अमित सिंघल : मनमोहन सिंह बनाम मोदी.. अर्थव्यवस्था के छिपाए आंकड़ों का भयावह काला सच

एक समाचार कि वर्ष 2014 में केंद्र सरकार की उधारी 57 लाख करोड़ रुपये थी; जो अब 160 लाख करोड़ रुपये हो गयी है – बहुत घूम रहा है। कुछ अन्य आंकड़ों को भी ट्वीट किया गया है।

आंकड़ों के साथ एक समस्या है। हम आंकड़ों को बिना संदर्भ जाने हुए प्रयोग करते हैं। हमें यह नहीं पता कि उन आंकड़ों से क्या मापा जा रहा है? किस से तुलना की जा रही है? कितनी समय सीमा के आंकड़ों को मापा जा रहा है? अतः आंकड़े बहुत उद्वेलित कर सकते हैं।

लेकिन सर्वप्रथम, यह समझने की आवश्यकता है कि सामान्य सरकारी ऋण में केंद्र और राज्य सरकार दोनों का ऋण शामिल होता है।

मैं आकड़े रुपये में दे रहा हूँ जिससे आधिकारिक आंकड़ों द्वारा स्थिति को समझा जा सके।

मोदी सरकार ने public account liabilities – अर्थात, सार्वजनिक खाते की देनदारियां – जिसमे आपकी पेंशन, प्रोविडेंट फंड, न्यायायिक डिपाजिट इत्यादि को भी सरकार पर उधार के रूप में जोड़ना शुरू कर दिया है। कारण यह है कि इन सभी धन को सीधे सरकार के पास जमा किया जाता है जो एक तरह से सरकार पर उधार है और मच्योरिटी के समय चुकाना होगा। अगर इस धन को उधार के रूप में नहीं देखेंगे और इनके सरकारी बही-खाते में “चुकाने” की व्यवस्था नहीं करेंगे, तो ग्रीस की तरह दिवालिया हो जाएंगे, जब किसी समय इन सभी “उधारी” को चुकाने का समय आएगा।

वित्त मंत्रालय के अनुसार, दिसंबर 2023 अंत में केंद्र के ऊपर 18.43 लाख करोड़ की उधारी सार्वजनिक खाते की देनदारियो के रूप में थी। जून 2014 के आंकड़ों में इस देनदारी को नहीं दिखाया गया था। अनुमान है कि सरकार ईरान से उधारी पर खरीदे गए तेल को भी उधार खाते में दिखा रही है जो सोनिया सरकार छुपा गयी थी।

सोनिया सरकार ने केंद्र की उधारी के लिए केवल घरेलु एवं विदेशी ऋण को जोड़ा था।

दिसंबर 2023 अंत में 160 लाख करोड़ की उधारी थी जिसमे घरेलू, विदेशी एवं सार्वजनिक खाते की देनदारियो को जोड़ा गया है।

अगला प्रश्न स्वाभाविक है कि भारत की जीडीपी क्या थी और है? वर्ष 2013-14 में कुल जीडीपी 112 लाख करोड़ रुपये थी। वर्ष 2023-24 में 297 लाख करोड़ है।

अर्थात जीडीपी ढाई गुना हो गयी।

इस वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2013-14 में प्रति व्यक्ति आय 79118 रुपये थी; वर्ष 2023-24 में 183236 रुपये है। अर्थात, दस वर्ष में प्रति व्यक्ति आय दो गुने से अधिक हो गयी।

आय दोगुनी हो गयी; जीडीपी दोगुनी हो गयी; लेकिन लोन के सन्दर्भ में यह छुपा दिया जाएगा।

लेकिन इस विषय को एक अन्य लेंस से देखने का प्रयास करते है।

अगर तुलना करनी ही है; तो महान अर्थशास्त्री सोनिया सरकार के दस वर्षो से तुलना की जाए। दूसरे शब्दों में, सोनिया सरकार के दस वर्षो (2004 से 2014 तक) में उधारी की क्या स्थिति थी?

वित्त मंत्रालय के अनुसार, मार्च 2004 में सरकार की उधारी 17 लाख करोड़ रूपये थी जो जून 2014 में बढ़कर 57 लाख करोड़ रुपये हो गयी। अर्थात तीन गुने से भी अधिक।

वित्त मंत्री निर्मला सीथारमन ने 29 मार्च 2022 को राज्य सभा में कहा था: “मैं इस सदन को याद दिला दूं कि आज के सत्यनिष्ठ करदाता उस (कच्चे तेल की) सब्सिडी का भुगतान कर रहे है जो उपभोक्ताओं को एक दशक से अधिक समय पहले तेल बांड (उधारी) के नाम पर दिया गया था और वे अगले पांच वर्षों तक भुगतान करना जारी रखेंगे क्योंकि बांड (उधारी) का पेमेंट 2026 तक जारी रहेगा।”

सन्दर्भ के लिए, RBI बतलाता है कि 29 मार्च 2024 को भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 645.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो 2023-24 में अनुमानित व्यापारिक आयात के 11.3 महीने और दिसंबर 2023 के अंत में बकाया विदेशी ऋण का 99.6 प्रतिशत के बराबर है।

अंत में, अगर सोनिया सरकार के समय की अर्थव्यवस्था इतनी ही अच्छी थी, तो सरकार के पास लड़ाकू विमान खरीदने के लिए धन क्यों नहीं था? वन रैंक, वन पेंशन के लिए धन क्यों नहीं था? सभी के पास घर, उस घर में नल से जल, बिजली, शौचालय की व्यवस्था क्यों नहीं की गयी थी? ट्रेन का शौच ट्रैक पर क्यों गिरा दिया जाता था?

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