सुरेंद्र किशोर : ऐसे मारी जाती है अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी
1
आरक्षण आंदोलन के दिनों मंडल आरक्षण के विरोधियों से मैं कहा करता था कि आरक्षण का विरोध मत करो।
यह उनका संवैधानिक हक है।
‘‘गज नहीं फाड़ोगे तो थान हारना पड़ेगा।’’
नहीं माने।
थान हारना पड़ा।
‘थान-गज’ वाली मेरी उक्ति को कांग्रेस के पूर्व विधायक हरखू झा आज भी यदा कदा याद करते हैं।
मंडल आरक्षण के विरोध का नतीजा यह हुआ कि वर्षों तक
बिहार को पटना हाईकोर्ट के अनुसार ‘जंगल राज ’ झेलना पड़ा।साथ ही,यह तर्क हावी रहा कि ‘‘विकास से वोट नहीं मिलते बल्कि सामाजिक समीकरण से वोट मिलते हंै।’’नतीजतन बिहार का विकास रुका।
इतना ही नहीं, बिहार में आज भी किसी सवर्ण के मुख्य मंत्री बनने का कोई चांस दूर -दूर तक दिखाई नहीं पड़ रहा।
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2
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नब्बे के दशक में मैं कम्युनिस्टों से सवाल पूछता था-
आप लोग खुद तो व्यक्तिगत रुप से ईमानदार हैं।फिर भी आप भ्रष्ट-जातिवादी राजनीतिक तत्वों का समर्थन क्यों करते हैं ?
ऐसे में तो आपका एक दिन ‘‘धृतराष्ट्र आलिंगन’’ हो जाएगा।
उसके जवाब में कम्युनिस्ट कहा करते थे कि ‘‘हम साम्प्रदायिक तत्वों यानी भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए ऐसा कर रहे हैं।’’
क्या वे भाजपा को सत्ता में आने से रोक सके ?
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3
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आज के कई राजनीतिक दल एक खास धर्म के
बीच के अतिवादी तत्वों की तो सख्त आलोचना करते हैं, किंतु दूसरे खास धर्म के बीच के अतिवादी तत्वों को बढ़ावा देते हैं।वोट के लिए उनसे साठगांठ करते हैं।
ऐसा क्यों करते हो भाई ?
वे जवाब देते हैं–एक खास धर्म की साम्प्रदायिकता दूसरे खास धर्म की साम्प्रदायिकता की अपेक्षा देश के लिए अधिक खतरनाक है।
मेरा उनसे कहना होता है–सभी धर्मांे के बीच के अतिवादी तत्वों का एक साथ समान रूप से विरोध नहीं करोगे तो तुम्हारा दल खुद एक दिन बर्बाद हो जाएगा। अस्तित्व तक नहीं बचेगा।
पर,वे नहीं मानते।
नतीजतन कई तथाकथित धर्म निरपेक्ष राजनीतिक दल देश में धीरे -धीरे सिकुड़ते जा रहे हैं।अभी वे और भी सिकुड़ेंगे।
अब उनका अस्तित्व सिर्फ उन्हीं इलाकों में बना रहेगा जहां के मुस्लिम मतदाता उन्हें चुनाव जितवाने के लिए निर्णायक स्थिति में हैं।
