पवन विजय : आदिवासियों को हिंदू धर्म से बाहर करने का षड्यंत्र.. राम मंदिर भारत के लिए खतरा..!

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कल राहुल गांधी ने अपने डिसमेंटल हिंदुत्व के कार्यक्रम को और आगे बढ़ाया। उनके गुरु सैम पित्रोदा कह ही रहे हैं कि राम मंदिर भारत के लिए खतरा है वहीं बारह करोड़ आदिवासियों को हिंदू धर्म से अलग करने की घोषणा राहुल गांधी ने झारखंड की एक रैली में की। मैने दो साल पहले आगाह किया था कि वामपंथ सांस्कृतिक मार्क्सवाद के रूप में वापस आने की पूरी कोशिश कर रहा है।

बारह करोड़ आदिवासियों को हिंदू धर्म से बाहर करने का षड्यंत्र को मूर्त रूप झारखंड विधानसभा द्वारा सरना कोड बिल पारित कर प्रदान किया गया। इस बिल के पास होने के मायने शायद आप लोग उतने गहरे रूप में न समझ पाएं पर यह जान लीजिए कि बारह करोड़ आदिवासियों को हिन्दू समाज से काटने की योजना पर अमलीजामा पहनाया जा चुका है। पुनेना, कोयी और गोंडी समेत 83 धर्मों की अलग पहचान और मान्यता के लिए जो खेला मिशनरियों, वामियों और लालची राजनेताओं द्वारा खेला जा रहा है वह अत्यंत विस्फोटक रूप लेने जा रहा है। आदिवासी क्षेत्रों में धर्म की मान्यता के आधार पर वोटिंग प्रणाली आकर टिक गई है।

ये काम दिल्ली अलीगढ़, बनारस इत्यादि जगहों पर बैठे नक्सली टीचर्स बखूबी अंजाम दे रहे हैं। आदिवासियों के आंकड़े इकट्ठा करना, उनका व्यवहार , रीति रिवाज परंपराओं का अध्ययन सरकारी फंड पर कर ये उसका दुरुपयोग आदिवासियों को उकसाने और हिंदू समाज के प्रति जहर भरने में कर रहे हैं। भोली सरकार उनके इस काम को शैक्षिक उन्नयन का दर्जा देती है और उन्हें प्रोमोट करती रहती है। आदिवासी क्षेत्रों के छोटे छोटे समूह जहाँ विश्व विद्यालय के नक्सली शिक्षक अपने कार्यकाल का तीन चौथाई हिस्सा बिताते हैं और वहीं के लोगों खास तौर से लड़कियों को किसी तरह शोध करवा कर विश्वविद्यालय में भर्ती करवा लेते हैं फिर उसके माध्यम से लेख, शोध पत्र लिख लिख एक अकादमिक माहौल तैयार करते हैं। साथ ही उन्हें सरकार और प्रशासन में बैठे लोगों का भरपूर सहयोग मिल रहा है।

वामियों का पाखण्ड ही उनकी प्रगतिशीलता है। एक तरफ वह राष्ट्र/धर्म को अफीम कहेंगे दूसरी तरफ वह धार्मिक पहचान को पुख्ता करने के लिए आदिवासियों में प्रॉक्सी स्थानीय राष्ट्रवाद का विष घोल रहे हैं। आप वायर, प्रिंट, फारवर्ड ब्लॉक समेत हज़ारों न्यूज़ वेब साइट्स को उठा कर देखिए कितने महीन और उन्मुक्त रूप से यह कार्य हो रहा है। एक बात समझ लीजिए , इनके लिए सत्ता महत्वपूर्ण नही है। सत्ता में कोई भी बैठा हो ये जानते हैं कि इन्हें संरचना बदलनी है और वह काम ये बड़े शांत चित्त से लगातार कर रहे हैं। लोकतांत्रिक संरचना जहां एक एक वोट का महत्व है तो ये उसकी आड़ में धार्मिक पहचान अलग करने का मुद्दा लेकर आदिवासियों के बीच मे हैं। इसी मुद्दे पर वोट करने को कहते हैं। ये जानते हैं कि आज दो कल चार परसों सौ लोग तैयार होंगे इसके लिए पर महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रतिदिन ऐसा सोचने वालों की संख्या बढ़ती रहे।

स्थानीय प्रतीकों, आदिवासी पहचान, टोटम, प्रकृति पूजा को एन्टी ब्राह्मनिकल घोषित कर हिन्दू बनाम आदिवासी मुद्दा बन चुका है। एक बात समझ लीजिए और कि किसान आंदोलन हो या सी ए ए का आंदोलन सब के तार एक ही जगह से जुड़े हैं और सब का मालिक भी एक ही है।

यह षड्यंत्र अब ओपन है, उन्हें इस बात की चिंता नही है क्योंकि वे जानते हैं कि हजार सालों से हम अपने ही भाई बंधुओं से लड़ते रहे और उनके खून के प्यासे रहे, अभी भी यही हो रहा है सो वह अपना काम निश्चिंत होकर कर रहे हैं।

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