूल कांग्रेस के नेतागण।
यह अकारण नहीं था।हालांकि केंद्र सरकार ने यह संकेत दे दिया है कि ‘‘बुखार नापने वाले’’ हमारे पास और भी अफसर उपलब्ध हैं।
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कई भाजपा विरोधी दलों के नेतागण आए दिन यह आरोप लगाते रहते हैं कि हमारे खिलाफ मोदी सरकार बदले की भावना से जांच एजेंसियों का लगातार दुरुपयोग करती रहती है।
पर,आरोप लगाने वाले इस शिकायत को लेकर कोर्ट नहीं जाते।क्योंकि वे जानते हैं कि उनके आरोपों में दम नहीं है।
वे नहीं जाते तो अब इन जांच एजेंसियों को ही कोर्ट जाकर ऐसे बयान देने वाले उन नेताओं के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करना चाहिए।
चाहे तो आरोपकर्ता यह साबित करें कि जांच एजेंसियां अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रही हैं।
या, फिर मानहानि के लिए अदालत आरोप लगाने वालों को कठोर सजा दे।
क्योंकि जांच एजेंसियों की प्रतिष्ठा का भी तो सवाल है।
नाहक आरोप लगाने से एजेंसियों पर से जन विश्वास डिगता है जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।
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सन 1996 से 1998 तक केंद्र सरकार के कैबिनेट सचिव रहे टी.एस.आर.सुब्रहमण्यम ने सन 2007 में लिखा था कि
‘‘मेरे विचार से राष्ट्र के इन तीनों स्तम्भों (कार्यपालिका,न्यायपालिका और विधायिका )का कामकाज अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा।’’
याद रहे कि सन 2007 के बाद से अब तक स्थिति और भी बिगड़ी है।इसे कैसे सुधारा जाए ?
के.के.पाठक और संजय मिश्र जैसे अफसरों की संख्या कैसे बढ़ाई जाए ?
यह यक्षप्रश्न है जिसके जवाब के साथ ही हमारे लोकतंत्र का भविष्य जुड़ा हुआ है।
अपवाद हर जगह हैं।पर, अपवादों से देश नहीं चलता।

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