सुरेंद्र किशोर : लाइब्रेरी से होकर संसद आते हो या जिम से गुजर कर ?
साठ -सत्तर के दशकों के कई प्रतिपक्षी सांसद, संसद में सरकार को कठघरे में खड़ा करने के लिए पहले लाइब्रेरी जाते थे।
या, कई सांसदों की निजी लाइब्रेरीज थीं।सुना है कि माकपा के धाकड़ सांसद ज्योतिर्मय बसु के निजी कार्यालय में आकर जे.एन.यू. के कुछ छात्र उनकी मदद करते थे।
क्या उनमें प्रकाश करात और सीताराम येचुरी भी हुआ करते थे ? किसी ने बताया था –हां ।
पर,अनेक प्रतिपक्षी संसदों के हाल के व्यवहार से लगता है कि आज के अनेक प्रतिपक्षी सांसद, संसद जाने से पहले जिम जाते हैं।
राहुल गांधी ने उन्हें जो विशेष काम इस बार सौंपा है,उसके कारण तो अगले सत्र के समय उन में से कई को स्पीच थेरेपिस्टों के यहां जाना पड़ सकता है।
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डा.लोहिया,मधु लिमये,ज्योतिर्मय बसु,नाथ पई,हेम बरुआ,सुरेंद्रनाथ द्विवेदी जैसे कुछ ऐसे सांसद थे जब वे बोलने के लिए सदन में खड़े होते थे तो कई मंत्रियों के मेरुदंड में सिहरन होने लगती थी।पता नहीं किस मंत्री पर आज गाज गिरेगी !
वे इतने अधिक सबूतों के साथ होते थे कि सरकार की घिग्घी बंध जाती थी।आज उन बौद्धिक चमत्कारियों का विकल्प बनना चाहते हैं आज के बाहुबली और गलाफाड़ बहादुर हैं।
नेहरू और इंदिरा के कार्यकाल में लोहियावादी दल के कुछ अदमनीय सांसदों से स्पीकर भी घबराते थे।स्पीकर उन्हें तुरंत बैठा देना चाहते थे।पर,वे संसदीय प्रक्रिया और नियमावली और उसमें सांसदों के अधिकारों का अध्ययन करके सदन में आते थे।
मौजूं व प्रासंगिक नियम का हवाला देने पर स्पीकर उन्हें बोलने देने को बाध्य होते थे।
डा.राम मनोहर लोहिया (1963-67)ने लोक सभा में ऐसे -ऐसे खुलासे किये थे कि वे राष्ट्रीय खबरें बन गयीं और सरकार को थोड़ी शर्म आई।
एक बार लोहिया ने सदन में एक दिलचस्प किंतु सनसनीखेज तथ्य सरकार को दिया था।उसका जिक्र जार्ज फर्नांडिस ने लोक सभा में बाद में किया था।
जार्ज ने 1967 में कहा था कि
‘तिब्बत के बारे में जब हम यह कहते हैं कि हिंदुस्तान के साथ उसका क्या रिश्ता रहा हैं तो मनसर गांव का उदाहरण दिया जाता है।
हिंदुस्तान -तिब्बत सीमा से तिब्बत के दो सौ मील अंदर का यह गांव 1962 में चीनी आक्रमण होने तक हिंदुस्तान की सरकार को अपना राजस्व देता था।
पर इस सरकार को इसकी जानकारी तक नहीं थी।
डा. लोहिया ने इसकी खोज की और हिंदुस्तान के सामने रखा।
इस पर जार्ज को टोकते हुए कांग्रेस के वामपंथी सांसद शशि भूषण वाजपेयी ने व्यंग्य करते हुए कहा कि
‘‘हां, वे लोग लगान शायद लोहिया साहब को देते थे।’’
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जार्ज ने अपना भाषण जारी रखते हुए कहा कि मगर आपकी सरकार को यह भी नहीं मालूम था।
नेहरू जी ने डा. लोहिया से आग्रह किया कि मेहरबानी करके वह सबूत हमारे हाथ में दे दो।
तब लोहिया जी ने कहा कि आप खोज करो।
खोज की गई और तब वह बात सही निकली।
जब नेहरू की स्वीकारोक्ति की बात जार्ज ने बताई तो शशि भूषण चुप रह गये।ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
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आज मोदी सरकार का मंत्री प्रतिपक्ष से पूछता है कि संविधान की किताब में कितने पन्ने हैं तो कोई उत्तर नहीं देता।
हालांकि मंत्री का प्रश्न गलत था।उसे पूछना चाहिए था कि संविधान में कितने अनुच्छेद हैं ?
फिर भी शायद कोई उत्तर नहीं मिलता।
