अमित सिंघल : मैं “अनपढ़” घोषित कर दिया गया होता !
डिग्री पर याद आया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ना कभी BA की, ना ही MA की; और ना ही JNU से MA डिग्री देने का समारोह हुआ था। अतः भारतीय डिग्री लेते समय की कोई फोटो नहीं है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पॉलिटिक्स में MA की डिग्री मिली। पुनः पढ़िए, Politics में; ना कि Political Science में। आज शोर मचा देंगे कि पॉलिटिक्स में भी कोई डिग्री मिलती है !
इसी प्रकार, JNU से French में MA की डिग्री मिली है। यह French क्या है? फ्रेंच साहित्य? फ्रेंच इतिहास या कल्चर? आज मानने से ही मना कर देंगे कि फ्रेंच में भी कोई डिग्री मिलती है!
रुचिकर यह है कि मैंने इन डिग्रियों को कभी लेने का प्रयास भी नहीं किया था। सरकारी नौकरी के लिए मार्कशीट को पर्याप्त मान लिया गया था।
फिर विदेश में नौकरी के कुछ वर्ष बाद, लगभग एक दशक पूर्व, कार्यालय ने निर्णय लिया कि सभी कर्मियों की डिग्रियां एवं पूर्व कार्य अनुभव चेक होंगे।
आदेश हुआ कि ट्रांसक्रिप्ट विश्वविद्यालय से सीधे डाक द्वारा कार्यालय प्रेषित करवाई जाए। साथ ही, पूर्व कार्य का अनुभव सर्टिफिकेट भी एम्प्लायर से भिजवाया जाए।
तब एक अभियान चलाया गया जिसमे इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं JNU से डिग्रियां कलेक्ट करवाई गयी; वहां से ट्रांसक्रिप्ट सीधे सील्ड लिफाफे में प्रेषित करवाई गयी।
पहली बार भारत की डिग्रियां हाथ में आयी।
नहीं तो केजरीवाल बोलता कि मेरे पास डिग्री नहीं है; पॉलिटिक्स या फ्रेंच भी कोई विषय होता है।
अतः मैं “अनपढ़” घोषित कर दिया गया होता।
हाँ, भारत सरकार में लगभग 14 वर्ष कार्य करने के बाद भी अनुभव प्रमाणपत्र कभी नहीं मिला। इस समस्या से मैं कैसे निपटा, मैं ही जानता हूँ।
क्या अनुभव प्रमाणपत्र के अभाव में यह माना जाए कि मैंने भारत सरकार में कभी कार्य ही नहीं किया?
एक फ्रेंच दार्शनिक के शब्दों को थोड़ा घुमाकर लिखा जाए तो:
मेरे पास डिग्री है; अतः मैं साक्षर हूँ।
या फिर:
मैं साक्षर हूँ; अतः मेरे पास डिग्री है।
या फिर:
उसके पास डिग्री है; साक्षर है; पर है निपट जड़बुद्धि।