सर्वेश तिवारी श्रीमुख : कष्टों के बीच कुंभ में प्रयाग का मूल स्वभाव सहयोग, सेवा, सम्मान परिलक्षित हो रहा

एक शहर, जो पिछले महीने भर से जाम है। एक मुहल्ले से दूसरे मुहल्ले में जाना ऐसा है, जैसे एक राज्य से दूसरे राज्य में जाना… दस में से नौ काम टाले जा रहे हैं… जब मार्केट से हरी तरकारी खरीद लाना युद्ध जीतने जैसा हो गया है, तब किसी के बीमार पड़ने पर परिवार की क्या गति होती होगी, यह प्रयाग जाने पर यूँ ही समझा जा सकता है।
हर गली में गाड़ियों की लाइन लगी हुई है। अगली गाड़ी राजस्थान की है तो उसके ठीक पीछे बंगाल की। ठेठ तमिल में पूछे गए प्रश्न का भी उत्तर दे रहे प्रयागी लोग, वो भी बिना समझे ही… उस शहर की हर गली में पूरा भारत उतरा हुआ है, जैसे लोटे के जल में उतर आती हैं गङ्गे च यमुने चैव गोदावरी नर्मदा सिंधु कावेरी…
शहर के लड़के महीने भर से नाते रिश्तेदारों को गंगाजी नहवाने में लगे हुए हैं। कल बड़ी बुआ, आज मौसी… कल बड़े पापा के दोस्त आने वाले हैं तो परसो भैया के फेसबुक फ्रेंड… वे दौड़ रहे हैं, घर से सङ्गम, सङ्गम से घर… कभी बाइक से, कभी पैदल… तीन किलोमीटर की यात्रा दो घण्टे में भी पूरी नहीं होती, फिर भी वे चल रहे हैं, दौड़ रहे हैं, हँस रहे हैं…
उस बड़े शहर की अपनी हजार दैनिक परेशानियां हैं। हानि लाभ, जनम-मरण, दुख दलिद्दर… शादी विवाह, पर्व त्योहार भी… वे कैसे मैनेज कर रहे होंगे, यह सोच कर आश्चर्य होता है। पर वे कर ही रहे हैं। प्रयाग की प्रतिष्ठा मान कर, अपना दायित्व मान कर, अपना धर्म समझ कर…
इसमें कोई दो राय नहीं कि महीने भर से दुनिया की व्यवस्था संभालता प्रयाग थक चुका होगा। थकान स्पष्ट दिख रही है। पुलिसकर्मियों के चेहरों पर, संत शिविरों के व्यवस्थापकों, कार्यकर्ताओं के चेहरों पर, यहाँ तक कि साधु-संतों के चेहरों पर… किसी शिविर में जा कर वहाँ के कार्यकर्ताओं की दिनचर्या देख लीजिये, वे बीस बीस घण्टे जग रहे हैं, दौड़ रहे हैं, तप रहे हैं। यही स्थिति प्रयाग के सामान्य जन की है।
मैं मानता हूं कि कुछ तीर्थयात्रियों के बुरे अनुभव भी रहे होंगे। उन्हें वहाँ लूटने वाले भी मिले होंगे। बीस रुपये की पानी बोतल पचास में बेचने वाले भी होंगे, थोड़ी दूर पहुँचाने के बदले हजार पाँच लेने वाले भी… बाहरी भीड़ को देख कर कुढ़ने वाले भी हैं। पर कलियुग में सभी देवता तो नहीं हो सकते न मित्र! नकारात्मक लोग भी रहेंगे ही… फिर भी! कुम्भ में प्रयाग का जो मूल स्वभाव दिखा है, वह सहयोग का है, सम्मान का है, सेवा का है…
प्रयाग के मित्रों! उस पावन तीर्थ से लौटने के बाद सबसे पहले आपको धन्यवाद देने का मन है। कुम्भ का अमृत आपके जीवन में बरसे, यह एक तीर्थयात्री का सहज आशीष है… पूरी दुनिया जिस भूमि को प्रणाम करने के लिए दौड़ पड़ी है, उसकी गोद का निवासी होने के गर्व को साधिकार धारण कीजियेगा। जय हो…

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

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