सर्वेश तिवारी श्रीमुख : दीया हमारा, बाती हमारी, पर्व हमारा, तेल हमारा… पर…

दीया हमारा, बाती हमारी, पर्व हमारा, तेल हमारा… पर हर बार जल जाती है इन जलनखोरों की! वामी पत्रकारों को देख कर लगता है जैसे ये जलने के लिए ही आये हैं।

Veerchhattisgarh

 

अपने ग्रुप्स में शेयर कीजिए।

पैसा बर्बाद हो गया, गरीब को क्यों नहीं दे दिया, तेल जल गया… अरे तेल से ज्यादा आपका कुछ और जल रहा है भाई! यदि एक दीपक पर 20 रुपये भी खर्च हुए हैं तो अधिकतम साढ़े चार करोड़ रुपये होते हैं। इतने खर्चे पर छाती पीटने वाले अनेक राजनेता केवल चार महीने बाद के चुनाव में एक एक सीट के लिए इससे अधिक खर्चा करेंगे। और तब उन्हें शर्म नहीं आएगी…
यदि कोई व्यक्ति अयोध्या के घाटों पर सजे दीयों से तेल बटोरता है, तो यह उसकी अतिरिक्त कमाई है। उसके लिए यह तेल बटोरने का उत्सव है। जब यह उत्सव नहीं होता था, तब भी वे दरिद्र ही होते थे। हाँ, तब उन्हें साल भर की आवश्यकता भर का तेल नहीं मिलता था।


संसार की कोई भी व्यवस्था दरिद्रता को समाप्त नहीं कर सकती। दरिद्र सदैव रहे हैं और रहेंगे। अधिकतम बदलाव यह हो सकता है कि जो आज दरिद्र है वह कल धनवान हो जाय और जो आज धनवान है वह कल दरिद्र हो जाय! पर दरिद्रता सदैव रहेगी ही… यह कहना तनिक असहिष्णुता तो है, पर पशुओं की भांति धकाधक बच्चे जनने वाले माता-पिता ही अपनी दरिद्रता तय करते हैं। “छह बच्चे हैं और पति प्रेम नहीं करता” जैसी बातों का केवल मजाक उड़ाया जा सकता है, उसे गम्भीरता से नहीं लिया जाएगा।
सुनो! बड़े लोगों के आयोजनों थोड़ी बहुत बर्बादी होती है। दिक्कत यह है कि तुम कभी न समझ पाओगे… तुम वो लालची लोग हो, जो किसी का वैभव देख कर ही जलन से बिलबिलाने लगते हैं। रोने लगते हैं कि हमें क्यों नहीं दे दिया…
दीये जलेंगे, तो उसमें से तेल बचेगा। तेल बचने के डर से हम दीपक जलाना तो नहीं छोड़ सकते न? अयोध्या का दीपोत्सव इस संस्कृति के स्वाभिमान का उत्सव है। इस राष्ट्र की प्रतिष्ठा का पर्व… सरयू के घाट पर खड़े हो कर 50 देशों के प्रतिनिधि निहार रहे थे उस प्रकाश को, जो युग परिवर्तन की सूचना दे रहा था। तुम समझ सकोगे? नहीं समझ सकोगे…
और सुनो! अगर यह तेल की बर्बादी भी है न, तब भी कोई दिक्कत नहीं। हम आज अयोध्या में तेल बहा सकें, इसके लिए पाँच सौ वर्षों तक अनेक पीढ़ियों ने अपना रक्त बहाया है। यह केवल पर्व का उत्सव नहीं, उस असँख्य गुमनाम योद्धाओं की आत्मा को सन्तोष देने का उत्सव है यह… यह उत्सव होता रहेगा… हम न रुके हैं कभी, हम न थके हैं कभी… क्योंकि हम हैं शाश्वत सत्य सनातन!
दरअसल असली तेल वे गरीब लोग नहीं निकाल रहे हैं। तेल निकल रहा है तुम्हारा, और पिछले दस वर्ष से तुम्हारा तेल निकाल रहा है वो, जिसका तेल निकालने के लिए तुम हर दीवाली को यह तेल का खेल खेलते हो। तो सुनो! वह अभी लम्बे दिनों तक निकालेगा तुम्हारा तेल… वो रुकने वाला नहीं है।
बोलो हर हर महादेव!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *