देवांशु झा : भारत को नरेन्द्र मोदी की आवश्यकता नहीं है
सत्य कहूं तो मुझे अब भारत के इतिहास का गौरव गान महाप्रलाप और व्यर्थ लगता है। एक हारा हुआ पराजित देश भिखमंगे की तरह अपने भूत का खंडहर दिखलाता रहता है। जो देश अपने उज्ज्वल, धवल वर्तमान की रक्षा नहीं कर सकता, जो किसी तपस्वी राष्ट्रनायक को वर्तमान में पराजित कर उसका सारा विश्वास तोड़ डालता है, उसे घुटनों के बल लाकर गठबंधन का जुगाड़ करने को विवश कर देता है–वह इतिहास का गायन कर क्या कर लेगा। इतिहास तो गया। वर्तमान जाने वाला है और भविष्य तो महांधकारमय हो सकता है। आप लाख बहाने बना लीजिए। लाख समीकरण खोज निकालिए, मैं केवल इतना ही जानता हूॅं कि आप ने उत्तरप्रदेश में सब लुटा दिया। अयोध्या हम हार गए। इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है। मैं चुनाव प्रक्रिया को ध्यान से देखता रहा हूं। अयोध्या से जिन लल्लू सिंह को आप हटाने की बात कर रहे थे, उनको हटा लेते तो उनके समाज से धमकियों का दौर शुरू हो जाता। बृजभूषण शरण सिंह का केस देख लीजिए। भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो डर कर बेटे को देना पड़ा। अन्यथा तलवारें निकलतीं। पूरे चुनाव में ब्लैकमेलिंग होती रही।
वाराणसी से पंडों, फर्जी शंकराचार्यों ने दुष्प्रचार कर मोदीजी को मंदिर ध्वंसक सिद्ध कर दिया। अब एक नया आरोप लग रहा, चिंदी चोर गुज्जू! आश्चर्य है कि वही गुज्जू समाज निरंतर बिना डिगे भाजपा को वोट करता रहा है। उसे कोई प्रलोभन नहीं डिगा सकता। कोई खटाखट योजना उन्हें कमजोर न कर सकी। आप ने उसके सामने घुटने टेके लेकिन चिंदी चोर की उपाधि गुजरातियों को दे दी। वाह री अकड़! वाराणसी में राय साहब को उनके जातभाइयों ने एकतरफा वोट दिया। वाराणसी और अयोध्या के लिए जो नरेन्द्र मोदी ने किया, यह उसका प्रतिफल है। वाह रे भारत महान! काशी जैसी नगरी कहां मिलती है!
मैं दो-चार बाबाओं को देख रहा। लंबे समय से देख-देखकर विस्मय से भर उठता हूॅं। ये निरंतर विष वमन करते रहते हैं। नरेन्द्र मोदी जैसे तपस्वी और एक मरे हुए देश को स्वाभिमान के धरातल पर खड़ा करने वाले अक्खड़ पुरुषार्थी के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करने वाले और लगातार बड़ी संख्या में अपने चेलेचपाटियों की बुद्धि को भ्रष्ट करने वाले ये बाबा देश के शत्रु हैं। इनसे बड़ा भारत द्रोही दूसरा नहीं। राम मंदिर निर्माण से लेकर प्राण प्रतिष्ठा तक ये हर दिन गाली गलौज करते रहे। एक बीमार मानसिकता का महाकुंठित घृणित जातिवादी वैदिक काल के सपने दिखला रहा। हास्यास्पद! मूर्खता की पराकाष्ठा! जिसे वर्तमान की बहती हुई नदी में तैरना नहीं आता, वह उसके उद्गम का खोजी बन रहा। हाय री अकड़!
मेरा बड़ा स्पष्ट मत है। भारतीय राजनीति से ब्राह्मण, ठाकुर और भूमिहार जाति को कभी प्रतिनिधित्व नहीं मिलना चाहिए। अब इनमें कुछ शेष नहीं रहा। केवल अकड़ और जातिवादिता है। पिछड़ी जातियों से ही भारत का उद्धार होगा। मैं देखता हूॅं कि बड़ी संख्या में राजपूत ब्राह्मण ओर भूमिहार नरेन्द्र मोदी को गाली देते हैं। उन्हें धूर्त शातिर गुज्जू कहते हैं।उनकी जाति पर टिप्पणी कर मलिन करने का षड़यंत्र रचते रहते हैं। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण और अनर्थकारी है, इसकी कल्पना वे नहीं कर पाते। पिछले दस वर्षों में एक व्यक्ति ने लगभग अकेले अपनी जिजीविषा और स्वप्नदर्शी आंखों से भारत को पराधीनता, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, अस्थिरता, जड़ता से मुक्त कराया। उसके लिए वह निरंतर प्रयासरत हैं लेकिन लोग अपनी जातिवादी अकड़ में उसे गाली देते हैं और तिकड़मी कहते हैं। दुर्भाग्य है इस देश का…
आप ओबीसी और दलितों को लाख गरिया लें परन्तु उन्होंने बहुत कुछ सहकर बहुत शीघ्रता से स्वयं को सनातन की मुख्य धारा से जोड़ा है। आज अगर वे किसी प्रलोभन अथवा जात-पात के चक्कर में भटके हैं तो सवर्णों ने अपने स्वर्णिम इतिहास से क्या दे दिया? वे तो उनसे भी अधिक शोषक,स्वार्थी, विध्वंसकारी, घोर जातिवादी निकले। उत्तर से दक्षिण तक यही पैटर्न है। जिस अन्नामलाई ने अपना हाड़ जलाया उसे चोल साम्राज्य के कथित वंशजों ने उसी घटिया डीएमके के आगे मलिन कर डाला।
यह देश किसी नरेन्द्र मोदी को डिजर्व नहीं करता! कभी नहीं…! इस देश के लिए कांग्रेस और उसकी समानधर्मा पार्टियों के नेता ही ठीक हैं।