डॉ. भूपेन्द्र सिंह : भारतीय राजनीति में दिख रहा सिनेरियो.. इस खेल से दुनिया का भविष्य बदलने वाला है..!

भारत समेत पूरे यूरोप का भविष्य काफ़ी कुछ अमेरिका के चुनाव परिणाम पर निर्भर है। अमेरिका की सत्ता बामपंथियों ने इस बार रिमोट कंट्रोल से चलाई है। वह फिर से रिमोट कंट्रोल से चलने वाला राष्ट्रपति वहाँ थोपने के प्रयास में हैं। उसके पार्टी के समर्थक तक पिछले डिबेट के बाद उसे हटाने को कह रहे हैं लेकिन बामपंथी मान नहीं रहे हैं क्योंकि ऐसा खिलौना बार बार उनके हाथ नहीं आने वाला।

बामपंथियों को अभी भी लग रहा है कि वह ट्रम्प का भय दिखाकर फिर से अपनी सत्ता स्थापित कर सकते हैं। लेकिन भारत की दृष्टि से सुखद खबर यह है कि फ़िलहाल तो ट्रम्प ही आगे नज़र आ रहे हैं। भारत में बीते चुनाव में अमेरिका ने खूब इंटरेस्ट दिखाया है। भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और डालर को चैलेंज, यह दोनों अमेरिका में विशेष तौर पर बामपंथियों को रास नहीं आयी है। रुस ने चुनाव से पहले स्पष्ट तौर पर बताया था कि उसे पुख़्ता जानकारी मिल रही है कि अमेरिका भारत में चुनावों को प्रभावित कर रहा है। इस बीच राज न मिलने अराजक हो चुका भारत का परिवार भी जार्ज सोरोस के क़रीबियों से मिलता रहा है और जार्ज सोरोस ने भारत सरकार के विरोध में बयान देकर स्पष्ट भी किया था कि वह मोदी सरकार से खुश नहीं है। कनाडा और भारत के संबंधों में जो कड़वाहट आयी वह भी इसी खेल का हिस्सा था। कनाडा में भी फ़िलहाल बामपंथी हावी हैं। कनाडा की नीतियाँ अमेरिकन ही नियंत्रित करते हैं, यह कोई छुपी हुई बात नहीं है। कनाडा के माध्यम से पंजाब में जो खेल शुरू हुआ है वह भी भारत के स्वतंत्र विदेश नीति के विरोध में सबक़ सिखाने की दृष्टि से हुआ है। अमेरिका में बैठे लोगों को पता है है कि यहाँ का प्रथम राज परिवार बिकाऊ है। पहले भी यह परिवार केजीबी के हाथों काफ़ी समय तक बिकी रही है और इसके पुख़्ता सबूत हैं। राज न मिलने से देश में आग लगाने को तैयार प्रथम परिवार को विभिन्न माध्यमों से न केवल खूब फण्डिंग की गई बल्कि बार बार अमेरिका में बुलाकर यह विश्वास भी दिलाया गया कि तुम्हें जो करना है करो, हम तुम्हारे साथ खड़े हैं।

अराजकता और झूठ को लेकर यह जो आत्मविश्वास आया है, उसमें अमरीका के बामपंथियों ने तकनीक का सहारा भी प्रदान किया है। एक प्रमुख कंपनी के पाँच कर्मचारी अब तक इसमें शामिल पाए गए हैं। वास्तविकता यह है भाजपा को लगता है कि वह अपनी आशा से 60 सीट पीछे रह गये जबकि सत्य यह है कि भाजपा अराजक हो चुके परिवार और बामपंथियों के आशा से 60 सीट अधिक लाई है। लोगों को आशा है कि भारत में जो फ़िलहाल सिनेरियो दिख रहा है, वह जल्द ही बदल जाये। लेकिन मेरी दृष्टि पूरी तरह से अमेरिका के चुनावों पर है। जब तक वहाँ सत्ता के बदलाव नहीं होगा, भारत में बदलाव असंभव है। भारत में भी सत्ता में बैठे लोग इसी का संभवतः इंतज़ार कर रहे हैं। अमेरिका ने यहीं खेल परमाणु परीक्षण के बाद भारत के साथ किया था, जब उन्होंने आर्थिक प्रतिबंध लगाकर भारत में इस कदर महंगाई की मार लाई थी कि उनको लगा था कि वह सरकार बदलने के कामयाब हो जाएँगे लेकिन तब भी भारत का एक बड़ा तबका अपने व्यक्तिगत स्वार्थों की बलि चढ़ाकर राष्ट्र प्रथम की भावना से अटल जी की वापसी कराई। इस बार भी लोगों ने हर प्रकार के असंतोष फैलाने वाले तरीक़ों के बावजूद सरकार की वापसी कराई है।

वास्तविकता तो यह है कि भाजपा के केंद्रीय संगठन को रिपोर्टिंग करने वाले कुछ लोगों ने यदि उत्तर प्रदेश में अपने से अपने पार्टी की हार न करवाई होती तो इस बार भी पूर्ण बहुमत से सरकार की वापसी तय थी।

केंद्र सरकार की बोली भाषा में वैश्विक बामपंथ का दबाव और अराजक विपक्ष की बोली भाषा में वैश्विक बामपंथ के सहयोग का आत्मविश्वास स्पष्ट रूप से छलक रहा है। तरीक़े भी वहीं अपनायें गये हैं, झूठ बोलों, झूठा भय दिखाओ, वास्तविक भय को छलावा बताओ, विभाजन की रेखाओ को गहरा करो, लोगों को एकजुट तो करो पर अलग अलग धड़े में, आपस में लड़ने के लिए। यह खेल कितने दिन जारी रहता है, इसके लिए अमेरिका पर निगाहें गड़ाए रखिए।
वैसे यह चुनाव अमेरिका के ख़ुद के भी भविष्य के लिए बहुत महत्व का है क्योंकि जिस व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाने का प्रयास वहाँ चल रहा है, उसकी मानसिक स्थिति जो है उसे देखकर यह कह पाना मुश्किल है कि वह अगला एक साल भी अपने सेंस से सत्ता चला पाएगा। ऐसी स्थिति बड़ी अराजक हो जाती है क्योंकि पाप कोई और करेगा और उसका ठीकरा अपने सिर पर फोड़वाने के लिये कोई और बैठा हुआ है।
खेल देखते रहिए…. इस खेल से पूरे दुनिया का भविष्य निर्धारित होने वाला है….

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