डॉ. पवन विजय : दंगे.. गैंग की क्रोनोलाजी समझिये.. और पांचवा सरकार को ही हत्यारी बता कर दूसरा नरेटिव तैयार करती है

आपको याद होगा कि एक जवान की तस्वीर सोशल मीडिया पर घूम रही थी जो माओवादियों के कब्जे में था , उसकी तस्वीर को जारी कर कम्युनिस्टों ने एक बयान भी जारी किया कि जवान भी उनके अपने हैं और यहाँ सुरक्षित हैं, सरकार ही जवानों की दुश्मन है। वामियों की धूर्त संतानें बार बार कहती रही हैं कि सरकार किसानों की, जवानों की और भी पता नही किसकी किसकी दुश्मन है लेकिन रुकिए! यह नरेटिव क्या माओवादियों के लिए ही सेट किया गया ? नही यह सिर्फ माओवाद के लिए नही बल्कि साहित्य से लेकर राजनीति में हर जगह क्रूर हत्यारों के बीच एक आम व्यक्ति को सुरक्षित बताने का कुत्सित प्रयास किया जाता रहा।

वीर अभिनन्दन के मामले को याद कीजिये। किस तरीके से इमरान को हीरो स्थापित करने की कोशिश की गई। मानों अभिनन्दन की वापसी करवाने में सरकार की कोई भूमिका ही नही रही और यह तो हैंडसम इमरान का बड़ा और भावुक हृदय था(जो मोदी के पास नही है) जिसकी वजह से अभिनन्दन भारत लौट सके। वामी आतंकियों की चलती तो उस आतंकवादी देश के प्रधानमंत्री को शांति का नोबल पुरस्कार दिलवा देते जिसने भारत के निर्दोष सिपाहियों की पुलवामा में हत्या करवाई।

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साहित्य में रावण जैसा भाई चाहने वाली वामपंथने प्रायः यह कहती हैं कि रावण के घर सीता सुरक्षित थी। ये दुष्ट औरतें एक बलात्कारी को भाई के रूप में चाहती हैं और उसे नैतिकता का आवरण भी पहनाती हैं। नैतिकता के आवरण और पीड़ित बताने से ही तो सामान्य जनता इनसे जुड़ सकेगी यह बात ये गिरोह जानता है इसलिए ये रावण को शांति का प्रतीक बनाकर उस पर उदास शाम वाली कविता लिखा करते हैं।

काशी में जब भोले बाबा प्रकट हुए तो वामियों ने नया पैंतरा बदला , औरंगजेब को अच्छा बताने के लिए जिस शिवलिंग को पहचानने से इनकार करते रहे उस पर थूकते खंखारते रहे उस पर उन्होंने कहा कि औरंगजेब ने उसे बड़ा सहेज संजो कर रखा।

नागपुर के दंगों के लिए सबसे अधिक जलील करने के चेहरे निकाल लाए गए हैं, आरएसएस, गडकरी, फडणवीस। पोस्ट ट्रुथ रचे जा रहे हैं और भावुक दक्खिन टोला अपने ही नायकों पर युद्ध के पागल हाथी की तरह टूट पड़ा है।

इस गैंग की क्रोनोलाजी समझिये, इसमे एक मारता है, दूसरा उसको न्यायोचित ठहराता है, तीसरा हत्यारे को असहाय और कमजोर बताता है, चौथा उस पर साहित्य रचता है और पांचवा सरकार को ही हत्यारी बता कर दूसरा नरेटिव तैयार करती है जिसकी डफली कोई कन्हैया कुमार किसी विश्वविद्यालय में महिसासुर उत्सव मनाते हुए बजाता है।

पैटर्न डिकोड करिए, इन पर दया करुणा दिखाने की कोई आवश्यकता नही है ,ये जॉम्बी हैं। इनके झूठ और कपट नीति को जानिये और बिना तथाकथित नैतिक हुए समुचित जवाब दीजिये।

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