डॉ. पवन विजय : चांद भी होगा, तारे भी होंगे,लेकिन तुम्हारा दिल न लगेगा…(अद्भुत लेखन शैली पूरा पढ़ें)
हर साल MA के बाद कैंपस छोड़कर जाने वाले छात्रों को चुपचाप देखता हूं। रोज रोज दिखने वाले छात्र विदा हो रहें हैं। विश्वविद्यालय मासूमियत का अंतिम पड़ाव है।इसके बाद जगत की निष्ठुरता आरंभ होगी, यह जीवन के वसंत का अंतिम अध्याय है। अब जीवन भर लू के थपेड़ों से ही सामना होगा। एक साख पर साथ बैठने वाले परिंदों का काफिला अब अलग-अलग दिशा में उड़ान के लिए निकलेगा। BA और MA के दिन कितनी जल्दी बीत गए न। ओह,अब सारे संगी छूट जाएंगे।
धीरे-धीरे संकल्प शक्ति कम होगी, आशंका बढ़ती जाएगी। हौसला कम होता जाएगा, मन्नत के धागे बढ़ते जाएंगे।
मंजिल रह रह फिसलती रहेगी, रास्ते लम्बे होते जाएंगे। दोस्तों का कारवां छोटा होगा,अकेलापन सघन।औरों से बातें कम होंगी, स्वयं से संवाद बढ़ेगा। माया से मोह घटेगा , बुद्ध से प्रेम बढ़ेगा। सोचना बढ़ेगा, सोना कम होगा।
असाधारण होने के मौके कम होते जाएंगे, साधारण होने की संभावना बढ़ती जाएगी। आदर्श चूकेगा, यथार्थ हावी होगा। मासूमियत का स्थान सिमटेगा, चालाकियां जीवन का अनिवार्य हिस्सा बनती जाएगी । भोलापन पीछे रह जाएगा चालबाजी धीरे धीरे जीवन में प्रवेश करेगी। चेहरे पर हँसी कम होगी, माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ेगी। बेफिक्री खत्म , तनाव शुरू। कुछ ही सालों में यथार्थ कल्पना को निगल लेगा। स्वप्न का रंगमहल ढ़हेगा,मकान बनवाने के लिए सीमेंट की चिंता सामने होगी। अधिकार कम होता जाएगा, कर्तव्य बढ़ता जाएगा। वक्त के साथ दिल से आवाज आएगी “इस पार नियति ने भेजा है, असमर्थ बना कितना हमको”।
रोजगार समाचार के पन्ने प्रेम पत्रों को निगल लेंगे। आलिंगन स्मृति बन जाएगी। चुंबन का रोमांच कम होता जाएगा। “धीरे-धीरे क्षमाभाव समाप्त हो जाएगा/ प्रेम की आकांक्षा तो होगी मगर ज़रूरत न रह जाएगी ।”
मेरे प्यारे छात्रों, आपके जीवन से विश्वविद्यालय विदा नहीं हो रहा,आपके जीवन से एक शिशु विदा हो रहा है। अब आप इतने कोमल, इतने बेफिक्र और इतने आवारा कभी नहीं रह पाएंगे। अब देर रात तक जगना और दोपहर तक उठना संभव न हो पाएगा। प्रकृति अब तुमसे तुम्हारी निश्चिंतता छीन लेगी। पर जब भी तुम लौट कर यहां आओगे विश्वविद्यालय तुम्हें आईने की तरह दिखाई देगा ।
“क्या खूब लगती हो, बड़ी सुंदर दिखती हो” कहने वाला लड़का पीछे छूट जाएगा”। “हर जीवन में तुम मेरे ही बनना” कहने वाली लड़की मन मसोस कर रह जाएगी। वियोग संयोग को निगल लेगा। प्रेम के दो तटों के बीच सिर्फ वेदना का जल बचेगा। प्रेमियों के मध्य सिर्फ स्मृतियों का संबंध रह जाएगा। लकड़ी की बेचों पर उकेर कर लिखे गए प्रेमिका के नाम धीरे-धीरे कांतिहीन पड़ते जाएंगे। वक्त उनमें धूल भर देगा। आपकी जगह जुलाई से नए छात्र बैठे होंगे। अब हॉस्टल के दरवाजे पर नए हाथों का स्पर्श होगा । नए तालों से कुंडियों का परिचय होगा। आपके घोसले में एक नया जीव स्वप्न और उम्मीद के साथ प्रवेश करेगा। मेस की थाली पर नई उंगलिया फिरेगी।कमरे से आपकी गंध विदा होगी, नई देह गंध धीरे धीरे उसका स्थान लेगी। पुराना विदा होगा,नई कोपलों की लालिमा फूटेगी। नए स्वप्न फिर से झीलमिलाने लगेंगे ।
जीवन से अब शिशु सुलभ चंचलता विदा होगी, कंधे पर पिता का बोझ महसूस होगा। पीठ पर हाथ रखने वाले कम होते जाएंगे, औपचारिकता से हाथ मिलाने वालों की संख्या बढ़ेगी। तुम्हें आगे पद मिलेगा,यश मिलेगा, कीर्ति मिलेगी, वैभव तुम्हारी दासी होगी पर यह मासूमियत अब न मिलेगी। जी एन झा हॉस्टल, पी सी बनर्जी, ताराचंद, सर सुंदर लाल हॉस्टल, कल्पना चावला , प्रियदर्शनी हॉस्टल, सरोजनी नायडू और हॉल ऑफ रेजिडेंस का कमरा अब इस जीवन में न मिलेगा। तुम्हारे करोड़ों के बंगले पर होस्टल का वह छोटा कमरा हमेशा भारी पड़ेगा। कुबेर का वैभव मुड़ मुड़ कर सुविधाहीन अतीत को देखेगा। जिसे अभी कोसते हैं,मेस की वह थाली हमेशा छप्पन भोग पर भारी पड़ेगी। इलाहाबाद के लक्ष्मी चौराहे का बंद मक्खन किसी दिन तुम्हें दिल्ली से यहां तक खींच लाएगा। डैन्यूब और टेम्स के किनारे खड़े होकर भी तुम संगम को नहीं भूल पाओगे। तुम शरीर से दूर जाओगे, तुम्हारी आत्मा यहीं अटकी रहेगी। तुम अपना हृदय लेकर जगत में फिरते रहोगे, कहीं तुम्हारा दिल न लगेगा। मेरा दिल भी JNU में अटका हुआ है, अपना अनुभव बता रहा हूं। यहां से जाने के बाद तुम्हें समझ में आएगा कि मातृ संस्था का क्या अर्थ होता है। विश्वविद्यालय से बढ़कर प्रेमिका कौन है, मां से बढ़कर ममता भला किसके पास है।
दुख के दिन आत्मा पर दस्तक देते हैं, सुख त्वचा तक ही ठहर जाता है । तुम हजारों किलोमीटर दूर रह कर भी बार बार यहां लौटोगे। लखनऊ या बनारस जाते हुए एकाएक तुम्हारी गाड़ी आधी रात को हॉस्टल की ओर मुड़ जाएगी। इन खंडहरों की ओर अपने आप तुम्हारा सफर मुड़ेगा, तुम खुद को रोक न पाओगे। तुम अपनी नजरों से हॉस्टल का गेट चूमने के लिए तड़पोगे। विश्वविद्यालय सच में मां है।इसकी गोदी में रहते हुए हजारों छात्र कितने निश्चिंत रहते हैं। MA का अंतिम पर्चा समाप्त होते ही निष्ठुर जगत खिलखिला उठता है। जिस अदृश्य गोद में बैठकर हम हर लड़ाई लड़ते हैं वह घेरा पल में टूट जाता है। देवता बताओ न, सुख क्या सच में क्षणभंगुर होता है।
जा रहे हो पर याद रखना। हर साल ये पत्थर की दीवारें तुम्हें पुकारेगी और तुम साफ साफ उसकी पुकार सुन पाओगे। अगर मेरी बात गलत सिद्ध हो जाए तो कहना मैं झूठा था। विजयनगरम हॉल का गुंबद रह रह कर तुम्हारी स्मृति में कौंध जाएगा। सीनेट हॉल की घड़ी दिमाग में टिक टिक करेगी। BHU का बिरला हॉस्टल छूटने के बाद मुझे कभी सुकून नहीं मिला तो तुम्हें कैसे मिल जाएगा।
विश्वविद्यालय छूटते ही हम सब अश्वत्थामा हो जाते हैं। अपने हिस्से का दुःख माथे पर लेकर घूमना होगा। पत्नी, नौकरी , बड़ी गाड़ी में सुख खोजते फिरोगे, नहीं मिलेगा। सुख खोजते खोजते अंततः हम सबको अपने हॉस्टल के कमरे में ही लौटना होगा। इस श्राप की कोई मुक्ति नहीं। इससे सुंदर कोई श्राप नहीं।
एक शिक्षक भी तो छात्र ही होता है ना। आपके भीतर एक बार कुछ टूटता है, हमारे भीतर हर साल बहुत कुछ टूटता है । शिक्षक होने का अर्थ है हर साल अपने अश्रुओं को चुपचाप पीना। काश आप मेरा दर्द समझ पाते। एक शिक्षक के रूप में मुझे फिर से नए चेहरों पर आंखें गड़ा कर सबका नाम याद करना होगा। फिर उनसे वैसा ही रिश्ता बनाना होगा जैसा कभी आपसे बनाया था, यह जानते हुए कि एक दिन इन्हें भी अलविदा कहना है मुझे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की FCI बिल्डिंग में फिर मेरे सामने 200 से ज्यादा बच्चे होंगे। मुझे नए छात्रों को धीरे धीरे अपनी स्मृति में जगह देनी होगी। अफसोस,आपका नाम पीछे छूटता जाएगा। फिर से अपने नोट्स दुरुस्त करने होंगे। फिर से उसी गर्मजोशी से नए छात्रों से मिलना होगा। पुरानी बातों को उसी शिद्दत से बोलना होगा जैसे कभी आपके लिए बोलता था। मुझे फिर से यह अभिनय करना होगा की ये नए छात्र ही मेरे लिए सबसे खास हैं। मोह से धागे फिर से खोलने होंगे। आलिंगन के लिए पुनः स्वयं को तैयार करना होगा।
मैं तुम्हारा बचपना लेकर बैठा हूं । 18/ 20 साल की उम्र कच्ची ही होती है। मैंने चुपके से आप सबका बचपना अपने पास रख लिया है। अगर सालों बाद खुद से मिलने की ईच्छा हो तो आना मेरे पास। तुम मेरी आंखों में झांक कर अपना बचपन ढूंढ सकते हो। तुम्हारा ही रूप तुम्हारे सामने निकाल कर धर दूंगा। तुम कहीं भी रहो तुम्हारे अतीत की पोटली हमेशा मेरे पास रहेगी। मैं जब चाहूंगा चुटकी बजाते सबको तुम्हारा प्यारा अतीत दिखा दूंगा। मैं हेराफेरी नहीं करता। कभी भी गिरना तो अपने शिक्षकों को आवाज़ देना वे यकीनन आपको थाम लेंगे।
आप सब चले जाएंगे, मैं पीछे छूट जाऊंगा। एक शिक्षक के रूप में मैं यहीं रह जाऊंगा। अगले सत्र से आपकी जगह नए चेहरे होंगे।
दूर दूर बैठने वाले अजनबी धीरे धीरे एक साथ बैठना शुरू करेंगे। फिर से कोई मासूम बालक इश्क की जिद में आग का दरिया पार करने को उतरेगा। फिर से मेरा हृदय आशंका और उम्मीद में घिर जाएगा। फिर कुछ चेहरों पर मुस्कान होगी, कुछ पर विषाद। मैं नोट्स की अदला बदली के साथ साथ हृदय की अदला बदली देखूंगा और हमेशा की तरह चुप रहूंगा। पात्र बदल जाएंगे, कहानी वही रहेगी। नए पात्र नया रूप धरकर आपकी भूमिका में उतर जाएंगे। और मैं सब कुछ देखते हुए भी,अनजान बने रहने का अभिनय करता रहूंगा। जुलाई से आगे वाली बेंच पर आपकी जगह कोई नया छात्र बैठा होगा। कभी मेरे मुंह से गलती से आपमें से किसी का नाम निकल जाएगा। तब मुझे नए छात्रों को आपके बारे में बताना होगा। मैं थोड़ी देर के लिए नए पुराने के बीच पुल बन जाऊंगा। मेरी कहानियों में आप सब हीरो होंगे। नए छात्र अपने सीनियर के किस्से सुनकर रोमांचित होंगे। आज आप MA पूरा करके जा रहें हैं पर आप कभी मेरे भीतर अनुपस्थित नहीं हो सकते हैं,आपकी अनुपस्थिति में भी कई बार मेरे नेत्र आपको टटोलेंगे। मैं तुम्हारी अनुपस्थिति में भी तुम्हें प्रजेंट कर दूंगा। तुम सब अटेंडेंस के लिए परेशान रहते थे न, अब मैं ही तुम्हारी प्रॉक्सी लगाऊंगा। आपसब हमेशा मेरे दिल में प्रेजेंट रहेंगे। प्रिय, विदा के वक्त मैं तुम्हें रजिस्टर से निकाल कर हृदय में बैठा रहा हूं।
आपको जब भी जरूरत हो मैं बस आपसे एक कॉल की दूरी पर हूं। मैं जिसका हाथ पकड़ता हूं कसकर पकड़ता हूं फिर छोड़ता नहीं। मेरे M.Phil और Ph.d के गाइड गुरुदेव नामवर सिंह थे , तब उनकी उम्र अस्सी साल से ज्यादा हो चुकी थी। जब भी मैं उनके घर चाय पीता, जाते वक्त कप वे ही उठा कर किचन में रखते। हर बार मुझे कप उठाने से मना करते हुए कहते, मेरे रहते तुम कप उठाने के लिए भी नहीं झुक सकते। आपके शिक्षक आपको कभी झुकने नहीं देंगे। हमारे कंधे आपके लिए हैं, इनपर पैर रख कर ऊपर उठिए। LLT 1, LLT 3, रूम नंबर 14, रूम नंबर 15 में हर वक्त मुझे आप सबकी याद आएगी। अच्छे से जाना। अपना ख्याल रखना। मेरा मन आपकी ओर ही लगा रहता है। दुनिया गोल है, हम यकीनन मिलेंगे। उपवन समाप्त हो रहा है, जंगल आरंभ। मेरा हाथ पकड़े रहना ।
जब तक मैं मैं हूँ, तुम तुम हो
है जीवन में जीवन
कोई नहीं छीन सकता
तुमको मुझसे मेरे धन
–चित्तरंजन कुमार सिंह जी ने जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कहा है वह बात, बिल्कुल वही बात आज से पच्चीस साल पहले गुरुदेव डॉ राकेश कुमार सिंह ने कही थी, अलबत्ता तब सोशल मीडिया नहीं था। उन शब्दों की नमी आज भी हृदय को तर रखती है।
