देवांशु झा : ध्यान में मोदी.. जाकी रही भावना जैसी..

बीसवीं शती के महान संन्यासियों और साधकों तक के अनेक छायाचित्र हैं–ध्यान मुद्रा के। ध्यान मुद्रा के अतिरिक्त भी अनेकानेक छवियां दैनंदिनी की हैं। कोई पूछे कि स्वामी जी कैमरामैन साथ लिए चलते थे क्या? नेहरू जी के छायाचित्रों की कौन कहे! सिगरेट पीते हुए और आंग्ल सुन्दरी के साथ आनन्द मंगल तक की छवियां हैं। हजारों लाखों छवियां। गर्वीली छवियां!! कभी तीनमूर्ति घूम आइये सरकार! उनके उत्तराधिकारियों की उनसे अधिक छवियां हैं। भांति-भांति की छवियां। ये छवियां उस समय की हैं, जब कैमरा बड़ा रेयर होता था। आज कैमरे का कोई भाव नहीं रहा। पूरा सोशल मीडिया कैमरे से आक्रांत है।

आज ज्ञानी गुणी जन उपहास कर रहे कि प्रधानमंत्री नौटंकी कर रहे। कैमरामैन साथ लेकर चलते हैं। जबकि प्रधानमंत्री की हर सामाजिक गतिविधि किसी आधिकारिक कैमरे में कैद होती रहती है। यह बहुत साधारण समझ-बूझ की बात है। आदमी हगने मूतने और सुहागरात मनाने की छवियां अपलोड नहीं कर रहा, यही सौभाग्य की बात है।

मैं नरेन्द्र मोदी के कार्यों पर कुछ नहीं लिखूंगा। केवल इतना लिखूंगा कि प्रधानमंत्री का सनातनी रूप भारत के करोड़ों करोड़ हिन्दुओं के लिए एक उदाहरण है। सर्वोच्च प्रतीक। वरना, आदमी चाहे तो गांजा दारू पीते हुए, पताया बीच और बार के भी फोटो लगा सकता है। कई बार सामने भी आया है। चौबीस घंटे प्रवचन देने वाले बाबा अपनी छवि लगाना नहीं भूलते! ओह…वह तो दैवीय कैमरा है!!

जाकी रही भावना जैसी..

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