सुरेंद्र किशोर : यदि सड़कें सूनी रहेंगी तो संसद बांझ हो जाएगी’’.. आज संसद के अराजक होने का असर सड़कों पर भी !

कभी कहा गया था-
‘‘यदि सड़कें सूनी रहेंगी
तो संसद बांझ हो जाएगी’’
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आज संसद के अराजक होने का
असर सड़कों पर भी !

डा.राम मनोहर लोहिया ने कभी कहा था कि
‘‘यदि सड़कें सूनी रहेंगी तो संसद बांझ हो जाएगी ’’
अब नई स्थिति में सड़क और संसद के क्या हाल हैं ?
संसद में अराजकता फैला कर विपक्ष के एक बड़े हिस्से ने संसद को लगभग बांझ बना दिया है।
यदि कुछ ही सांसद अराजकता फैला कर संसद को ठप कर सकते हैं तो सड़कों पर कुछ ही आॅटो रिक्शा चालक सड़क को जाम तो कर HI सकते हैं।
यदि यह कहा जाए कि रिक्शा चालकों और मुख्य सड़कों पर अतिक्रमण करने वालों को हमारे सांसदों से प्रेरणा मिलती है तो वह अतिशयोक्ति नहीं होगी।
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कल एक ही साथ ऐसी दो खबरें आईं।
एक दिल्ली से और दूसरी खबर पटना से।
पटना की खबर का शीर्षक है ‘‘रुट कलर कोडिंग के विरोध में आॅटो रिक्शा चालक संघ ने किया प्रदर्शन।’’
दिल्ली की खबर है–
‘‘संसद में गतिरोध बरकरार,चार दिन में मात्र 66 मिनट चले सदन।’’
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आॅटो रिक्शे की चर्चा यहां प्रतीकात्मक है।ऐसे आंदोलनकारियों की संख्या असंख्य है।
संसद के शांतिपूर्ण और नियमानुकूल संचालित होते देखे तो अब हमें दशकों हो गये।
पटना के अराजक ट्राॅफिक व्यवस्था को ठीक करने के लिए रुट कलर कोडिंग की कोशिश शासन ने की है।पर,अक्सर ऐसी कोशिशें विफल कर दी जाती हैं।
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संसद और विधान सभाओं को नियमानुकूल चलाने की जिम्मेदारी पीठासीन पदाधिकारी, संबंधित सरकार की होती है।
आज यह काम न तो पीठासीन पदाधिकारी कर रहे हैं और न ही अन्य संबंधित पक्ष।सदन के मार्शल शोभा की वस्तु बना दिये गये हैं।(लोकतंत्र के शालीन दिनों में समाजवादी नेता राजनारायण अपने जीवने में कुल नौ बार सदन से टांग कर मार्शल आउट किये गये थे।)
यदि संसद-विधान सभाओं में ऐसी ही अराजकता कायम रहेगी तो आॅटो रिक्शा चालकों को नियमानुसार काम करने के लिए कहने का किसी को नैतिक हक नहीं रहेगा।
अराजकता के मामले में बिहार विधान मंडल का रिकाॅर्ड भी ससंद से बेहतर नहीं है।
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मैं सन 1969 से बिहार विधान सभा की बैठकों का संचालन देखता रहा हूं।
इस बीच जिस अनुपात में राजनीति और दूसरे हलकों में गिरावट आई है,उसी अनुपात में विधायिकाओं की गरिमा में भी गिरावट आई है।देखना है यह गिरावट कहां तक ढुलकती है !

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