वेद पठन पाठन हेतु “व्याकरण महाविद्यालय” में प्रवेश आरंभ
आज संसार वेद की इन रहस्यों से वंचित होता जा रहा है इस का कारण है वेद के पठन पाठन की उपेक्षा। आश्चर्य है कि अपने भारत वर्ष में भी वैदिक संस्कृति, सभ्यता, धर्म, भाषा, आचार-विचार तथा आदर्श परम्पराओं का विलोप होता जा रहा है ।

इसी को ध्यान में रखते हुए इस की पुनःस्थापना के लिए दर्शन योग धाम, संस्कृतिवन, लाकरोड़ा, गुजरात में सर्व प्रथम ‘व्याकरण महाविद्यालय’ का प्रारम्भ किया है। जिसमें 16 वर्ष से अधिक अविवाहित पुरुष को उच्च-स्तर के वैदिक विद्वानों के निर्माण हेतु प्रवेश प्रारम्भ है। सर्व साधनों से युक्त इस नव निर्मित संस्थान में क्रियात्मक योगाभ्यास सहित आर्ष पाणिनीय व्याकरण तथा प्राचीन ऋषिकृत ग्रंथों का पठन-पाठन किया जाएगा। कृपया प्रवेश के लिए प्रेरित करें । ऑनलाइन आवेदन हेतु लिंक :
आवेदन व संपर्क हेतु पतादि :
दर्शन योग धाम,
संस्कृति वन, केनाल रोड, लाकरोड़ा, ता माणसा, जिला गांधीनगर-232835 (गुजरात)
मोबाइल: +91 – 9409615011, 8200915011
Email : darshanyog@gmail.com
निवेदक
आचार्य, दर्शन योग व्याकरण महाविद्यालय (6395595306)
वेद, सनातन संस्कृति के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। वेद विश्व की सबसे प्राचीन लिखित कृतियों में से हैं इसलिये वेदों को संसार का आदि ग्रंथ कहा जाता है। वेद अपौरुषेय हैं अर्थात चारों वेद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद मानव रचित नहीं हैं, अपितु सृष्टि और मानव उत्पत्ति के बाद गहरी ध्यानावस्था में स्थित ऋषियों को अनुभूति में प्राप्त हुए थे – चार वेद।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2007 में वेदों को संसार के स्मृति रजिस्टर में शामिल करने के लिए पारित अपने एक विषेष प्रस्ताव में यह घोषणापूर्वक कहा कि “वेद सामान्यतया हिन्दू समुदाय के ग्रन्थ माने जाते हैं, परन्तु सभ्यता के इतिहास में प्रथम साहित्य रचनाओं में होने के कारण वे केवल मात्र धर्म ग्रन्थ से बहुत ऊपर हैं। ऋग्वेद, चार वेदों में से सबसे प्राचीन, आर्य सभ्यता के समस्त दृष्टिकोणों की नींव का साधन है, जो भारतीय उपमहाद्वीप से दक्षिण तथा दक्षिण पूर्व दिषा में एषिया के बहुतायत हिस्सों में फैला। प्राचीन विष्व का यह कीमती खजाना भारत में लिखित रूप में सुरक्षित रखा गया है और शताब्दियों से इसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे पहुँचाया गया है।” संयुक्त राष्ट्र संघ की यह घोषणा सिद्ध करती है कि वेद दुनिया में प्रथम ज्ञान की पुस्तक है। वेद वास्तव में सृष्टि उत्पत्ति के बाद मानव उत्पत्ति के साथ ही ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च ऊर्जा के द्वारा ध्यान में स्थित ऋषियों को प्रदान किये गये थे। वेद शब्द विद् धातु से बना है, जिसका अर्थ है ज्ञान। यह ज्ञान सृष्टि के आदि ऋषियों को अनुभूति से प्राप्त हुआ और उन्होंने आगे नूतन ऋषिकुमारों को यह ज्ञान वाणी के माध्यम से प्रेरित किया, इसलिए वेद को श्रुति भी कहा जाता है।
वेद में जीवन जीने के लिए स्वराज्य की प्रेरणा मिलती है। स्वराज्य शब्द का अर्थ यह है स्व का राज्य। स्व शब्द आत्मा के लिए भी प्रयोग होता है। इस प्रकार स्वराज्य का अर्थ आत्मा का राज्य है। भौतिकवादी संसार में अक्सर लोग अपने-अपने मन के वषीभूत अपने जीवन पर भौतिक वस्तुओं का राज्य बना लेते हैं। सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर स्वराज्य का अर्थ है स्थानीय लोगों की सत्ता। संसार के सभी लोग जब अपनी आत्मा की आवाज सुनेंगे तो उनके व्यक्तिगत जीवन में आत्मा और परमात्मा की दिव्य शक्तियों का प्रभाव दिखाई देगा। इसी प्रकार सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर जब स्थानीय लोगों के हाथों में सत्ता होती है तो उनका जीवनयापन प्रसन्नता और खुषहाली के साथ चलता है।
स्वराज्य शब्द का मूल भाव स्व से जुड़ा है। इसी स्व के साथ अनेकों प्रेरणाओं का निर्माण हुआ, जैसे स्वाभिमान, स्वाधीनता और स्वावलम्बन। वेद में जब स्वाभिमान की बात आती है तो हमें अपने स्व अर्थात् अपने जीवन के मूल तत्व आत्मा और परमात्मा पर गर्व होता है। वास्तव में मानव जीवन को ही यह सौभाग्य प्राप्त है कि वह अपने जीवन पर गर्व करे। इसी स्व के सहारे हमें स्वाधीनता की प्रेरणा मिली तो हमारा जीवन भौतिक पदार्थों से लेकर विदेशी सत्ताओं की गुलामी से स्वतन्त्रता की ओर अग्रसर हुआ। इसी स्व के साथ हमने स्वावलम्बन का पाठ पढ़ा तो हमारा जीवन सुख और समृद्धि से युक्त हो गया।
वेद का स्वास्थ्य विज्ञान एक ऐसे जीवन की कल्पना प्रस्तुत करता है, जहाँ व्यक्ति सदैव स्वस्थ रहे और कभी रोगी न हो। दुर्घटनावश प्राप्त शारीरिक विपत्तियों का उपचार भी प्रकृति द्वारा प्रदत्त भोजन सामग्री से ही सम्भव हो सकता है। वेद समूची सृष्टि के ग्रहों, उपग्रहों के साथ-साथ सूर्य की अग्नि, वायु और जल आदि तत्वों के माध्यम से अनेकों वैज्ञानिक क्रियाओं के सूत्र भी उपलब्ध कराते हैं। मनोविज्ञान से लेकर कृषि और मौसम की जानकारियों के सूत्र भी वेदों से प्राप्त किये जाते रहे हैं। वैदिक गणित तो आज के आधुनिक मानव को भी आष्चर्यचकित कर देता है। इस प्रकार वेद व्यक्ति को एक स्वावलम्बी मानव बनाकर सुख और समृद्धि का स्थायी आधार उपलब्ध कराने के लिए सक्षम है।