देवेन्द्र सिकरवार : राष्ट्रबोध से वंचित नई पीढ़ी, शिक्षा व्यवस्था की असफलता और मौन शिक्षक
जब मैं पिछले वर्ष नवदुर्गा उत्सव के समय कोलकाता गया था तो दुर्गा पंडालो के बाहर माँस-मछली के व्यंजनों के स्टॉल्स देखकर मैंने सोचा कि ऐसा कोई स्टॉल हिंदी पट्टी के नवदुर्गा पंडाल के बाहर लगाने की सोच भी नहीं सकता।

लेकिन मैं एक आह्लाद भाव से मुस्कुराया कि यही तो हिंदुत्व है जो देशकाल के अनुरूप अपना पृथक-पृथक रूप धारण करता है लेकिन यही ‘हिंदुत्व’ एकमात्र भाव भी है जिसने हमें हजारों वर्षों से एक राष्ट्र बनाकर रखा हुआ है।
लेकिन उत्तराखंड के देहरादून में उत्तरपूर्व के छात्र के साथ हुई घटना जितनी दुःखद है, उससे कहीं ज्यादा इस राष्ट्र भाव के प्रति उत्तर पूर्व में विरोध पैदा करने वाली है।
उत्तरपूर्व में यह घटना जितना आक्रोश पैदा कर रही है और कितनी घातक है उसका अंदाजा उन मूर्ख छात्रों को छोड़िये फेसबुक के तथाकथित राष्ट्रवादियों को भी नहीं है क्योंकि स्वयं को राष्ट्रवादी, हिंदुत्ववादी कहने वाले 99% लोग अपने देश के इतिहास को छोड़िये, भूगोल व संस्कृति से भी पूर्णतः अपरिचित हैं और अपनी मूर्खता में कभी तो सभी सिखों को कुछ कनाडाई तत्वों के आधार पर खालिस्तानी का लेवल लगा देते हैं तो कभी पेरियारवादी दलितों के कारण बुद्ध को गालियां देने लगते हैं।
इसी तरह कई बार ऐसे मूर्ख छात्र ही नहीं बल्कि सयाने हिंदुत्ववादी गोमांस प्रकरण पर उत्तरपूर्व के भाई-बहनों को किसी न किसी प्रकार अहिंदू सिद्ध करने लगते हैं तो इन मूर्ख छात्रों को क्या कहा जाये।
मेरी अपनी क्लास में कुछ बच्चों ने नॉर्थ-ईस्ट के बच्चों को ‘चीनी’ कहकर पुकारा और मैंने उसी पल उन छात्रों को न केवल बुरी तरह लताड़ा बल्कि उनसे प्रश्न किया कि अगर ये तुम्हें बांग्लादेशी या पाकिस्तानी कहकर बुलाएं तो तुम्हें कैसा लगेगा जबकि तुम्हारी निष्ठा भारत में है।
बच्चों ने सिर झुकाकर उन बच्चों से माफी मांगी और मैंने उन्हें उत्तरपूर्व के लोगों विशेषतः अरुणाचल के नागरिकों द्वारा चीन के विरुद्ध किये गये संघर्ष के विषय में, शंकर देव द्वारा प्रचारित वैष्णव धर्म और लचित बारफुकन के विषय में बताया।
इसके बाद मैं ध्यान रखता आया हूँ कि हर क्लास में अगर नॉर्थ ईस्ट का कोई बच्चा होता है तो पहले दिन से उन्हें इस विषय में चेतावनी देकर नॉर्थ ईस्ट के इतिहास व महापुरुषों के विषय में जानकारी देता हूँ।
इसलिए देहरादून में हुई इस घटना का असली दोषी, मैं शिक्षकों को मानता हुँ क्योंकि सरकारी हों या प्रायवेट, कॉलेज हों या कोचिंग, अधिकांश सरकारी शिक्षकों को हाजिरी लगाने और प्रायवेट संस्थानों के शिक्षकों को सिलेबस पूरा कराने के अलावा छात्रों से कोई मतलब नहीं क्योंकि उन्हें स्वयं ही अपने राष्ट्र के भूगोल और हिंदुत्व के इतिहास का ज्ञान नहीं है।
जिन्हें ज्ञान है भी वह डरते हैं कि कहीं किसी सैक्युलर व मुस्लिम विद्यार्थी या उसके माता-पिता की क्लास में देशभक्ति व संस्कृति ज्ञान को लेकर ‘साम्प्रदायिकता’ की शिकायत पर मैंनेजमेंट उन्हें ‘कॉल’ न कर ले।
अब अगर शिक्षक भी सिर्फ सिलेबस, सेलरी और फीडबैक के अलावा कुछ सोचेगा नहीं तो फिर कौन बतायेगा छात्रों को राष्ट्र व हिंदुत्व पर?
उत्तरपूर्व के अपने भाइयों से बस इतना कहूगा कि मैं शिक्षकों की ओर से हाथ जोड़कर क्षमा मांगता हूँ कि हम अपने उन मूर्ख और बिगडैल छात्रों को यह नहीं बता पाए कि आप उतने ही भारतीय हो जितने हम।
बच्चे को शोकपूर्ण श्रद्धांजलि और पीड़ित परिवार को हार्दिक संवेदनाएं।
-चित्र इंटरनेट से साभार।


