परख सक्सेना : 2026 अंबानी और अडानी आमने सामने, स्थायी सरकारें ही बड़े निवेश, विकास व विश्वास की असली गारंटी

2025 जाते जाते अंबानी और अडानी को एक दूसरे के सामने खड़ा कर गया। गुजरात का कच्छ अब व्यापारिक कुरुक्षेत्र बन गया है।

2025 भारत के लिए रणनीतिक और आर्थिक रूप से कुछ अच्छे सालो मे सिद्ध हुआ, पहले पाकिस्तान को घर मे घुसकर मारा फिर अमेरिका को आँखे दिखाई उसके बाद गूगल माइक्रोसॉफ्ट से 22 अरब डॉलर की निवेश प्रक्रिया शुरू की, एप्पल का उत्पादन शुरू हुआ और सेमिकंडक्टर चीप मे भी बात आगे बढ़ी।

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प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही कर कम हुए इसलिए इस बार महंगाई दर बहुत कम रही, इससे पहले कि 2-4 लोग आकर कहे डॉलर 91 पर चला गया खी खी खी तो इन्हे बताना उचित रहेगा कि ये RBI की परिवर्तित नीतियों का परिणाम है ना कि राष्ट्र की विफलता का।

इस समय देश मे दो प्रकार के लोग है एक जो देश पर बोझ है ऐसे लोग अक्सर जातिवादी बाते करते आपको मिल जाएंगे, दूसरे जिन्हे आगामी मुद्दे पता है।

Ai, सेमीकंडक्टर चीप, परमाणु ऊर्जा और रेयर अर्थ मिनरल ये इस समय सबसे ज्यादा जरूरी है। भविष्य मे भारत कितना शक्तिशाली होगा वो इन चार आयामों से निर्धारित होगा, इसलिए 2026 मे भी यदि कोई व्यक्ति जात पात की ही बात करता नजर आये तो यह समाज के लिए वही काम कर रहा है जो आतंकवादी करते है अर्थात पीछे धकेलना।

अब नया मुद्दा अंबानी और अडानी का आ गया है, अब तक ये एक दूसरे के क्षेत्र मे नहीं घुस रहे थे लेकिन गुजरात के कच्छ मे दोनों सौर ऊर्जा के प्रोजेक्टस को लेकर ना सिर्फ रूचि दिखा रहे है बल्कि काम शुरू हो गया है। अडानी समूह 2 लाख करोड़ और रिलायंस 75 हजार करोड़ की घोषणा कर चुका है।

कच्छ एक रेगिस्तानी इलाका है और ये भारत का सबसे बड़ा जिला भी है। कच्छ मे अचानक इतना बड़ा निवेश कच्छी लोगो के लिए किसी लॉटरी से कम नहीं है, सौर ऊर्जा के तीन फेस है और ये सिर्फ पैनल लगाने की बात नहीं है इसके पृष्ठ मे बहुत से निर्माण कार्य और लॉजिस्टिक सपोर्ट लगेगा।

सीमा पाकिस्तान से भी लगती है इसलिए सैन्य निर्माण और उत्पादन भी बढेगा। अंबानी और अडानी मे कौन जीतेगा वो पता नहीं लेकिन स्थानीय लोगो की जीत पक्की है, वैसे दो अमीर लोग एक दूसरे से लड़ते नहीं है बल्कि आपसी समन्वय करते है।

निर्माण कार्य मे कई ऐसी चीजें लगेगी जिनमे अडानी समूह की कंपनीया शीर्ष पर है और कई मे जिओ की। इसलिए आप यहाँ दो अमीरो को लड़ते नहीं अपितु समन्वय करते देखेंगे।

प्रजा के रूप मे आपके लिए कई सबक है, ये प्रोजेक्ट रेगिस्तानी इलाके के लिए उपजाऊ है लेकिन इसे राजस्थान मे नहीं लगाया गया। किसी ने कुछ नहीं कहा लेकिन एक आंकलन है कि चुंकि राजस्थान मे सरकार अस्थायी होती है ऐसे मे यदि कांग्रेस लौट आयी तो अड़ंगा लगा देगी। ये पहला सबक कि अब आपको स्थायी सरकारे चाहिए।

अडानी ने मध्यप्रदेश मे भी निवेश बढ़ाया है और इसके लिए मोहन यादव की प्रशंसा करूँगा। सिंगरौली और चंबल मे जो काम हो रहा है वो प्रशंसनीय है, हालांकि 6 लाख पेड़ काटे गए है मगर दूसरी जगह 6 लाख पेड़ लगाए भी जा रहे है। ये दूसरा सबक कि पर्यावरण और विकास एक साथ चलने चाहिए।

एप्पल ने ज़ब भारत मे उत्पादन शुरू किया तो उसके बाद एक लाइन लग गयी और अब फॉक्सकॉन जैसी कम्पनी भी रूचि दिखा रही है। इसके अलावा गूगल माइक्रोसॉफ्ट आने से एक कल्चर चेंज होगा, भारत मे इस समय 200 से ज्यादा ai स्टार्ट अप हो चुके है। ये तीसरा सबक है कि विदेशी मेहमानों का स्वागत कीजिये, ये उपनिवेशवाद का नहीं समन्वयवाद का दौर है।

इतनी डेवलपमेंट पढ़कर चौथा सबक खुद से लीजिये, किसी बड़े राज्य मे किसी जाति के नेता मिलते है और इससे राजनीति गर्म हो जाती है क्या ऐसे जाहिलपन की समाज को जरूरत है? ये 1991 वाला दौर है तब भी यही हुआ था तब समाज़वाद की पिपड़ी बजाई थी अब जाति की बजा लो या जो सरकार विकास कर रही है उसे बने रहने दो।

जो भी हो, ईश्वर से प्रार्थना है अंबानी और अडानी इसी तरह फले फूले और देश के हर राज्य मे इसी तरह टकराते रहे तो पूरा देश ही गुजरात बन जाएगा। साथ ही भगवान कुछ लोगो को सद्बुद्धि दें कि वे 2026 मे प्रवेश करें ना कि 1926 मे।

✍️परख सक्सेना✍️
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