बिपिन पांडे : ndtv का पतन और पत्रकारिता-2

कल जब रवीश कुमार के इस्तीफ़े की खबर आई तो मैंने अपने दिल की बात ऐसे ही लिख मारी । दशक भर से रवीश कुमार के शोज देखता रहा हूँ, उनका लिखा पढ़ता रहा हूँ तो जो मन में आया उसे लिखना अच्छा लगा । मैं उस लिखे पर अब भी कायम हूँ पर हाँ यह तो कहा ही जा सकता है कि अपनी तमाम कुंठाओं और राजनैतिक प्रतिबद्धता के बावजूद रवीश कुमार एक शानदार प्रस्तोता थे/हैं और रहेंगे । जिन्हें थोड़ा भी सुबहा हो उन्हें उनका आज वाला वीडियो देखना चाहिए कि कैसे कठिन समय में भी अपनी बात को संयत तरीके से रखा जा सकता है।

रवीश कुमार के बारे में यह भी कहा जा सकता है कि वे लगातार आम आदमी की आवाज उठाने वाले पत्रकारों में से एक थे । पर इतना ही काफी नहीं होता ना ? किसी को लगातार पसंद करते रहने के लिए । शायद यही कारण था कि मैंने अपने विचार रखे कि क्यों ndtv और रवीश कुमार का शो देखना बंद कर दिया ।
अब एक-एक करके कुछ दोस्तों की आपत्तियों/सवालों/सुझावों पर आते हैं ।

1- रवीश कुमार के तमाम चाहने वाले जिस तरह से रुदन कर रहे हैं, सत्य दम घुटने की बात कर रहे हैं वह अब हास्यास्पद होने लगा है । ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि ऐसा करके ऐसे लोग तमाम अनचीन्हे, गुमनाम तरीके से जनता के हित में काम करने वाले पत्रकारों की मेहनत को नजरअंदाज कर रहे हैं । केवल रवीश कुमार को छोड़कर बाकी सबको गोदी मिडिया सिद्ध करने में भी यही समस्या है ।

2- रवीश कुमार और ndtv के चाहने वाले ऐसा प्रश्न खड़ा कर रहे हैं जैसा कभी बिनोवा भावे ने हूँ आफ्टर नेहरु ? इंदिरा समर्थकों ने हूँ आफ्टर इंदिरा और वर्तमान में परधान जी के समर्थक हूँ आफ्टर मोदी ? जैसे बेतुके सवाल करते रहते हैं । भारत जैसा देश अपनी मिट्टी से तमाम नेहरु, इंदिरा, मोदी और रवीश पैदा कर सकता है, करता रहा है । अभी ऐसी विकल्पहीनता की स्थिति तो नहीं ही आई है।

3- अगर आपने न्यूटन फिल्म का क्लाइमेक्स देखा होगा तो कुछ-कुछ अंदाजा लगा पा रहे होंगे कि दरअसल माजरा क्या है । फिल्म के क्लाइमेक्स में जब नायक को बेस्ट एम्प्लोई का एवार्ड मिलता है तो उसका दोस्त उससे सवाल करता है ऐसा कैसे हुआ ? नायक मुस्कुराते हुए जवाब देता है कि वह तो बस अपना काम कर रहा था । रवीश कुमार भी बस अपना काम कर रहे थे, वही काम जिसका वह पैसा लेते रहे हैं किसी सेठ से । तमाम जमीनी पत्रकारों की साल भर की कमाई जितना लगभग 1 महीने में । देश-दुनिया घूमने का, लोगों से मिलने का अवसर मिला सो अलग ही । ऐसे में महज नौकरी करते हुए अपना काम करते रहने को मसीहाई तो नहीं कह सकते ना ? तमाम लोग ऐसा काम कर रहे हैं बस उनके पीछे कोई प्रणय राय नहीं खड़ा । उन लोगों की सामाजिक-आर्थिक हैसियत रवीश कुमार जैसी नहीं है । ऐसे में जब वो अपने को छोड़कर सबको चोर बताते हैं, फासीवादी ताकतों से मिला बताते हैं तो दरअसल वे केवल और केवल अपने पहुँच और रसूख का फायदा उठाकर तमाम जमीनी लोगों के काम को नकारते हैं।

4- रवीश कुमार के अनुसार पत्रकार को हमेशा राजनीति से अलग रहकर अपना काम करते रहना चाहिए । पर वे ऐसा क्या खुद कर पा रहे थे । अखिलेश यादव के साथ मुस्कुराते हुए सेल्फी लेना, बहन मायावती जी के मंच पर कार्यकर्ता जैसा खड़ा होना तो कहीं से भी उनके निरपेक्ष होने को नहीं दर्शाते । राजनैतिक रूप से झुकाव रखना बुरी बात नहीं, बस निरपेक्ष होने का ढोंग करना बुरा होता है । रवीश कुमार सतत रूप से ऐसा करते रहे हैं ।

5- पिछले विधानसभा चुनावों में जब महाराष्ट्र में त्रिशंकु विधानसभा बनी और तिकड़म भिड़ाकर देवेन्द्र फडनवीस और अजीत पवार मिलकर सरकार बना लिए तो रवीश कुमार ने अजीत पवार के खिलाफ एक बड़ी पोस्ट लिखी थी । पर जैसे ही मामला पलटा । पवार साब महाविकास अघाड़ी में शामिल हुए , रवीश कुमार की पोस्ट अपने आप गायब हो गयी । उसके बाद से कई दिन तक अजित पवार पर उन्होंने कुछ लिखा ही नहीं ।

6- दुनिया भर से शुचिता का ध्यान रखने को कहने वाले रवीश कुमार, जैसे ही पैसों के हेराफरी के मामले में फँसते हैं वैसे ही अचानक से फासीवादी सरकार की आलोचना करने लगते हैं, प्रेस की स्वतन्त्रता पर हमला होना बताते हैं और स्क्रीन काली करने लगते हैं ।

7- रवीश कुमार जिन दिनों में अम्बानी, अडानी, बाबा रामदेव को पानी पी-पीकर कोस रहे थे उन दिनों उनकी सेलरी का एक हिस्सा अम्बानी के पैसे से आता था और कुछ हिस्सा बाबा रामदेव के दिए विज्ञापनों से भी । लैपटॉप पर पतंजली का लोगो लगाकर, बाबा रामदेव को कोसने जैसा कार्य भी रवीश कुमार ही किया करते थे ।

8- कई दोस्त आज दिन भर मीम बनाकर यह कह रहे हैं कि रवीश बिके नहीं, वरन इस्तीफा देकर बाहर आना उचित समझा । रवीश को दुनिया का दूसरा सबसे अमीर आदमी भी नहीं खरीद पाया । जबकि यह पूरा मामला ही कम्पनी ना चला पाने के कारण बढ़ते घाटे के चलते लों लिए जाने, उसे चुका ना पाने और फिर कम्पनी के बिक जाने का है । नाकारेपन को, अदूरदर्शिता को, एक तरफ़ा रिपोर्टिंग के चलते जनाधार खोते चले जाने को लोग क्रांति बता रहे हैं । जब एक तरफ़ा झुकाव होता है तो चाहे वह जी न्यूज हो या फिर ndtv, पतन होना ही होता है।

9- रवीश कुमार और उनके प्रणय राय के चैनल की यह गति होनी ही थी । इसमें बेवजह सरकार की भूमिका तलाशना, पूरे सत्ता पक्ष का डर जाना, साजिश रचकर चैनल खरीद लेने की बातें करना ठीक वैसा ही है जैसे 70-80 के दशक में देश में होने वाले हर छोटे-बड़े काण्ड में अमेरिकी और पाकिस्तानी जासूसी एजेंसियों की भूमिका देखी जाती थी ।
हालाँकि इतने के बाद भी मुझे पता है और इसबात का पूरा भरोसा है कि रवीश कुमार बेरोजगार नहीं रहेंगे, उन्हें आर्थिक समस्या नहीं आएगी, जिस अम्बानी को , औद्योगीकरण को वे कोसते रहे हैं, वही उनका सहारा बनेगा । youtube पर वे उससे ज्यादा लोगों तक पहुँच सकते हैं जितना की ndtv से पहुँचते थे । उनका दायरा बढ़ेगा । उन्हें बेहतर बोलना, लिखना आता है तो काम की कमी नहीं होगी । बाकी मुझे भी उनकी नौकरी जाने का थोड़ा गम है पर वे जिस रास्ते पर चले थे उसपर यह एक न एक दिन होना ही था । हाँ उन्हें मसीहा और एकमात्र सच्चा पत्रकार मानने में मुझे पहले भी समस्या थी, आज भी है, कल भी रहेगी…….

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