सर्वेश तिवारी श्रीमुख : गङ्गा दशहरा !

प्रेत हो चुके साठ हजार सगर पुत्रों की याचक दृष्टि युगों से एक बूंद की आस में थी। गङ्गा… आओ माँ! उद्धार करो… मुक्ति दो… तारो माता, मुक्त करो… सगर कौन? अपने युग के नायक! सर्वाधिक शक्तिशाली, सामर्थ्यवान शासक। और उनके साठ हजार पुत्र कौन? जिनके बल की थाह यह कि फावड़ा लेकर उतर गए तो बना दिया इंदु सरोवर! हिन्द महासागर… और उन बलवानों की आत्मा भटक रही है एक बूंद गंगाजल के लिए? वह भी तब, जब उनका कोई विशेष दोष भी नहीं? कपिल मुनि की कुटिया के आगे अश्व तो किसी और ने बांधा था, वे बेचारे अश्व की सुरक्षा में नियुक्त होने के कारण अपना धर्म ही तो निभा रहे थे।


जीवन में अनेक अवसर आते हैं जब लगता है कि हम निर्दोष होने के बाद भी दण्डित हो रहे हैं। तब धर्म से भरोसा डिगता है, ईश्वर पर अविश्वास होने लगता है… पर जीवन है भाई साहब। सब कुछ आप समझ भी तो नहीं सकते। पर इतना जरूर समझ लेना होगा कि विश्व को जीत कर चक्रवर्ती सम्राट बनने जा रहे व्यक्ति के साठ हजार पुत्र यदि एक ऋषि की दृष्टि भर से ही भष्म हो सकते हैं, तो एक सामान्य व्यक्ति की क्या ही बिसात? अहंकार न पालिये! जो दिख रहा है, सब धुंआ है जो एक पल में छंट सकता है।
ऋषि ने कहा कि गङ्गा ही मुक्ति दिला सकती है। और मुक्ति मिलनी किसको थी? उस कुल के मृतकों को, जिसमें ठीक इक्कीस पीढ़ी बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम बन कर स्वयं नारायण आने वाले थे। यह कथा प्रमाण है कि इस संसार में व्यक्ति को उसके पापों से मुक्त करने का बल केवल और केवल गङ्गा के पास है।
हाँ तो सगर तप करने बैठे। गङ्गा को धराधाम पर लाने के लिए तप! समय कितना लगा? सगर की आयु बीत गयी तो उनके पुत्र ‘असमंज’ तप करने लगे। उनकी आयु पूरी हुई तो उनके पुत्र ‘रघु’ तप करने बैठे। जिस तेजस्वी, पराक्रमी महाराज रघु के नाम पर उस वंश को रघुवंश कहा जाने लगा, उन्हें भी सफलता नहीं मिली। गङ्गा की एक बूंद के लिए प्रार्थना करते करते वह तेजस्वी सम्राट प्रयाण कर गया। हम चार दिन में टूट जाते हैं न?
रघु के बाद तप करने बैठे उनके पुत्र ककुत्स्थ, पर उन्हें भी सफलता नहीं मिली। फिर उनके बाद आये भगीरथ! क्या इतिहास की पुस्तकें महात्मा भगीरथ को महाराज रघु से अधिक सामर्थ्यवान, अधिक प्रभावशाली बताती हैं? नहीं। लेकिन भाग्य के बली तो भगीरथ ही थे। जो महाराज सगर और रघु जैसे सामर्थ्यवान के भाग्य में नहीं था, वह भगीरथ के हिस्से आया। क्यों? इस क्यों का उत्तर ढूंढने से बेहतर है इस सत्य को जस का तस स्वीकर कर लेना कि जो भाग्य में नहीं हो वह नहीं मिलेगा। हम जिसके लिए प्रयास कर रहे हैं वह नहीं मिले तो इसमें हमारा कोई दोष नहीं। इसके लिए लज्जित या दुखी होने का भी कोई कारण नहीं। हमारा धर्म है प्रयास, केवल प्रयास। सम्भव है कि आपके तप का फल आपके पुत्र या पौत्र के हिस्से आना हो…
खैर! भगीरथ का भाग्योदय हुआ। उनके हिस्से गङ्गा को धरा पर लाने का श्रेय आया। सगर आदि पूर्वजों का तप पूर्ण हुआ, और पूरी हुई प्रतीक्षा उन साठ हजार प्रेतों की, जिन्हें गङ्गा ने तार दिया… कुल निष्कलंक हुआ! राम को जो आना था…
गङ्गा का सम्मान कीजिये। इस संसार में उनसे अधिक पवित्र कुछ नहीं। इस संसार में उनसे अधिक अपना कोई नहीं। इस संसार में उनसे अधिक सहज और सुलभ भी कोई नहीं। वह सबको सगर पुत्रों जैसा ही स्नेह देती रही हैं। उनकी सदा ही जय हो…
गङ्गा दशहरा की शुभकामना! आगे से गङ्गा में उतरिये तो नहाने के लिए नहीं, तरने की प्रार्थना के साथ उतरिये। निर्मल हो कर….

Veerchhattisgarh

सर्वेश कुमार तिवारी
गोपालगंज, बिहार।

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