डॉ. पवन विजय : चमत्कार सस्ता शब्द.. पौरुष और उसकी साधना है जिससे असम्भव…

यह कहा जाता है कि सूरदास जी जन्मांध थे, कृष्ण भक्ति काव्य की रचना को यदि आज के शब्दों में कहें तो यह चमत्कार नही तो और क्या है? जिसे कोई चमत्कार कहता है वह बहुत सस्ता सा शब्द है, यह व्यक्ति का पौरुष और उसकी साधना है जिससे असम्भव शब्द संभव हो जाता है। यह साधना बालक ध्रुव से लेकर स्वामी विवेकानंद को शिखर पर स्थापित करती है, इसी साधना की एक कड़ी जुड़ती है अट्ठाइस साल के युवक पंडित धीरेंद्र शास्त्री से और देखते ही देखते आचार्यवर का आभामंडल विस्तृत होने लगता है। आचार्य जी के कर्म को चमत्कार न कहकर साधना का परिणाम कहा जाए तो बेहतर रहेगा।

-डॉ. पवन विजय

एक भय का हस्तांतरण पीढी दर पीढी करते इन लोगों ने दुर्गति को अपनी नियति स्वीकार करने लगे थे। मूल घर के सारे दरवाजे बंद कर दिए गए, निर्बल के बल राम पर आक्षेप किये जाने लगे, कभी बाबा तुलसी ने जिन वनवासी, गिरिवासी लोगों को राम नाम की औषधि पिलायी थी उसे विष में बदलने का काम अपने ही देश के बिके हुए लोगों ने खूब किया। एक भय का वातावरण बन गया। आचार्य जी ने बजरंगी का जयघोष किया।

महावीर का झंडा लेकर एक लड़का उठा और जादू, टोना, लुइया टुइया को कुचलता चला गया। भय के दरवाजे टूटने लगे, जो असुरक्षा में जी रहे थे उन्हें एक रोशनदान से रोशनी आती दिखाई पड़ी। यह सर्वकालिक सत्य है कि बिना शक्ति संधान के आप दुर्बलों की रक्षा नही कर सकते। बजरंगी जिसके साथ हों तो उससे बड़ा शक्तिशाली कौन हो सकता। शक्ति का प्रयोग अबलों के रक्षण और पिशाचों के निवारण में हो रहा है, यह सबसे महत्वपूर्ण है।

वह इसलिए प्रणम्य हैं क्योंकि वह हर चाल कुचाल षड्यंत्र कुचक्र समांतर रूप से चलते रहे पर एक मंत्र बाला जी सरकार की जय के माध्यम से हर अग्नि परीक्षा में खरे उतरे।

आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री इसलिए प्रणम्य नही हैं कि उन्होंने किसी के मन की बात बता दी बल्कि वह इसलिए प्रणम्य हैं कि उन्होंने सामाजिक मर्यादाओं को स्थापना की। कई बार मीडिया ने उन्हें पूज्य शंकराचार्य से लेकर अन्य विषयों पर उग्र हो जाने को उकसाया पर उन्होंने अपनी मर्यादा नही छोड़ी।

संत का हृदय साबुन होता है। जब आप उसके पास जाते हैं तो वह स्वयं का पुण्य क्षय कर आपके पापों का शमन करता है। यह कार्य क्षुद्र बुद्धि और औसत क्षमता वालों का नही है, यह कार्य नवनीत हृदय वाले संत से ही हो सकता है। मुझे याद है कि आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी को अपशब्द कहने वाले श्री प्रीतम लोधी को वह गले लगाकर उनके मन का मैल हटा देते हैं और उदाहरण रखते हैं कि हिंदू समाज में व्यापत घोर से घोर मतभेद मात्र एक गले लगने से दूर हो सकता है।

वह इसलिए प्रणम्य हैं कि अपने देश और धर्म को लेकर धवल भावों को हमेशा आगे रखा। वह इसलिए प्रणम्य हैं कि जो कहा सो किया, धरातल पर इतनी मुखरता के साथ कार्य करने वाला संत निश्चित रूप से आदरणीय है।

वह इसलिए प्रणम्य हैं कि उन्होंने मीडिया ट्रायल और गिरोहों से दबे हुए समाज का आत्म विश्वास वापस लौटा दिया।

और आखिर में वह इसलिए प्रणम्य हैं कि उन्होंने अपने तर्क, साधना और पुरखों से प्राप्त पूंजी को सेवा का साधन समझा।

आपका जन्म हिंदू समाज के मंगल के लिए है, इस उद्देश्य की सदा पूर्ति होती रहे मेरी कामना है। आप शतायु हों, सौ सालों तक भारत मां की सेवा करें।

जय हो बागेश्वर धाम सरकार की।

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