डॉ. पवन विजय : मनु स्मृति और विवाह

विवाह के कई प्रकार हैं जिनमे कन्यादान आवश्यक नही होता। जिसकी जैसी इच्छा है वह उस तरीके का विवाह करने को स्वतंत्र है। धर्मशास्त्रों के अनुसार विवाह आठ प्रकार के होते हैं। ब्राह्म, दैव, आर्य, प्रजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस और पैशाच।

श्रेष्ठ प्रकार का विवाह ब्राह्म ही माना जाता है। पाणिग्रहण, लाजाहोम और सप्तपदी युक्त विवाह का प्रकार ब्राह्म विवाह के नाम से जाना जाता है। इस विवाह में वर के गोत्र का दान कन्या को मिलता है। अग्निदेव को साक्षी मानकर वर के गोत्र दान को कन्या स्वीकार करती है। एक बात स्पष्ट कर लीजिए कि दान शब्द डोनेशन से बिल्कुल भिन्न है। धर्मशास्त्र कन्या से कहते हैं कि वह विवाहोपरांत अपने पति के परिवार की स्वामिनी है और उन्हें अपने संरक्षण में ले। कन्यादान का अर्थ उद्वह को समझे बिना आप नही समझ सकते, उद्वह से विवाह शब्द बना है। भाव और संस्कार को बाजार कभी नही समझ सकता। रही बात कि बेटी पराया धन और डोली से गयी अर्थी पर आएगी जैसे थोथे शब्दों की तो यह शास्त्रोक्त और लोक परम्परा में नही है।

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भारत में पुत्री कभी पराया धन जैसी नही थी।
याज्ञवल्क्य और मनु ने संपत्ति में दायभाग रखा है जो आज भी उत्तराधिकार कानून में बाकायदा पढ़ाया जाता है। कन्याधन, स्त्री धन का स्पष्ट वर्णन धर्मशास्त्र करते हैं।वैदिक परंपरा में एक शब्द दुहिता आता है अर्थात जो दोनों कुलों का हित करे। कन्या सर्वथा स्नेहपात्र है। कन्या के कुल में जन्म लेने से कुल पवित्र हो जाता है। कन्यादान और पैर पूजना कन्या के प्रति स्नेह भाव के उच्चकोटि की अभिव्यक्तियाँ हैं जिसका निर्वचन बाजार, तर्क, साहित्य और फ़िल्म के आधार पर सम्भव ही नही है।

फिर भी जो कन्यादान के बिना विवाह करना चाहते उनके लिए अन्य विकल्प खुले हैं। ब्राह्म के अलावा बाकी तीन प्रशस्त विवाह हेतु पात्रता आवश्यक है।ऋषि हेतु आर्ष विवाह,पुरोहित हेतु दैव विवाह या प्रजापत्य विवाह की व्यवस्था है। किंतु आप कन्यादान से बचना चाहते हैं तो आप ऐसा कर सकते हैं। विवाह पूर्व शारीरिक संबंध स्थापित कर विवाह करना गंधर्व, हरण द्वारा कन्या प्राप्त करने के बाद का विवाह राक्षस विवाह कहलाता है। खरीद फरोख्त कर के विवाह असुर विवाह और लड़की को बहला-फुसला कर, नशे में भगा ले जाना या उसके साथ कुकर्म कर विवाह करना पैशाच विवाह कहलाता है। जिन्हें कन्यादान से आपत्ति है वह विवाह के उपर्युक्त विकल्प चुन सकते हैं लेकिन यह नही हो सकता कि आपके द्वारा चुने गए असुर, गंधर्व, राक्षस या पैशाच विवाह को ब्राह्म विवाह कहा जाए।

अंतिम चार विवाह प्रशस्त नहीं हैं इसका अर्थ है कि ये अपवाद स्वरूप इसलिए स्वीकार किए गए ताकि स्त्री का सम्मान यथावत रहे। कोई पुरुष किसी स्त्री से बलात्कार करता है उसे ही उस स्त्री से विवाह करना होता है, कोई किसी स्त्री को जबरदस्ती भगा ले जाया तो उसे ही उस स्त्री से विवाह करने की बाध्यता रहे यदि स्त्री चाहे तो। ये कर्म अपराध माने गए हैं, अपराध के परिणाम को मिनिमाइज करने की व्यवस्था के लिए प्रावधान बना कि विवाह के माध्यम से स्त्री का मान सुरक्षित रखा जाए। तमाम ऐसे समाज हैं जहां क्रय मूल्य के आधार पर विवाह होता है, क्रय मूल्य वर की आर्थिक क्षमता का निर्धारण हेतु पैमाना था ।

बिना संदर्भ समझे मनु स्मृति को गाली देना एक फैशन है। गाली देने से विधान पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, हां ग़ालीबाजों की कुंठा सामने आ जाती है।

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