PM मोदी ने गैर ब्राम्हण को गुरु बनाने,महिलाओं को सशक्त करने वाले संत रामानुज की प्रतिमा का किया बसंत पंचमी के शुभ पर्व पर लोकार्पण
उनकी ही शिष्य परंपरा की 14वीं पीढ़ी में संत रामानंद हुए थे, जिनके शिष्य कबीर थे।
डॉक्टर आंबेडकर लिखते हैं, “तिरुवल्ली में एक दलित महिला के साथ शास्त्रार्थ के बाद उन्होंने उक्त महिला से कहा कि आप मेरे से ज्यादा ज्ञानी हैं। इसके बाद संत रामानुजाचार्य ने उक्त महिला को दीक्षा दी और उसकी मूर्ति बना कर मंदिर में स्थापित किया।
आज मां सरस्वती की आराधना के पावन पर्व, बसंत पंचमी का शुभ अवसर है। मां शारदा के विशेष कृपा अवतार श्री रामानुजाचार्य जी की प्रतिमा इस अवसर पर स्थापित हो रही है। मैं आप सभी को बसंत पंचमी की विशेष शुभकामनाएं देता हूं : PM मोदी
रामानुजाचार्य की 1000वीं जयंती उत्सव के मौके पर आज 2 फरवरी को समारोह का आयोजन किया गया। इसे ‘रामानुज सहस्राब्दी समारोहम’ नाम दिया गया है। इस मौके पर रामानुजाचार्य की दो मूर्ति का अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया। 216 फीट ऊँची मूर्ति सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल और जस्ते की बनी हुई है।
इस प्रतिमा को ‘पंचलौह’ (सोना, चाँदी, ताम्बा, पीतल और जस्ता) से तैयार किया गया है। धातुओं से बनी विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमाओं में इसका स्थान होगा। 54 फिट ऊँचे ‘भद्रा वेदी’ को इसका आधार बनाया गया है। उसके अंदर एक वैदिक डिजिटल लाइब्रेरी और रिसर्च सेंटर भी है। इसमें प्राचीन सनातन ग्रंथों से लेकर रामानुजाचार्य के जीवन से सम्बंधित दस्तावेज होंगे।
संत रामानुजाचार्य का जीवनकाल 120 वर्षों का था। उन्होंने 1137 ईस्वी में अपने शरीर का त्याग किया था। वैष्णव समाज के प्रमुख संतों में उनका नाम लिया जाता है। 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने विद्वान यादव प्रकाश को कांची में अपना गुरु बनाया था। हालाँकि, वो अपने गुरु के ‘अद्वैत वेदांत’ के सिद्धांतों से सहमत नहीं थे। उन्होंने तमिल के ‘अलवर’ परंपरा के संतों नाथमुनि और यमुनाचार्य के नक्शेकदम पर चलने का निर्णय लिया। उन्हें ‘विशिष्ट अद्वैत’ सिद्धांत का जनक माना जाता है।
रामानुजाचार्य ने जाति विभेद के खिलाफ अभियान चलाया और महिलाओं को सशक्त करने के लिए जीवन भर परिश्रम किया। इस्लामी आक्रांता जब भारत में पाँव पसारने के लिए बेताब थे, ऐसे समय में उन्होंने भारत की जनता के भीतर की धार्मिक भावनाओं को और प्रबल किया। उन्होंने हर वर्ग के लोगों के बीच ‘मुक्ति और मोक्ष’ के मंत्रों के बारे में सार्वजनिक रूप से बताया। उनका कहना था कि ये चीजें गोपनीय नहीं रहनी चाहिए, सभी वर्गों के लोगों को इसका लाभ मिलना चाहिए।
खुद बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने लिखा है कि हिन्दू धर्म में समता की दिशा में संत रामानुजाचार्य ने महत्वपूर्ण कार्य किए और उन्हें लागू करने का प्रयास भी किया। उनकी 1000वीं जयंती पर डाक टिकट जारी करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका जिक्र भी किया था।
डॉक्टर आंबेडकर लिखते हैं, “तिरुवल्ली में एक दलित महिला के साथ शास्त्रार्थ के बाद उन्होंने उक्त महिला से कहा कि आप मेरे से ज्यादा ज्ञानी हैं। इसके बाद संत रामानुजाचार्य ने उक्त महिला को दीक्षा दी और उसकी मूर्ति बना कर मंदिर में स्थापित किया। उन्होंने धनुर्दास नाम के पिछड़े समाज के व्यक्ति को अपना शिष्य बनाया। नदी में स्नान करने के बाद वो अपने इसी शिष्य के माध्यम से वापस आते थे।” अब समता का सन्देश देने वाले रामानुजाचार्य की प्रतिमा पूरे विश्व को उनके सिद्धांतों का साक्षात्कार करने की प्रेरणा देगी।
रामानुजाचार्य ने वेदों की परंपरा को भक्ति से जोड़ा। जगद्गुरु शंकराचार्य के बाद उनका ही नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उन्होंने भक्ति आंदोलन से पिछड़े समाज को जोड़ कर कुलीन वैदिक आंदोलन के साथ उसके सेतु का निर्माण किया।
यामुनाचार्य की रिक्त गद्दी पर उन्हें ही स्थान मिला। भगवान रंगनाथ के मंदिर के प्रबंधन की पूरी जिम्मेदारी उनके कन्धों पर आ गई, जिसे उन्होंने अच्छी तरह सँभाला। मंदिर की पूरी आय को वो मंदिर के लिए ही खर्च करते थे और खुद भिक्षा से जीवन व्यतीत करते थे। उन्हें कुछ रहस्य मंत्र इस शर्त पर मिले थे कि वो किसी को बताएँगे नहीं, लेकिन एक सभा में उन्होंने ये मंत्र जनता के लिए सार्वजनिक कर दिया।
उन्होंने कहा कि जब इस मंत्र से स्वर्ग प्राप्त होता है तो ये सभी को सुनना चाहिए। वो इसके लिए संतों द्वारा दंड के लिए तैयार हो गए। उन्होंने वेदांत सूत्रों पर ‘श्री भाष्य’ की रचना की और अपने एक शिष्य कुरेश के बेटे का नाम पराशर रखा। उन्होंने भक्ति को मुक्ति का साधन बताते हुए इसे ज्ञान के ऊपर तरजीह दिया। उन्होंने भारत यात्रा कर के कई विद्वानों से सशस्त्र किया। जब वो श्रीरंगम वापस लौटे, तब तक भारत के कई हिस्सों में उनके असंख्य शिष्य हो गए थे।
उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता पर ही भाष्य लिखा। ‘वेदांत सार’ में उन्होंने अपने सिद्धांतों को आम लोगों को सरल भाषा में समझाया। उन्होंने ईश्वर को सगुण माना और ये भी कहा कि उसमें कोई अवगुण नहीं है। उन्होंने ईश्वर को श्रेष्ठों से भी श्रेष्ठ करार दिया। उन्होंने कहा कि दोषहीन, शुद्ध, सर्वश्रेष्ठ, निर्मल और एकरूप ब्रह्म को जानने वाले को ही सच्चा ज्ञानी बताया। उन्होंने शंकराचार्य के कई सिद्धांतों का खंडन कर के अपने सिद्धांत भी दिए। सनातन परंपरा में ऐसा होता रहा है।
उनकी ही शिष्य परंपरा की 14वीं पीढ़ी में संत रामानंद हुए थे, जिनके शिष्य कबीर थे। रामानुज तमिल ब्राह्मण समुदाय से ताल्लुक रखते थे। कांचीपुरम के वरदराज पेरुमल मंदिर में वो वर्षों तक पुजारी रहे। वो जीवन भर वैष्णव समाज के स्तंभ रहे।
