डॉ. भूपेंद्र सिंग : भव्य सांस्कृतिक देशों पर अमेरिका की कुदृष्टि क्यों..!

अमेरिका किसी का दोस्त नहीं होता, वह बॉस होता है। वह आपकी सारी ठेकेदारी ले लेता है। चाहे ब्रिटेन हो, जर्मनी हो, जापान हो, फ्रांस हो या सऊदी हो, उसका अपना काम करने का एक ढंग है। वह दुनिया में किसी को अपने बराबर नहीं समझता। जापान पर परमाणु बम गिराने के बाद उसको शरणागत करके उसी ने जापान को बढ़ाया। जब जापान ज़्यादा बढ़ गया तो उसने उसे रोकने के लिए चीन को आगे बढ़ाया और उसे दुनिया का मैनुफैक्चरिंग हब बनने दिया। अब उसे एक दशक से लग रहा है कि चीन उसके पूर्ण नियंत्रण से बाहर जा सकता है तो उसे औक़ात में लाने का बार बार प्रयास कर रहा है। पर हो नहीं पा रहा है, इसलिए चीन को लेकर कुंठा बना हुआ है।


दुनिया के वे सारे देश जहाँ पर पुराने समय से भव्य संस्कृतियाँ रही हैं, वहाँ पर अमेरिका की कुदृष्टि वैसे भी रहती है, चाहे वह सीरिया हो, ईरान हो या फिर भारत, लेकिन भारत के साथ उसे एक और समस्या है और वह है भारत की आर्थिक उन्नति। वैसे उसे भारत के आर्थिक उन्नति से भी कोई ख़ास जलन नहीं है, लेकिन समस्या तब खड़ी हो रही है, जब यह बढ़ता हुआ भारत एक स्वतंत्र संप्रभु राष्ट्र की तरह व्यवहार करने लगता है। वह किसी पक्ष को चुनने के बजाय रूस से तेल खरीदता है, ईरान के तट पर चाबहार पोर्ट बनाता है और यूक्रेन से जलपोत के टरबाइन को ख़रीदता है। अमेरिका कभी किसी को बराबरी का नहीं मानता लेकिन भारत अमेरिका के साथ मित्रता चाहता है, न कि उसका छत्रप बनना चाहता है। इसलिए भारत और अमेरिका के संबंध इतने उलझे हुए हैं।
दूसरी समस्या है पाकिस्तान, पाकिस्तान के स्टेट का अपना कोई महत्व नहीं है लेकिन जिस जगह पर गोरो ने बनाया, वह बहुत महत्व का है। अमेरिका हमेशा से अफ़ग़ानिस्तान और ईरान को अपने नियंत्रण में लेना चाहता है। लेकिन यह नियंत्रण स्थापित करने के लिए उसे ऐसा राष्ट्र चाहिए जो अपने सैन्य ठिकाने को किराए पर दे सकता हो, जो अपने इंटेलिजेंस को किराए पर इस्तेमाल करने दे, जो जरूरत पड़ने पर ख़ुद को सेना लगाकर अमेरिका के लिए लड़ाई लड़ ले, जो अरब सागर में भी अपनी पहुँच रखता हो, जिसके पास ताकतवर आर्मी हो, ये सब योग्यता पाकिस्तान पूर्ण करता है। एक फ्रॉड नेशन होने से इसको अपनी संप्रभुता को किराए पर देने में कोई परहेज नहीं है। इसलिए पाकिस्तान अमेरिका की मजबूरी है। अगर अमेरिका पाकिस्तान को मुंह लगाना छोड़ दे, तो उसका दुश्मन चीन पहले से ही पाकिस्तान में बैठा है। यह स्थिति अधिक खतरनाक है क्यूंकि यदि चीन की मदद से पाकिस्तान और ईरान नज़दीक आ जाते हैं तो एक बेहद मज़बूत तिकड़ी बन जाएगी जो अमेरिका के इस क्षेत्र में दख़लंदाज़ी को समाप्त कर देगी। ऐसा अमेरिका कतई नहीं चाहता।
इस समस्या का एक मात्र समाधान यह है कि ईरान और अमेरिका की दोस्ती हो जाये और भारत भले अमेरिका के पक्ष में न भी जाये तो ऐसी स्थिति में पाकिस्तान अकेला पड़ जाएगा और चीन की भी इस क्षेत्र में दखल घट जाएगी। लेकिन ऐसा होना मुश्किल है क्यूंकि ईरान एक ऐतिहासिक राष्ट्र है और वहाँ चाहे जो सरकार में आये लेकिन अपने संप्रभुता को उस तरह से किराए पर नहीं दे सकता जैसे पाकिस्तान देता है।
भारत आज एक पक्ष चुन ले और अमेरिका के बने नियमों का पालन शुरू कर दे, अमेरिका तुरंत भारत के साथ खड़ा हो जाएगा। लेकिन ऐसा करना भारत के भारतीयता के साथ द्रोह होगा। हर राष्ट्र अलग है, उसके सोचने समझने का तरीका अलग है, भारत के लिए स्वतंत्रता बेहद महत्वपूर्ण है, दो रोटी कम मिले लेकिन मन जो आए वह बोलना यहाँ के लोगों के लिए आवश्यक है। ऐसी स्थिति में भारत के पास केवल एक विकल्प है और वह है तेज़ी से अपने आप को विकसित करना। जल्द से जल्द इकॉनमी में 4-6 ट्रिलियन डॉलर और जोड़ना। आज़ जिस तरह से चीन, अमेरिका को आँख दिखा रहा है, उसके पीछे का कारण उसकी आर्थिक महाशक्ति होना ही है। हम भले थोड़े देर से जागे हैं लेकिन रफ़्तार में तेज़ी है और दिशा में सटीकता है। बस इसी दिशा में एक डेढ़ दशक और चलना है। सभी समस्याओं का एकमात्र उपाय स्वयं की मजबूती है।

Veerchhattisgarh

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