सोशल मीडिया का सही उपयोग..- विद्यासागर वर्मा

अधिकतर लोग फ़ेसबुक का उपयोग अपने फ़ेस (आकृति) को प्रदर्शित करने के लिये करते हैं। महिलाएँ ,विशेषकर, अपनी नयी साड़ी, फ्राक या लैंगे में आवेशित हो कर अपनी सहेलियों को फ़ोटो भेजती हैं ; स्वयं मुदित होती हैं और अन्यों को मुदित करती हैं। पुरुष भी इस दौड़ में पीछे नहीं हैं। किस मित्र के साथ किस होटल में खाना खा रहे हैं, अन्य मित्रों को फोटो भेज कर सूचित करते हैं।

(लेखक श्री विद्यासागर वर्मा भारत सरकार के पूर्व राजदूत रहें हैं, वेदों को लेकर कई लेख उन्होंने लिखें हैं।)

क्या ये गतिविधियाँ उन्हें वास्तविक खुशी देती हैं? इसका उत्तर निम्न वास्तविक घटना से मिलता है।

शहनशाह औरंगज़ेब की बेटी, ज़ेबुनीशा, अपने चाचा दारा शिकोह से बहुत प्रभावित थी। दारा शिकोह उपनिषदों के मर्मज्ञ थे। उन्होंने 52 उपनिषदों का फ़ारसी भाषा में अनुवाद किया जिसके फल स्वरूप उपनिषदों का ज्ञान पाश्चात्य देशों में पहुँचा।

एक दिन ज़ेबुनीशा ने अपनी सेविका से दर्पण (Mirror) लाने को कहा। उन दिनों दर्पण एक दुर्लभ एवं नायाब चीज़ थी।

सेविका जब दर्पण ला रही थी, उसे भी उसमें अपनी आकृति को देखने की लालसा हुई। चलते-चलते दर्पण में अपनी आकृति देखते हुए, उसे ठोकर लगी; दर्पण हाथ से छूटा और टूट गया।

कांपती हुई, थर्थराती हुई आवाज़ में सेविका ने जब यह सूचना दी, ज़बुनीशा ने कहा :

ख़ूब शुद ख़ुदबीनी शिक्स्त शुद।

अच्छा हुआ ख़ुद को देखने का (अपने ऊपर इतराने का) साधन (Mirror) टूट गया।

यह था शाहज़ादी पर उपनिषदों का प्रभाव !
मनन कीजिये, खुशी कहां मिली, दर्पण में देखने से या अपने अन्दर देखने से?

उपनिषदों का संदेश है : आत्मानं विद्धि — अपने आपको पहचानो, तुम शरीर नहीं हो; आत्मतत्त्व हो; अमृत तत्त्व हो। शरीर क्षणभंगुर है –चार दिन की चांदनी।

फ़ेसबुक पर अपना फ़ेस (आकृति) प्रदर्शित करने की बजाए जो आपके पास ज्ञान है; गुण, प्रतिभा, संस्कार व संस्कृति का ख़ज़ाना है ,उसे अपने मित्रों व हितैषियों से बांटें (share) करें; न कि उलटे- सीधे चुटकले या अफ़वाएँ फ़ैला कर लोगों को भ्रमित करें तथा उनका और अपना समय व्यर्थ करें।

फ़ेसबुक-मित्रता मध्य-बीसवीं शताब्दी की लेखिनी-मित्रता ( Pen-Friendship) का आधुनिक संस्करण है। उस समय समान विचारों के दूर-दराज़ के लोग पत्राचार द्वारा ,विचार – विमर्ष करते थे जिस में कयी सप्ताह लग जाते थे।

हमें फ़ेसबुक का एवं ऋषि-तुल्य वैज्ञानिकों का धन्यवाद करना चाहिये जिन्होंने हमें तत्काल एक -दूसरे से सम्पर्क साधने का अवसर प्रदान किया।

हमें उनकी तपस्या के फल फ़ेसबुक का , समय का एवं संसाधनों का सदोपयोग करना चाहियें। अपनी संस्कृति को आगामी पीढियों में प्रचारित ,प्रसारित करना हमारा अपनी मातृभूमि के प्रति दायित्व है।

– 9871724733

 

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