सुरेंद्र किशोर : ये नोट असली हैं.. जरूरत लोहे के हाथों की…

इस देश के भ्रष्ट व वोटलोलुप नेताओं और घोटालेबाज अफसरों-व्यापारियों को देसी-विदेशी राष्ट्रद्रोहियों के हाथों
पूरी तरह बिक जाने से लोहे के हाथों से रोकने की जरूरत है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.
दैनिक भास्कर,पटना की खबर का शीर्षक है–
ये नोट असली हैं:
 20 करोड़ का यह ढेर बंगाल के मंत्री के सहयोगी के ठिकाने से ईडी छापे में मिला।
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यह तो एक बहुत छोटा नमूना है जो कुछ इस देश में हो रहा है।
असल में सर्वत्र लूट ही लूट है !
ईमानदारी तो अपवाद है।
प्रधान मंत्री व मुख्य मंत्री के ईमानदार होने के बावजूद लूट बंद नहीं है।
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अब एक सवाल उठता है।
विदेशी आक्रांताओं ने इस ‘सोने की चिड़ियां’ को सदियों में कितना लूटा ?
आजादी के बाद के हमारे हुक्मरानों ने क्या उनसे कम लूटा ?!!
कोई जरा इस पर रिसर्च तो करे !
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आज कल इस देश की राजनीति के तीन-चार मुख्य लक्षण
दिखाई पड़ते हैं–
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संसद और विधायिकाओं में लगातार हंगामा,शोरगुल और कई बार मारपीट और रक्तपात भी।
जो दल जिस राज्य में प्रतिपक्ष में है,वहीं उसने सदनों को उत्पात का अड्डा बना रखा है।
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वंशवाद-परिवारवाद,जातिवाद व सांप्रदायिक वोट बैंक राजनीति पर हावी है।
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अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़कर सत्ताधारी तथा कुछ अन्य नेता गण खुलेआम लूट में लगे हुए हैं।
 सांसद-विधायक फंड की लूट उसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
नरेंद्र मोदी भी ‘फंड’ के पक्षधरों के सामने लाचार हैं।
यदि कहीं कोई जांच एजेंसी या कोर्ट किसी नेता पर कार्रवाई करती है तो उस प्रभावित दल के सदस्य इस तरह सड़कों पर उत्पात करने लगते हैं मानो उनके नेता सत्य हरिश्चंद्र हैं।
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1947 के बाद कितना लूटा ?
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सन 1948 के चर्चित जीप घोटाले से लूट की शुरूआत हुई।
1969 के मेदिनीपुर लोक सभा उप चुनाव में वी.के.कृष्ण मेनन के दुभाषिया रहे पत्रकार देवेंद्र नाथ इन दिनों कोलकाता के एक अस्पताल में जीवन और मृत्यु के बीच जूझ रहे हैं।
किडनी बदलवाने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं।
मेनन साहब के बारे में देवेंद्र जी बताते हैं कि वे ईमानदार थे।
जीप खरीदने के लिए किस कंपनी को आॅर्डर दिया जाए, इसका निदेश मेनन को प्रधान मंत्री कार्यालय से गया था।
वह कंपनी पहले ही ‘दिवालिया’ हो चुकी थी।
याद रहे कि मेनन तब ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त थे।
जीप घोटाले के बावजूद प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू आखिर क्यों लगातार मेनन का बचाव क्रते रहे ?
कारण समझ जाइए।
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1963
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सन 1963 में ही तत्कालीन कांग्रेस  अध्यक्ष डी.संजीवैया को इन्दौर के अपने भाषण में यह कहना पड़ा  कि ‘वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे, वे आज करोड़पति बन बैठे।
झोपड़ियों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले लिया है।’
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1971
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उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि सिर्फ हम पर ही आरोप क्यों ?
भ्रष्टाचार तो विश्वव्यापी है।
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1980
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प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने कहा कि हम दिल्ली से 100 पैसे भेजते हैं किंतु उसमेंसे सरजमीन तक सिर्फ
15 पैसे ही पहुंच पाते हैं।
अब कल्पना कर लीजिए कि 1947 से 1980 तक 85 प्रतिशत की लूट के जरिए जनता के पैसों की कुल कितनी लूट
इस देश में हुई होगी ?
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राजीव गांधी,पी.वी.नरसिंह राव और मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्रित्व काल में घोटालों की भरमार रही।
प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी  सरकार भी भ्रष्टाचारियों के प्रति सहनशील थी।
तब की कोलकाता की ‘संडे’ मैगजिन की कवर स्टोरी गवाह है जिसके कवर पर वाजपेयी जी के एडोप्टेड परिवार के मुख्य सदस्य की तस्वीर छपी थी।
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नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों के खिलाफ विक्षुब्ध डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी भी अब तक कोई घोटाला नहीं खोज पाए हैं।
पर,मोदी का शासन तंत्र भ्रष्ट है।जनता त्रस्त है।
नीतीश कुमार खुद ईमानदार हैं।किंतु उनके शासन में भ्रष्टाचार व्याप्त है।
उत्तर प्रदेश में कुछ मंत्रियों की नाराजगी का कारण ‘पवित्र’ नहीं है।
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इन दिनों केंद्र की जांच एजेंसियां काफी सक्रिय हैं।
देश में जितने बड़े -बड़े घोटालेबाज अफसर और नेताओं के यहां से जितनी अधिक मात्रा में धनराशि बरामद हो रही है,उससे क्या पता चलता है ?
लगता है कि उनका मुख्य धंधा सेवा नहीं, बल्कि ‘नादिरशाही-चंगेजी लूट’ ही रही है।
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गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स (1772-1785)ने जम कर भारत को लूटा और भारी धन ब्रिटेन पहुंचाया था।
पर ,जब पद से हट कर खुद ब्रिटेन पहुंचा तो उसे रिसिव करने उसका मित्र बंदरगाह पर पहुंचा।
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वारेन खुद अपने लिए भी अपने साथ इतना अधिक धन भारत से स्वदेश ले गया था,उसे देखकर उस दोस्त की आंखें फटी की फटी रह गईं।
दोस्त ने जिज्ञासा प्रकट की तो वारेन ने जवाब दिया–
‘‘भारत को रौंदते और लूटते समय जो धूल मेरे जूते में अटक गई थी,वही धन इस जहाज से मैं अपने लिए ला रहा हूं।’’
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आजादी के बाद भारत में जितने छोटे -बड़े घोटाले हुए और हो रहे हैं।
जितने धन घोटाले बाज नेताओं,अफसरों और व्यापारियों के यहां से समय समय पर बरामद किए जा रहे हैं,वे वारेन हेस्टिग्ंस के जूते में फंसी धूल के बराबर हंैं।
बाकी अपार धन तो हमारे पक्ष-विपक्ष के  नेताओं तथा अन्य लोगों ने देश के बाहर या भीतर दबा रखे हैं।
  इसीलिए तो हमारा देश अब भी विकासशील ही बना हुआ है।इस देश को या इसकी जमीन को हड़पने वाली बाहरी -भीतरी शक्तियों को निर्णायक रूप से कुचलने के लिए हमारे पास सैनिक-असैनिक संसाधनों की कमी पड़ रही है।
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नोट–
यहां यह कहना उपयुक्त होगा कि हमारे यहां भी राजनीति -प्रशासन सहित हर क्षेत्र में 10 प्रतिशत अत्यंत ईमानदार लोग हैं।
  दस प्रतिशत अत्यंत बेईमान हैं।
 बाकी 80 प्रतिशत उसी दस प्रतिशत के पीछे हो जाते हैं ‘जो 10 प्रतिशत’ सत्ता में होता है।
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बाहरी-भीतरी देश द्रोहियों से इस देश को बचाने के लिए नरेंद्र मोदी को भ्रष्टों के खिलाफ और भी कठोर होना होगा।
अधिक डेमोक्रेट बनने से काम नहीं चलेगा,देश नहीं बचेगा।
अन्यथा, बाहर-भीतर के देशद्रोही राजनीति के अति भ्रष्टों और वोट लोलुपों,प्रशासन के घोटालबाजों तथा मीडिया के लालची लोगों को खरीद लेंगे और आगे क्या-क्या  करेंगे,उसकी कल्पना कर लीजिए।

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