परख सक्सेना : ये हैं 21वी सदी के बिग थ्री
ये 21वी सदी का बिग थ्री है, ऐसा बिग थ्री 1945 मे भी हुआ था ज़ब अमेरिकी राष्ट्रपति रुजबेल्ट, सोवियत तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विन्सटन चर्चिल मिले थे।
वो दूसरे विश्वयुद्ध का समय था और उस समय मीटिंग रूस के यालटा मे हुई थी, तब विन्सटन चर्चिल ने जोसेफ़ स्टालिन की कार मे बैठने से मना कर दिया था।
यहाँ दृश्य कुछ और है मोदी और पुतिन एक ही कार मे बैठकर मीटिंग के लिये निकले। ये बहुत बड़ा रिस्क है, क्योंकि दोनों ही के कई दुश्मन दुनिया मे घूम रहे है।
भले ही दिल्ली और मोस्को से आया सुरक्षा दल साथ हो मगर चीन की सेना पर ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है। नेताओं के साथ यही दिक्कत है, ये पलक झपकते फैसले लेते है और फिर सुरक्षा बलो का काम बढ़ जाता है।
फायदा बस ये है कि बडे काम जल्दी हो जाते है, दिल्ली मे ऋषि सुनक और जॉर्जिया मेलोनी की मुलाक़ात इसका बेहतरीन उदाहरण है।
विषय पर चले तो अब वो समय आ गया है जब भावनाओं मे बहे बिना निर्णय लिये जाए और थोड़ा जल्दी लिये जाए। रूस चीन और भारत यदि मिल जाए तो एक मिनी वर्ल्ड हो सकते है, रूस के पास प्राकृतिक संसाधन है तो भारत और चीन के पास बाजार है।
ये हम तीनो को पता है कि हमें एक दूसरे से कोई प्यार नहीं है, आज नहीं तो कल चीन का दोनों ही के साथ विवाद बढेगा। बहुत कम उम्मीद लग रही है कि अब युद्ध होगा, इतिहास मे शक्तिशाली देश एक दूसरे से सीधे बहुत कम लड़े है।
ये कम से कम किया जा सकता है कि चूंकि सीमा आपस मे मिलती है तो एक ट्रेड रूट बन जाए, यदि ऐसा हो जाए तो भारत की लॉटरी लग जायेगी हमें सिल्क रूट का विकल्प मिल जाएगा।
दूसरी तरफ चीन को आयात को लेकर अपनी शर्ते कमजोर करनी होंगी, दरसल चीन की नीतियाँ ही ऐसी है कि आयात कम हो और निर्यात ज्यादा। फिलहाल उसने सिर्फ भारत के लिये नरम की है इसलिए आपको चीन के प्रति निर्यात मे बढ़ोत्तरी देखने को मिली।
जिनपिंग का यह कह देना कि भारत और चीन दो प्राचीन सभ्यता है ये भारत के उन कम्युनिस्टो के मुँह पर तमाचा है जो कहते है मुगल्स मेड इंडिया रीच। जिनपिंग ने ये हाथी और ड्रीगन वाली लाइन अमेरिका को सुनाने के लिये बोली है।
जिनपिंग की किस्मत भी कमाल है, ज़ब सारे रास्ते बंद हो गए थे तब दरवाजा खुला भी तो ऐसा कि वो भारत मिला जिसकी उन्होंने उम्मीद भी छोड़ दी होंगी। यही किस्मत मोदीजी की चीन के संदर्भ मे है।
लेकिन अब बस ये ही मौका है, डोनाल्ड ट्रम्प की ख़राब गेंदबाजी ने वर्ल्ड ऑर्डर बदलने के लिये दस्तक दी है। अब आशा है ये बिग थ्री पूरा फायदा उठा ले, एक ही बात खल रही है कि भारत एक अकेला लोकतंत्र फसा हुआ है।
इसलिए मुझे ब्रिक्स, बिग थ्री की तुलना मे थोड़ा ज्यादा अच्छा लगता है। ब्राजील और साउथ अफ्रीका का लोकतंत्र थोड़ी हिम्मत दे देता है अन्यथा ऐसे वैश्विक गठबंधन हमेंशा सत्ताधारी के इर्द गिर्द रह जाते है।
✍️परख सक्सेना
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