परख सक्सेना : इस एक चित्र में कैमरे का कमाल नहीं भारतीय राजनीति की दिशा – दशा बदलने वाली 3 यात्राओं का जीवंत इतिहास है..
23 जून 1953 को बीजेपी (जनसंघ) के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जेल मे ही जहर दे दिया गया था। उनका अपराध यह था कि वे कश्मीर मे तिरंगा फहरा रहे थे।
आज वही बीजेपी है, उसी का प्रधानमंत्री है और तिरंगा शान से लहरा रहा है।
गांधीजी के बाद आज़ाद भारत मे तीन ही वे यात्राएं है जिन्होंने राजनीति को बदल दिया, पहली वही जो श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी और अपना बलिदान दिया था।
इसी बलिदान की वजह से बीजेपी आज भी “जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है” का नारा देती है।
दूसरी यात्रा थी ज़ब लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या रथयात्रा की, उस समय मोदीजी आडवाणी के सारथी थे। आख़िरकार बाबरी मस्जिद ध्वस्त हुई और प्राण प्रतिष्ठा भी हुई।
तीसरी सबसे जरूरी यात्रा ज़ब बीजेपी ने श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने की ठान ली। तब भी मोदीजी ही रैली मे तिरंगा उठाये चल रहे थे, सेना के बीच से बीजेपी कार्यकर्ता निकले थे।
तीन बार गोलिया चली लेकिन यात्रा लाल चौक पर तिरंगा फहरा कर ही सम्पन्न हुई। पहली यात्रा वह थी जिसने बीजेपी को एक मुद्दा दिया और राजनीतिक लक्ष्य भी, दूसरी और तीसरी यात्रा ने बीजेपी को लाल किले तक पहुँचाया।
एक समय था जब 3% वोट मिले थे और 3 ही सांसद दिल्ली पहुँचे थे, आज कुनबा 240 का है और वोट 35% के पार है इसमें विपक्ष का ये कहना कि हमने कमजोर कर दिया ये दर्शाता है कि हैसियत तो इससे भी कही ज्यादा है।
लेकिन सच कहो तो ये होना था इसीलिए हुआ, मुखर्जी की मृत्यु के बाद बीजेपी ने कश्मीर का नारा भले ही दिया था मगर उसे जन स्वीकृति मिलना शेष थी। टैग था कि ये तो हिन्दुओ की पार्टी है।
1960 और 1970 का वो दौर समाज़वाद का युग था जो तकरीबन 30-40 साल चला और हमें चीन से पीछे ले गया। लालू का विकास नही सम्मान चाहिए जैसा वाहियाद नारा भी उसे जननेता बना गया, हमारी जनता इतनी अशिक्षित थी।
खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने बीजेपी की स्थापना के दिन गांधीवादी समाज़वाद की बात कह दीं थी, यदि आडवाणी और राजमाता सिंधिया ने विरोध ना किया होता तो आज भी कश्मीर मे पाकिस्तानी झंडे दिख रहे होते।
1984 के चुनाव मे बीजेपी को दो सीटें मिली, आडवाणी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस मे कहा कि ये लोकसभा नहीं शोकसभा की सीटें कांग्रेस को मिली है। लेकिन बीजेपी के अंदर ही अंदर वाजपेयी को जिम्मेदार ठहरा दिया गया था।
इसलिए आडवाणी अध्यक्ष बनाये गए, वाजपेयी को साइड मे करके राम मंदिर का मुद्दा उठाया और अगले पाँच साल मे दो सीटों से 85 सीटों का सफर तय हुआ। राम मंदिर पर्याप्त मुद्दा नहीं था ऐसे मे बीजेपी ने राष्ट्रवाद का मुद्दा पुनः उठाया।
मुखर्जी की मृत्यु के 40 साल बाद कश्मीर के लिये भी आंदोलन हुआ। तब से राम मंदिर और धारा 370 लक्ष्य पर थे और बारी बारी दोनों मुद्दे समाप्त भी हुए।
तब जाकर ये तस्वीर सामने आती है, इसलिए ये बस कैमरे का कमाल नहीं है इस प्रसन्नता के पीछे एक जीवंत इतिहास है।
✍️Parakh Saxena ✍️
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