कौशल सिखौला : विपक्षी दलों में बिखराव.. एनडीए में वापसी…

ऐसा नहीं है कि विपक्षी दल ही साथ आने की कोशिश कर रहे हों , कुनबा एनडीए का भी जुड़ने लगा है !
पिछले लोकसभा चुनाव के बाद जो दल एक एक कर भाजपा से छिटक गए थे , उनकी वापसी भी एक एक कर हो सकती है !

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महाराष्ट्र के बाद कुछ विपक्षी दलों में भी बिखराव के संकेत हैं जो दल अलग होंगे , वे एनडीए का हिस्सा बन सकते हैं !
ऐसा प्रायः होता आया है राजनीति में !
जब भी कुछ दल सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाने का प्रयास करते हैं , तब उनके भीतर से टूटन होती आई है !
महाराष्ट्र में अजित पवार ने सनसनीखेज ट्रेलर दिखाकर विपक्षी एकता के मजबूत स्तंभ शरद पवार को पैदल कर दिया है !

Veerchhattisgarh

सुखवीर सिंह बादल और हरसिमरत कौर अपनी शाम वाली विदेशी फ्लाइट रद्दकर जिस तरह एकाएक प्रधानमंत्री से मिलने पहुंचे , वह काफी कुछ साफ करने वाला है । पूरी संभावना है कि जनसंघ के जमाने से पंजाब में भाजपा का नेचुरल पार्टनर रहा अकाली दल शीघ्र ही एनडीए का हिस्सा बनेगा और पूर्व की भांति भाजपा से गठजोड़ कर पंजाब में चुनाव लड़ेगा।

आंध्र में चंद्रबाबू नायडू ने एक बार फिर भाजपा से बात शुरू की है । जगन मोहन रेड्डी के पहले से ही मोदी से नजदीकी संबंध बने हुए हैं । इधर जितिनराम माझी और ओपप्रकाश राजभर एनडीए में आने की जुगत बैठा रहे हैं । बिहार में चिराग पासवान नेत्रित लोजपा की एनडीए में वापसी किसी भी समय संभव है । बिहार में ही नीतीश का कमजोर होता महल कभी भी ढह सकता है।

महाराष्ट्र के राजनैतिक हालात काफी दिलचस्प हो गए हैं । याद रहे कि बाल ठाकरे के जमाने से इस राज्य में शिवसेना भी भारतीय जनता पार्टी की नेचुरल पार्टनर हुआ करती थी । पिछला विधानसभा भी भाजपा और शिवसेना ने मिलकर लड़ा था । लेकिन संजय राऊत ने उद्धव ठाकरे के सीधे पन का लाभ उठाते हुए पहले ढाई साल सीएम पद पाने की शर्त रख दी । भाजपा आखिरी ढाई साल उद्धव को सीएम पद पर लाना चाहती थी।

भाजपा के पास यूपी का अनुभव था जब पार्टी ने ढाई ढाई साल का प्रयोग मायावती के साथ कर मायावती को पहले मुख्यमंत्री बना दिया था। लेकिन ढाई साल बीतने पर जब भाजपा की बारी आई तो मायावती ने कुर्सी छोड़ने से इंकार कर दिया था । संजय राऊत की मूर्खता का शिकार उद्धव हुए और कांग्रेस , एनसीपी के जाल में फंसकर शिंदे के हाथों सत्ता और पार्टी गंवा बैठे।

अब रायता ही बिखर गया है । वह दिन दूर नहीं जब पूरी शिवसेना एकनाथ शिंदे के साथ होगी और पूरी एनसीपी अजित पवार के पास । शरद पवार की बीमारी और बढ़ती उम्र उन्हें आराम करने की सलाह देती है । पर प्रत्येक व्यक्तिगत पार्टी की तरह वे समझते हैं कि पार्टी तो उनकी जागीर है । लालू , नीतीश , केजरीवाल , केसीआर , अखिलेश और मायावती भी ऐसा ही समझते हैं । उधर , केरल में सत्तारूढ़ मार्क्सवादियों से कांग्रेस तो पहले ही छत्तीस का आंकड़ा रखती है। अब मुस्लिम लीग ने भी माकपा द्वारा यूसीसी पर बुलाई बैठक का बहिष्कार कर दिया है।

जाहिर है विरोधी दलों का यूपीए बने न बने , भाजपा का एनडीए तो सशक्त बनने वाला है। चूंकि एनडीए में मोदी के पीएम पद को लेकर कोई झमेला नहीं है तो फिर मान लीजिए कि मोदी को पराजित करना उतना आसान नहीं होगा जितना नीतीश , ममता या लालू समझ रहे हैं । जहां तक राहुल गांधी का सवाल है , वे विचलित हैं । वे कभी मैकेनिक की दुकान खोलते हैं तो कभी मुहब्बत की दुकान । कभी ट्रक में सफर करते हैं तो कभी खेत में उतर धान की रोपाई करने लगते हैं । आम आदमी बनने की फिराक में वे भूल गए हैं कि उन्हें कोर्ट जाना है । कोर्ट जाइए राहुल साहब , वरना सारी कसरतें बेकार हो जाएंगी।

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