NRI अमित सिंघल : एक लेख प्रियंका की प्रशंसा में!

मार्च 2018 के फाइनेंसियल टाइम्स में नाइजीरिया के रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर – लामिदो सनूसी – का इंटरव्यू छपा था। सनूसी एक राजपरिवार से है और वे पूछते है कि “विरासत में मिले विशेषाधिकार के बारे में मैं दोषी क्यों महसूस करू?”

अफ्रीका में सबसे बड़े तेल उत्पादक देश होने के बावजूद नाइजीरिया की आर्थिक हालत खराब है, बोको हराम जैसे आतंकी संगठन से प्रताड़ित है। और यह सब अभिजात वर्ग के द्वारा प्रयोग किये गए विशेषाधिकारों के द्वारा, जिसने जनता को जानबूझकर गरीब रखा है, के कारण है। कई ऐसे उदहारण मैं दे सकता हूँ।

मैंने उस समय एक लेख में सनूसी की प्रशंसा की थी कि उनमे यह कहने का साहस है। और इस साहस के अभाव के कारण राहुल-प्रियंका-लालू-अखिलेश इत्यादि की आलोचना की थी।

आज के लेख में मैं प्रियंका की प्रशंसा करने के लिए लिख रहा हूँ कि उन्होंने अपने राजघाट सम्बोधन में विरासत में मिली राजसत्ता का बचाव किया।

करना भी चाहिए।

कारण यह है कि स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस के शासकों ने एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जिसमें जनता की भलाई और सेकुलरिज्म के छद्म नारों के नाम पर अपने आप को, अपने नाते रिश्तेदारों और मित्रों को समृद्ध बना सकें। अपनी समृद्धि को इन्होंने विकास और सम्पन्नता फैलाकर नहीं किया, बल्कि जनता के पैसे को धोखे से और भ्रष्टाचार से अपनी ओर लूट कर किया।

याद कीजिये कि विजय माल्या (समाजवादी पार्टी और कांग्रेस), अनिल अम्बानी और अमर सिंह (समाजवादी पार्टी), बिड़ला (कांग्रेस), राजकुमार धूत (शिव सेना) इत्यादि किस पार्टी से राज्य सभा में भेजे गए थे।

ललित मोदी, नीरव मोदी, विजय माल्या इत्यादि को किस पार्टी के शासन में लोन मिला था? कैसे मिला था?

यही हाल यूपी में समाजवाद और सेकुलरिज्म के नाम पे खेल गया जहाँ एक ही परिवार के 16-17 लोग संसद और विधानसभा के सदस्य बन गए।

और यह सब हुआ गरीबी मिटाने के नाम पे, समाजवाद के नाम पे, दलित, पिछड़ी जातियो और अल्पसंख्यको की तथाकथित उन्नति के नाम पे।

स्वयं अंग्रेजी स्कूलों और विदेश में पढ़े, लेकिन जनता को आधुनिक शिक्षा से ना केवल वंचित रखा, बल्कि उन्हें नक़ल करने को प्रोत्साहित किया। क्योकि नक़ल से पास किये लोग उन्हें चुनौती नहीं दे सकते; अगर वे किसी बात पे आन्दोलन करेंगे तो उन्हें कुछ नारों और लोलीपोप से संतुष्ट कर दिया जाएगा।

और अगर कोई फिर भी चुनौती देता है, तो उसकी शैक्षिक योग्यता पर प्रश्नचिन्ह उठा दिया जाएगा। जैसे कि केंद्र एवं राज्य सरकारों के मुखिया एवं मंत्रियों का “सेलेक्शन” UPSC द्वारा किया जाता हो; और उस चयन प्रक्रिया में केवल वही लोग बैठ या वोट दे सकते है जो ग्रेजुएट हो।

ऐसा नहीं है कि यादव परिवार – चाहे यूपी में या बिहार में – या मायावती या केजरीवाल अभिजात वर्ग में पैदा हुए थे। लेकिन वह बहुत जल्दी यह समझ लेते है कि कैसे सत्ता पे स्लोगनों के द्वारा, बदलाव के नाम पे, कब्ज़ा करना है। एक बार जब सत्ता मिल गयी तो वे स्वयं उसी अभिजात वर्ग के सदस्य हो जाते है और फिर वह अपनी नयी सामाजिक स्थिति एवं स्टेटस को बनाये रखने में लग जाते है।

आप नोट करिये कि सत्ता में आने के बाद कैसे वे सबसे पहले मीडिया को विज्ञापन, प्लाट, मकान, विदेशी यात्रा, कॉलेज में सदस्यता, ठेके इत्यदि की “घूस” देते है, जिससे वे अपनी दुम हिलाये और उनकी कारगुजारियो को अनदेखा करे।

आप पता तो करिये कि प्रियंका को सरकारी कोठी किसके समय में और कैसे मिली, जबकि शहरी विकास मंत्री जगमोहन उनको कोठी देने का घोर विरोध कर रहे थे? क्या प्रधानमंत्री मोदी जी का परिवार एस पी जी की सुरक्षा के बहाने कई कोठिया दिल्ली में नहीं हथिया सकता था?

मेरा उद्देश्य यह है कि हमें यह समझना चाहिए कि आज भारत में अभिजात वर्ग के मध्य घमासान मची हुई है, और यह वर्ग भयंकर तौर से असुक्षित और भ्रमित महसूस कर रहा है। चूंकि प्रधानमंत्री मोदी इन एलीट्स – अभिजात वर्ग के लोगो – की नहीं सुनते है, इस वर्ग को अपने विशेषाधिकार खोने की चिंता है।

अतः प्रियंका ने …र्मी से अपने “राजपरिवार” को विरासत में मिली राजसत्ता का बचाव कर ही दिया। कारण यह है कि कल प्रियंका को अपने पुत्र-पुत्री को भी प्रधानमंत्री बनवाना है। अतः कब तक जनता को बरगलाते।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *