नितिन त्रिपाठी : नेता.. कार्यकर्ता फिर भी आपका बुरा…

ऐसा ही राजनीति में होता है. ऐसा नहीं है कि मोदी जी योगी जी आकाश से उतरे और सब जगह चुनाव जीतने लगे नेता बनाने लगे. यस वह नेता हैं – कार्यकर्ताओं के. वह हैं तो कार्यकर्ता हैं पर उल्टा भी सच है कार्यकर्ता हैं तो वह हैं.

जब आप इस भीषण गर्मी में एसी में बैठ टीवी पर जीत हार देख उद्वेलित हो रहे होते हैं वह कार्यकर्ता काउंटिंग बूथ पर बैठता है. सप्ताह भर पहले से प्रैक्टिस करता है. आप एक वोट डाल सेल्फ़ी डाल खुश हो जाते हैं वह महीने भर वोटिंग स्लिप बाँटता है और फिर धूप में कुर्सी डाल बूथ लगाता है. जब आप अपने बच्चों के साथ शाम को घर पर डिनर कर रहे होते हैं वह प्रवास कार्यक्रम में अनजान गलियों में टहल रहा होता है. जब आप नौकरी की तैयारी कर रहे होते हैं वह चौराहे पर खड़े होकर प्रदर्शन कर रहा होता है. जब हल्की ठंड आती है, आपको मौसम सुहाना लगता है, हर कार्यकर्ता का शरीर दर्द कर रहा होता है पुलिस की लाठी ज़िंदगी भर दर्द देती है. जब आप अपने सोना बाबू के साथ डेट पर होते हैं वह मुक़दमा लड़ रहा होता है भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ रेल रोकी थी उसका.

और यह सब कार्य किसी पैसे से नहीं होते. आपको लगता है होते हैं मैं आपको मुक़दमा लड़ने के पैसे दे दूँगा जाइए एक सरकारी अफ़सर को कूट दीजिये. इन्हे पैसे से तौलना वैसे ही होता है जैसे कोई बच्चा बड़ा होने पर माँ को बोले तुमने सौ किलो दूध पिलाया था यह रहे पाँच हज़ार रुपये.

जब आपके पास ताक़त नहीं होती है, बंद कमरों में आप विश्वास दिलाते हो सरकार आने दो सारे मुक़दमे कैंसिल करा देंगे. बच्चे की पढ़ाई नहीं करवा पा रहे हो पार्टी के काम से – सरकार आने दो हम नौकरी दिलवा देंगे. ऐसे पचास वादे करते हो. वह कार्यकर्ता जिसका बेटा नई पेंसिल माँगे तो उसकी पिटाई कर दे आपके लिये दही जलेबी लाता है.

और जब सत्ता आती है तो आप समझाते हो जाओ अफ़सर से बात करो. आपके अफ़सर बताते हैं तुम पर मुक़दमे चल रहे हैं अपराधी हो – वही मुक़दमे जिनकी वजह से आप सत्ता में आये.

कार्यकर्ता फिर भी आपका बुरा नहीं चाहता. वह वोट आपको ही देता है. आप बोलते हो हम ऐसे ही जीत जाएँगे, वह मान लेता है, घर पर बैठ जाता है. जीत लो. जब तक गुड टाइम चलते हैं आप अपना घर अपना पेट भरते रहते हैं अफ़सरों से सीधे अपना कट लेकर. पर जिस दिन विपक्ष जाग जाता है तब आपका मीडिया / सोसल मीडिया काम नहीं आता. काउंटिंग एजेंट के लिए चाहिये होते हैं असल अनुभवी मनुष्य जिन्होंने ज़िंदगी गुज़ारी हो यह करते. बूथ पर्ची बनाना बाँटना वोट नये ऐड करवाना विपक्ष के काटना, यह सब वही कर पाते हैं जिनके पास अनुभव हो.

एक मित्र हैं गाँव में. कभी भी कोई भी सफल हो, वह उसमें खोट ज़रूर लगा देंगे. फ़लाना आईएएस बन गया, कौन सी बड़ी बात. पंद्रह घंटे पढ़ता था मैं सवा पंद्रह पढ़ूँ मैं बन जाऊँगा. वह यह भूल जाते हैं कि बात केवल मुँह से बोलने की नहीं है, जब वह स्कूल कट कर पिक्चर देख रहे थे, सामने वाला पढ़ रहा था. जब वह रात को बियर पी रहे थे सामने वाला पढ़ रहा था. जब वह फ़ेसबुक पर सोना बाबू कर रहे थे सामने वाला पढ़ रहा था. उसने ज़िंदगी के पंद्रह साल दिए हैं तब इस मुक़ाम पर पहुँचा है.

पूरी दुनिया में कोई भी लोकतांत्रिक दल बग़ैर कार्यकर्ता के नहीं चलता. अमेरिका में तो कार्यकर्ता वोट डाल फ़ैसला करता है कि उम्मीदवार कौन होना चाहिए. और आप उम्मीद करते हो कि एक बार सत्ता आ गई फिर कार्यकर्ता जायें अपने घर, मलाई सिर्फ़ अफ़सर खायें या फिर हम. ऐसे में फिर एक दिन वो आता है जब चुनाव आईना दिखा देते हैं.

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