समस्त पापनाशक श्रीहरि स्तोत्र

विष्णवे विष्णवे नित्यं विष्णवे विष्णवे नम:!
नमामि विष्णुं चित्तस्थमहंकारगतिं हरिन !!
चित्तस्थमीशमव्यक्तमनन्तमपराजितम!
विष्णुमीड्यमशेषेण अनादिनिधनं विभुम!!
विष्णुश्चित्तगतो यन्मे विष्णुर्बुद्धि गतश्च यत!
यच्चाहंकारगो विष्णुर्यद्विष्णुर्मयि संस्थित:!!
करोतिकर्मभूतोSसौ स्थावरस्य चरस्य च!
तत पापं नाशमायातु तस्मिन्नेव हि चिन्तिते !!
ध्यातो हरति यत पापं स्वप्ने दृष्तस्तु भावनात !
तामुपेंद्रमहं विष्णुं प्रणतार्तिहरं हरिम !!
जगत्यस्मिन्निराधारे मज्जामने तमस्यध:!
हस्तावलम्बन्न विष्णुं प्रणमामि परात्परम!!
सर्वेश्वरेश्वर विभो परामात्मन्नधोक्षज !
हृषीकेश हृषीकेश हृषीकेश नमोSस्तु ते !!
नृसिंनन्त गोविन्द भूतभावन केशव!
दुरुक्तं दुश्क्रित्न ध्यातं शमयाघं नमोSस्तु ते!!
यन्मया चिन्तितं दुष्टं स्वाचित्त शवर्तिना !
अकार्यं महदत्युग्रं तच्छमं नय केशव!!
ब्रह्मण्यदेव गोविन्द परमार्थपरायण !
जगन्नाथ जगद्धात: पापं प्रशम्याच्युत!!
यथापराह्ने सायाह्ने च तथा निशि !
कायेन मनसा वाचा कृतं पापमजानता!!
जौनता च हृषीकेश पुण्डरीकाक्ष माधव !
नामत्रयोच्चारणत: पापं यातु मम क्षवम !!
जो मनुष्य पापों का विनाश करनेवाले इस स्तोत्र का पठन अथवा श्रवन करता है, वह श्री, मन औरवाणी जनित समस्त पापों से छूट जाता है एवं समस्त पाप ग्रहों से मुक्त होकर श्रीविष्णु के परम पद को प्राप्त होता है! इसलिये किसी भी पाप के हो जाने पर इस स्तोत्र का जप करे! यह स्तोत्र पाप समूहों के प्रायश्चित्त के समान है! कृच्छ आदि व्रत करनेवाले के लिए भी श्रेष्ठ है! स्तोत्र-जप व्रतरूप प्रायश्चित्त से सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं! इसलिये भोग और मोक्ष की सिद्धि के लिए इनका अनुष्ठान करना चाहिये!

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