प्रसिद्ध पातकी : विष्णु सहस्रनाम में ‘’ऊर्जित’’

सत्य की रक्षा के लिए जरूरी है ऊर्जित रहना

विष्णु सहस्रनाम में भगवान का एक मजेदार नाम आता है, ‘ऊर्जित’।
उपेन्द्रो वामन: प्राशु: अमोघ: शुचिरूर्जित:।
अतीन्द्र: संग्रह: सर्गो धृतात्मा नियमो यम:।।

Veerchhattisgarh

भगवान कैसे है? भगवान ऊर्जित हैं। अर्थात ऊर्जावान है। ऊर्जा से परिपूर्ण है। प्रश्न यह भी है कि भगवान की यह ऊर्जा किस काम में आती है? भगवान भला किसके लिए ऊर्जित रहते हैं।

भगवान ने गीता में अपना संकल्प बताया है। उनके हर अवतार के पीछे एक ही संकल्प है…”परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्”। भगवान अच्छे लोगों के कल्याण और दुष्टों के विनाश के लिए ऊर्जित रहते हैं। अपने भक्तों और साधु पुरूषों की रक्षा, उनके परित्राण, कल्याण के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। इन वर्गों के लिए उनका प्रेम किसी भौगोलिक सीमा या काल की सीमा को स्वीकार नहीं करता है। गजराज की पुकार सुनकर ऊर्जित भला एक क्षण के लिए मौन और निष्क्रिय नहीं रह सकते।

राजा भी ईश्वर का अंश होता है। राजा कहो, राज सत्ता कहो, सरकार कहो, बात अधिक दूर नहीं जाएगी। ईश्वर अंश होने के कारण राजसत्ता को ऊर्जित रहना ही पड़ेगा। साधु के परित्राण के लिए। साधु की परिभाषा केवल जटा-जूट वाले संन्यासी तक सीमित नहीं है। वह निर्दोष व्यक्ति जो अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकता और जिसे अपनी रक्षा की अपेक्षा राजसत्ता से हो, उसके प्राणों की रक्षा करना भी राजधर्म है। निर्दोषों पर अत्याचार करने वाले आततायियों को दंड और मजे का दंड देना भी राजधर्म है।

राजधर्म निभाने के लिए राजसत्ता को ऊर्जावान रहना होगा। अपनी सेनाओं को इतना सजग और सक्षम रखना पड़ेगा कि वह भले लोगों की रक्षा कर सके और दुष्टों को दंड दे सके। किसी भी राज्य के चहुंमुखी विकास के लिए यह अनिवार्य शर्त है।
अब यदि स्व के विकास की बात को समझा जाए तो भगवान कृष्ण ने मन को काबू में रखने के जो दो सूत्र ‘अभ्यास एवं वैराग्य’ बताये हैं, उनका पालन आप तब ही कर पाएंगे जब आप भीतर से ऊर्जावान होंगे। अपने लक्ष्य के लिए सदा ऊर्जित रहेंगे। आज के युग में ऊर्जित होकर रहने का महत्व तो मानों बढ़ता ही जा रहा है।

एकादशी की राम राम।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *