ध्रुव कुमार : श्रीराम-श्रीकृष्ण में कौन सी ब्रम्हांडीय शक्तियां थी..?
मुझे निजी तौर पर वाल्मीकि जी के मर्यादा पुरुषोत्तम राम व माता सीता ज्यादा प्रिय है क्योंकि पहली बात तो यह कि वाल्मीकि रामायण ऐतिहासिक है जबकि तुलसीदासजी ने काव्य लिखा है।
दूसरी बात मैं बहुत ज्यादा भक्ति व पूजा पाठ करने वाला नही हूँ … हां ईश्वर को मानता हूं और उसके साकार और निराकार दोनों रूपों को मानता हूं।
मेरा मानना है कि उपनिषदों और वेदों में वर्णित निराकार ब्रह्म तो कण कण में ऊर्जा के रूप में फैला है …. जबकि साकार का अर्थ मात्र मानव रूप नही है बल्कि जितने भी अस्तित्व प्रधान तत्व है.. वे भी उसी ईश्वर का साकार रूप है।
यथा सूर्य ,चन्द्र , पृथ्वी ,तारे ,पेड़ पौधे और हम प्रत्येक जीव जंतु भी उसी ईश्वर के भाग है बस साकार रूप में है।

हम सबके अंदर उस महान ऊर्जा का अंश है … भगवान राम और कृष्ण में भी वही महान ऊर्जा थी .. लेकिन एक अंतर है, भगवान राम और कृष्ण में उस निराकार ब्रह्म की अनन्त ऊर्जा विद्धमान थी . इसीलिए वे ईश्वर हो गए।
वाल्मीकि रामायण में वर्णित प्रभु राम के शौर्य व पराक्रम से मैं स्वयं को जोड़ सकता हूँ … क्योंकि मुझे लगता है कि भगवान भी मेरे समान ही एक इंसान थे लेकिन अपने महान कर्मों से महामानव और ईश्वर हो गए …. इसके साथ ही वाल्मीकि रामायण में भगवान राम का शौर्य भी अद्भुत है।
वही तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में भगवान राम की कथा के माध्य्म से वेदों और उपनिषदों के दर्शन को बहुत सुगमता के माध्यम से बताया है …. इसीलिए तुलसीदास जी महान है …. दूसरा इस काव्य का अपना अलग ही रस है .. जो अद्भुत है … यदि आप रामचरितमानस को गहराई से पढ़ेंगे तो उसमें आपको वैदिक दर्शन मिलेगा।
इसके साथ ही तुलसीदास जी ने हिन्दी भाषा के अनुप्रास अलंकार का खुलकर उपयोग किया है और इसके अतिरिक्त पूरी कथा में यथानुसार श्रृंगार, शांत और वीर रस का भी प्रयोग किया है।
इसीलिए कथा में भी अंतर है … जैसे वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान राम विष्णु जी के आधे भाग से जन्मे थे जबकि तुलसीदास जी ने उन्हें परमब्रह्म बताया है ।।।
तुलसीदास के अनुसार अहिल्या पत्थर हो गई जो कि अलङ्कार है जबकि वाल्मीकि रामायण में उन्हें अदृश्य या निर्वासित बताया गया है और जब भगवान राम उनका निर्वासित जीवन समाप्त करते हैं तो वे भगवान राम का सम्मान करती है और भगवान राम व लक्ष्मण जी उनके चरण छूते हैं।
इसी प्रकार … सबरी प्रश्नग ,धनुष भंग प्रश्नग, केवट प्रश्नग में अंतर है।
अतः यदि मुझे काव्य रस लेना होता है व वैदिक ज्ञान को सरल भाषा में जानना होता है तो तुलसी बाबा को पढ़ता हूं।
…और यदि मर्यादा पुरुषोत्तम सूर्यवंशी राम व जनकनन्दनी माता सीता के बारे में जानना होता है तो वाल्मीकि रामायण व अद्भुत रामायण को पलटता हूँ।
जय जय सियाराम
