डॉ भूपेन्द्र सिंह : केजरीवाल को छूट तो हेमंत सोरेन.. फिर तो किसान को बुवाई, व्यापारी को व्यापार के लिए भी बेल मिल सकता है…!

अरविंद केजरीवाल के अंतरिम बेल के संबंध में कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली और अपने फ़ैसले को रिज़र्व कर लिया है। इस निर्णय की प्रतीक्षा जितने जिज्ञासा से अरविंद केजरीवाल कर रहे होंगे उससे कहीं ज़्यादा इस देश की आम जनता कर रही है क्योंकि इस निर्णय से यह पता चलेगा कि क्या वास्तव में देश के प्रत्येक नागरिक बराबर हैं अथवा नेताओं के अधिकार आम आदमी के अधिकारों से अधिक हैं।

जहां एक आम आदमी को सुप्रीम कोर्ट में डेट पर डेट मिलती है वहीं केजरीवाल को न केवल तुरंत सुना गया बल्कि कई दिन सुना गया। महँगे वकीलों की फ़ौज अपने सेटिंग के लिए जानी भी जाती है और वह आतंकियों के लिए आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खोलवा सकती है और सुप्रीम कोर्ट को आधी रात को उनके लिये जागना पड़ता है।
केजरीवाल की तरफ़ से उनके वकील अभिषेक मनु सिंघवी दलील पर दलील रखते रहे जिसको ED ने ग़लत और मिसलीडिंग बताया। केजरीवाल के वकील का कहना है कि उनके मुवक्किल को जान बूझकर ऐन चुनाव से पहले उठाया गया ताकि वह चुनाव प्रचार न कर सकें जबकि वास्तविकता यह है कि इस देश में हर चार महीने पर कहीं न कहीं कोई न कोई चुनाव चलता रहता है।

कोई भी चुनाव कम अथवा अधिक महत्व का नहीं होता बल्कि सभी बराबर महत्व के होते हैं उससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ED ने एक के बाद एक 9 समन जारी किए और केजरीवाल कोई न कोई बहाना बनाकर टरकाते रहे और स्वयं से प्रयास किया कि किसी तरह आचार संहिता लग जाएगी तो शायद ED दबाव में आ जाये अथवा वह अपनी गिरफ़्तारी का राजनीतिक फ़ायदा उठा सकें। आंतरिक बेल देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के जज द्वारा अपनी तरफ़ से अति उत्साह दिखाना वास्तव में एक कुटिल अपराधी के साज़िश में शामिल होने जैसा प्रतीत होता है। हालाँकि अभी निर्णय नहीं आया है तथापि जज महोदय की टिप्पणियाँ समाज में संशय पैदा कर रहीं हैं।

ED का यह भी कहना है कि अंतरिम बेल के संबंध में उनके पक्ष को भी विस्तार से सुना जाय लेकिन ऐसा लग रहा है अदालत जल्दबाज़ी में है और वह एक पक्ष को सुनकर सकारात्मक अथवा नकारात्मक कोई भी निर्णय सुनाने के लिए आतुर है जो कि अनुचित है और जजों के ऐसे व्यवहार के कारण माननीय सुप्रीम कोर्ट के बारे में समाज में एक ग़लत धारणा बन रही है और यदि जाँच एजेंसियों को अपना पक्ष रखने के लिए समय नहीं दिया जाएगा तो भ्रष्टाचारी नेता, समाज में इन एजेंसियों के ख़िलाफ़ माहौल तैयार करेंगे और जाँच एजेंसियों को अपने दबाव में ले आयेंगे।
कोर्ट में जजों का कहना है कि विशेष परिस्थिति है और उस विशेष परिस्थिति के अन्तर्गत हम अंतरिम बेल पर सुनवाई कर रहे हैं और उसका आधार यह है कि केजरीवाल एक राजनेता हैं और इस समय देश में चुनाव है और इनको अपने पार्टी का प्रचार करना है इसलिए उन्हें राहत मिलनी चाहिए। अब यदि यहीं आधार बनेगा तो यदि कोई अपराधी किसान है तो उसको भी जुताई, बुवाई, गुड़ाई, सिंचाई और कटाई के लिए बेल मिलना चाहिए। व्यापारी को व्यापार के लिए बेल मिलना चाहिए।

चुनाव के समय प्रत्येक अपराधी को वोट डालने के लिए बेल मिलना चाहिए। डॉक्टर को OPD चलाने के लिए बेल मिलना चाहिए। आख़िर केवल राजनेता को ही विशेष सुविधा क्यों? क्या संविधान को ताक पर रखकर अब इस देश में नेता प्रथम दर्जे के और बाक़ी जनता द्वितीय दर्जे की नागरिक होगी?
और यदि केजरीवाल को चुनाव प्रचार के लिए छूट मिल सकती है तो हेमंत सोरेन की क्या गलती है? लालू यादव की क्या गलती थी? अर्थात् जिन लोगों में नैतिकता दिखाई और जेल में जाने से पहले अपना पद छोड़ दिये वह मूर्ख हैं और जो नितांत अनैतिक है और अपने पूरे प्रदेश के जनता को अनाथ करके ख़ुद पद से चिपका हुआ है, उस अनैतिक, पदलोलूप और लालची व्यक्ति के साथ भारत की सुप्रीम कोर्ट खड़ी होगी?

प्रश्न यह भी है कि फिर जिन पाँच हज़ार अन्य राजनेताओ के ख़िलाफ़ केस चल रहे हैं क्या वह इस निर्णय को अपने लिए आधार नहीं बनायेंगे? वह किस प्रकार केजरीवाल से कम महत्वपूर्ण हैं? और यदि केजरीवाल के मामले में अकेले ऐसा निर्णय आता है तो इससे स्पष्ट होगा कि कोर्ट मेरिट के बजाय व्यक्ति के आधार पर निर्णय दे रही है जो कि समानता और न्याय के मूल अवधारणा के ही ख़िलाफ़ है।

अब यदि केजरीवाल के पक्ष में कोर्ट निर्णय देता है तो इस निर्णय का एक लूपहोल और है। अब आप कल्पना करिए कि पेशेवर अपराधी यदि चुनाव आयोग में अपने पार्टी का पंजीयन करा दें तो क्या इस संभावित निर्णय को नजीर बनाकर उन्हें भी चुनाव के समय बेल देने का रास्ता नहीं खुलेगा?

एक तरफ़ कोर्ट कह रही है कि वह यदि अंतरिम बेल देती है तो उस दौरान केजरीवाल मुख्यमंत्री के रूप में कार्य नहीं कर सकेंगे। अब प्रश्न है कि संविधान में कहाँ लिखा है कि न्यायपालिका किसी मुख्यमंत्री को यह निर्देशित कर सकती है कि वह मुख्यमंत्री रहते हुए भी मुख्यमंत्री का कार्य नहीं कर सकता??

सुप्रीम कोर्ट में बैठे जजों को समझना होगा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट की गरिमा उनके वक्तव्यों और उनके निर्णयों पर टिकी होती है, अतः उन्हें किसी संभावित अपराधी अथवा आरोपी के पक्ष में खड़े होते हुए नहीं दिखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के जजों का काम न्याय देना है, उन्हें राजनेताओं की तरह पोलिटिकल करेक्टनेस की बीमारी से बचना होगा।
वैसे भी एक आम आदमी को उच्चतम न्यायालय में पहुँचने और सुनने में कई बरस लग जाते हैं, जिनको न्यायालय उनके ओहदे और पद के कारण तुरंत सुन ले रही है, वह उनके लिए एक टांग पर खड़ा दिखाई न पड़े।
अभी न्यायालय ने निर्णय दिया नहीं है, पर आशा की जाती है कि इस में शामिल जज सुप्रीम कोर्ट के प्रति जनता के विश्वास को बरकरार रखेंगे।

डॉ भूपेन्द्र सिंह
लोकसंस्कृति विज्ञानी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *