प्राण ऊर्जा की शक्ति से आशीर्वाद या श्राप फलित होते हैं
शरीर निर्माण तो जारी रहता है पर उस शरीर मे धड़कन लगभग 2 से 3 महीने के बाद ही शुरू होती है । यहां आधुनिक विज्ञान बिलकुल खामोश हो जाता है कि ऐसा कैसे होता है । आखिर वो कौन सा तत्व है जिसके शरीर मे प्रविष्ट होते ही धड़कन शुरू हो जाती है ।
ब्रह्मपदार्थ #प्राणऊर्जा
आईये समझने की कोशिश करते है कि जगन्नाथ पुरी की मूर्तियों मे विद्यमान ब्रह्म पदार्थ , आत्म पदार्थ या वो चेतन पदार्थ आखिर क्या है जिसको हर 12वर्षो के पश्चात मूर्तियों को बदलते समय एक विधान व्दारा पुरानी से नई मूर्तियों मे स्थानांतरित किया जाता है । इस संदर्भ मे अगर हम पौराणिक मान्यताओं की माने तो भगवान कृष्ण के अंतिम संस्कार को एक बहेलिए के व्दारा संपन्न किया गया जिसने अज्ञानता वश मृग समझकर उनके पैरों मे अपना तीर मार दिया था । तो वहाँ किसी और के उपस्थित न होने के कारण उसे ही अंतिम संस्कार करना पडा और अंतिम संस्कार मे कृष्ण का पूरा पार्थिव शरीर तो जल गया पर उस शरीर से एक ऐसा पदार्थ भी प्राप्त हुआ जो बिना जले ही रह गया ।
बहेलिए ने उसे अपने पास रख लिया और फिर उसे नदी मे प्रवाहित किया जो कालांतर मे कई हाथों से गुजरता हुआ पुरी के राजा को मिला और उन्होंने ही उसे पुरी की मूर्तियों मे प्रतिष्ठित करा दिया । वो पदार्थ कितना गुप्त है कि पुरी के पुजारी को भी कभी नहीं दिखाया जाता और मूर्तियों के अदला बदली के समय उनके भी आंखो पे पट्टी बांधकर बिलकुल अंधेरा कर दिया जाता है यहाँ तक कि उस समय पूरे पुरी की न सिर्फ बिजली बंद कर दी जाती है अपितु किसी के घर पे एक चिराग भी नहीं जलता । आप जो पुरी के मंदिर के विषय मे तमाम आश्चर्यजनक बांते सुनते है ये उसी ब्रह्म पदार्थ का ही चमत्कार है और उसके चमत्कारों की व्याख्या अनंत है ।
आईये अब जरा उस ब्रह्म पदार्थ को आधुनिक विज्ञान के जरिये समझने की कोशिश करते है कि वो आखिर क्या हो सकता है ।
आप सबको पता होगा कि माँ के गर्भ मे पिता के शुक्राणुओं के अंड निषेचन से शरीर का निर्माण शुरू हो जाता है ( यहाँ ध्यान रखियेगा कि भगवान जगन्नाथ की नवकलेवर मे नई मूर्तियों का निर्माण हो चुका है अब ब्रह्म पदार्थ की प्रक्रिया होनी है ) परंतु शरीर निर्माण तो जारी रहता है पर उस शरीर मे धड़कन लगभग 2 से 3 महीने के बाद ही शुरू होती है । यहां आधुनिक विज्ञान बिलकुल खामोश हो जाता है कि ऐसा कैसे होता है ।
आखिर वो कौन सा तत्व है जिसके शरीर मे प्रविष्ट होते ही धड़कन शुरू हो जाती है । अब शरीर निर्माण के साथ ही साथ धड़कन शुरू भी होगी इसकी कोई गारंटी नहीं क्योंकि हम कई बार देखते है कि गर्भ मे ही धड़कन शुरू न होने के कारण नवजात शरीर को बाहर करना पडता है या गर्भपात करना आवश्यक हो जाता है ।
तो वो कौन सा तत्व है जिसके शरीर मे प्रविष्ट होते ही बेजान शरीर धडकनें लगता है इसके बारे मे विज्ञान आज तक न जान सका । जबकि हमारे ॠषियो ने उसे बहुत पहले ही खोज लिया था और उसे सनातन मे प्राण ऊर्जा के नाम से संबोधित किया था ।
प्राण ऊर्जा ही वो ऊर्जा है जो इस नश्वर शरीर को जीवंतता प्रदान करती है । जो जड शरीर मे चेतना का विस्तार करती है । तो प्राण ऊर्जा मूल है और असीमित भी । अब इस ऊर्जा के प्रयोग की क्षमता उस शरीर के ऊपर है कि किस सीमा तक और कितनी कर पाता है । अब एक बात यहाँ और समझनी होगी कि प्राण ऊर्जा सृष्टि की सृजनात्मक ऊर्जा का ही एक अंश है ।
अब अगर हम शरीर को एक ट्रांसफार्मर मान ले और प्राण ऊर्जा को विद्युत तो ये शरीर के ऊपर है कि वो 220 वोल्ट तक की ऊर्जा ग्रहण कर सकता है या 21हजार तक की । इसीलिए उस प्राण ऊर्जा का अधिकतम उपयोग कैसे संभव हो इसके लिए सनातन मे योग नियम तप इत्यादि की व्यवस्था बनाई गई है । अब इस ऊर्जा से सिर्फ शरीर को जीवंतता ही नहीं मिलती बल्कि इसके आश्चर्यजनक और अचंभित करने वाले परिणाम भी देखने को मिलते है ।
हमारे यहाँ तो योगियों ने इस ऊर्जा को संकलित करके जीवित रहते ही शरीर से बाहर निकल जाने तक की व्यवस्था को खोजा है । और जब मर्जी पुनः शरीर मे प्रवेश के मार्ग को भी । जिसे हम परकाया प्रवेश के नाम से जानते है । आपने सुना जरूर होगा हिमालय की गुफाओं मे हजारों सालों से तपस्या रत उन योगियों के बारे मे जिनके तपस्या के मार्ग मे ये शरीर कभी बाधा नहीं रहा । वो इसी प्राण ऊर्जा के चमत्कार से संभव है या फिर उनके व्दारा किसी को आशिर्वाद या श्राप देने पर तुरंत फलित हो जाने के बारे मे ।
तो आप सोचिये जिस कृष्ण को पूर्णावतार माना गया उनकी ऊर्जा का पारावार क्या रहा होगा । उसकी पराकाष्ठा क्या रही होगी और वही आज रहस्यमय तरीके से पुरी की मूर्तियों और मंदिरों मे हमे किंचित मात्र दृष्टिगोचर होती है । वो जो खंभे को चीरकर नरसिंह के निकलने की बात हम सुनते आये है वो अनर्गल नहीं क्योकि सृष्टि को संचालित करने वाली वो ऊर्जा हर जगह हर कण मे विद्यमान है । बस जरूरत है उस ऊर्जा को पहचानने और उसके लाभकारी प्रयोग की तरफ अग्रसर होने की ।
बाकी हरि हरि अनंत हरि कथा अनंता ।🙏🙏🙏
✍️ वैदिक वॉरियर के सम्मानीय पाठक अमरदीप श्रीवास्तव जी द्वारा प्रेषित ब्रह्म पदार्थ की उनके शब्दों में व्याख्या🙏
—#राज_सिंह—