सुरेंद्र किशोर : भ्रष्टाचार पर रहम की बेजा उम्मीद..मोदी ने यह कह कर खेल का नियम ही बदल दिया कि..
यदि उद्धव,पवार,ममता जैसे नेता यह चाहते हैं कि उनके करीबियों को बख्श दिया जाए तो कम से कम मोदी राज में ऐसा संभव नहीं लगता
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बीते दिनों महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि राज्य में यशवंत राव चव्हाण जैसे नेताओं की परंपरा रही है,जो अपने राजनीतिक विरोधियों के साथ भी शालीन व्यवहार करते थे।
उद्धव ने यह बात अपने साले श्रीधर के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई को लेकर कही।
याद रहे कि इससे पहले शिव सेना और राकांपा के तमाम नेताओं और उनके करीबी लोगों के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियां कार्रवाई करती रही हैं।
दरअसल मोदी सरकार की कार्य संस्कृति के साथ महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं।
साथ ही, निहित स्वार्थवश उसे दिल से स्वीकार भी नहीं कर पा रहे हैं।
उद्धव ठाकरे, चव्हाण जैसे पुरानी पीढ़ी के कांग्रेस नेताओं की तरह यह चाहते हैं कि ‘तुम सत्ता में रहो तो तुम हमें बचाओे और हम सत्ता में रहेंगे तो हम तुम्हें बचाएंगे।’
आजादी के बाद और नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने तक इस देश में अपवादों को छोड़कर लगभग यही खेल चल रहा था,किंतु सत्ता संभालने के बाद मोदी ने यह कह कर खेल का नियम ही बदल दिया कि ‘न खाऊंगा और न खाने दूंगा।’
जैसा बयान उद्धव ठाकरे ने दिया,वैसा ही ममता बनर्जी भी देने में लगी हुई है।
यह उल्लेखनीय है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों के दायरे में आए नेतागण यह नहीं कह रहे हैं कि हमें झूठे मामले में फंसा दिया गया।
वे यह कह भी नहीं सकते,क्योंकि अधिकतर मामलों में अदालतें भी उनकी कोई मदद नहीं कर पा रही हैं।
ऐसी स्थिति में वे यही कह रहे हैं कि ‘हमारे खिलाफ मोदी सरकार राजनीतिक बदले की भावना से कार्रवाई कर रही है।’
ऐसे नेताओं के लिए मोदी सरकार का अघोषित संदेश है कि यदि आप भी सत्ता में आइएगा तो हमारे खिलाफ कुछ मिले ,तो जरूर कार्रवाई कीजिएगा,किंतु हमारी एजेंसियां अभी आपको कोई राहत नहीं देगी।
पिछले कुछ वर्षों की घटनाओं से यह साफ है कि मोदी सरकार भ्रष्ट एवं राष्ट्रद्रोही शक्तियों के साथ किसी तरह की नरमी बरतने के मूड में नहीं है।
ऐसा इसलिए भी है कि इस देश की राजनीति में जो महा भ्रष्ट हैं,उनमें से कई के काम ऐसे रहे हैं ,जिनसे राष्ट्रद्रोहियों को मदद मिलती है।
मोदी सरकार के सत्ता में आने के कुछ ही महीने बाद भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे एक पूर्व मुख्य मंत्री ने एक केंद्रीय मंत्री से कहा था कि हमारे खिलाफ जारी मुकदमों में केंद्र सरकार रहम करे तो उसके बदले हम अपने राज्य में भाजपा को बिना शर्त समर्थन देंगे।
पर उन्हें कोई राहत नहीं मिली।
कांग्रेस भी मोदी सरकार से वैसी ही मदद की उम्मीद करती रही है,जैसी दूसरी गैर कांग्रेसी सरकारें उसकी करती रहीं।
याद रहे कि बोफोर्स मामले में सन 2003 के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सी.बी.आई.ने सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं की।
इस फैसले से आरोपितों को राहत मिली थी।
तब केंद्र में राजग की सरकार थी।
कांग्रेस पार्टी नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी की इस स्थापना की समर्थक लगती है कि ‘भ्रष्टाचार अर्थ व्यवस्था की गाड़ी के पहिए को तेजी से आगे बढ़ाता है।’
यह ध्यान रहे कि राहुल गांधी की न्याय योजना, अभिजीत बनर्जी के दिमाग की ही उपज मानी जाती है।
अब यशवंत राव चव्हाण पर आते हैं।
जब 1967 में वह केंद्रीय गृह मंत्री थे ,तब उन्होंने संसद में कहा था कि केंद्रीय एजेंसी की उस रपट के प्रकाशन से अनेक व्यक्तियों और दलों के हिताों की हानि होगी ,जिन पर
विदेश से पैसे लेने के आरोप हैं।
इससे पहले 1967 के आम चुनाव के बाद नौ राज्यों में गैर काग्रेसी सरकारें बन गई थीं।
और लोक सभा में भी कांग्रेस की संख्या पहले की अपेक्षा कम हो गई थी।
इस पर प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को लगा कि शायद ऐसा विदेशी पैसों के यहां के चुनाव में भारी इस्तेमाल के कारण हुआ है।
केंद्रीय गुप्तचर एजेंसी ने इसकी जांच की।
जांच में पाया गया कि कांगेस सहित कई दलों ने चुनाव खर्च के लिए विदेश से पैसे लिए हैं।
इस जांच रपट को सरकार ने दबा दिया।
पर, एक अमरीकी अखबार ने उसका सारांश छाप दिया।
संसद में हंगामा हुआ।
पूरी रपट प्रकाशित करने की मांग की गई।
इसी पर चव्हाण साहब ने कहा था कि ‘इससे अनेक दलों को हानि होगी।’
शायद उद्धव ठाकरे ऐसा ही सद्भाव मोदी सरकार से चाहते हैं।
प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार के संदर्भ में यह भी याद रहे कि सन 1985 में प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि केंद्र सरकार जो सौ पैसे भेजती है,उसमें से 15 पैसे ही लोगों तक पहुंचते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में इस मामले में स्थिति में काफी सुधार हुआ है, किंतु स्थिति अभी संतोषजनक नहीं है।
यदि उद्धव ठाकरे ,शरद पवार ,ममता बनर्जी जैसे नेता यह चाहते हैं कि उनके करीबियों को उस तरह माफ कर दिया जाए ,जिस तरह चव्हाण जैसे नेता करते थे तो वह कम से कम मोदी राज में संभव नहीं लगता।
घटनाएं ठीक इसके विपरीत हो रही हैं।
उत्तर प्रदेश में आर्थिक अपराधियों और माफिया के खिलाफ योगी सरकार की कार्रवाई से आम जनता का बड़ा हिस्सा खुश और संतुष्ट है।
ऐसी ही तमाम कार्रवाई सन 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने भी शुरू की थी।
नतीजतन जनता ने सन 2019 में मोदी को पहले से अधिक बहुमत दिया।
कम ही लोगों ने इस पर ध्यान दिया होगा कि मोदी देश के विरले नेताओं में से हैं जिन्हें जनता ने उनकी लोकप्रियता के बल पर लगातार दूसरी बार प्रधान मंत्री बना कर अपना विश्वास जताया।
जवाहरलाल नेहरू सिर्फ अपने बल पर चुनाव नहीं जीतते थे।
उस समय राज्यों में जनाधार वाले अनेक क्षेत्रीय कांग्रेस नेता मौजूद थे,जो स्वतंत्रता आंदोलन की उपज थे।
यही हाल इंदिरा गांधी का था।
1971 और 1980 में इंदिरा गांधी अपने बल पर विजयी जरूर हुई किंतु 1977 में उन्हें भारी पराजय का सामना करना पड़ा था।
देश के नक्शे पर एक नजर दौड़ाइए।
कश्मीर से लेकर केरल और महाराष्ट्र लेकर बंगाल तक कितने ही नेताओं या उनके करीबियों के खिलाफ गंभीर आरोपों में मुकदमे चल रहे हैं।
उम्मीद है कि सन 2024 के आम चुनाव से पहले इनमें से अधिकतर तार्किक परिणति तक पहुंच जाएंगे या पहुंचने के करीब होंगे।
इसका असर 2024 के चुनावों पर भी पड़ेगा।
ऐसा देखा गया है कि जो मतदाता नेताओं के भ्रष्टाचार की सिर्फ चर्चाओं से प्रभावित नहीं होते, वे भी अदालत की ठोस कार्रवाई पर मान लेते हैं कि जरूर गलती हुई है।
तभी तो कोर्ट ऐसा कह रहा है।
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1 अप्रैल 22 के दैनिक जागरण(सभी संस्करण) और नईदुनिया(मध्य प्रदेश) में एक साथ प्रकाशित
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