अमित सिंघल : राष्ट्रवाद से आशय.. और ऐसे लोगो को एक सुदृढ़ प्रतिउत्तर दिया जाना चाहिए
इस वर्ष शिव अरूर एवं राहुल सिंह की लिखी तीन पुस्तक – India’s Most Fearless 1, 2 एवं 3 – पढ़ी। फिर आनंद रंगनाथन की ‘हिन्दू राष्ट्र में हिन्दुओ की रामकहानी – हाशिए का नागरिक और राज्य-प्रायोजित नस्लभेद का भुक्तभोगी’ समाप्त की। इस समय विदेश मंत्री जयशंकर की पुस्तक – Why Bharat Matters – पढ़ रहा हूँ। पूर्व में जे साईं दीपक की दोनों पुस्तके – India that is Bharat – पढ़ चुका हूँ।
यह इसलिए लिखा कि पहली बार ऐसी पुस्तकों को पढ़ने का अवसर मिला जो राष्ट्र की चुनौतियों, प्रयासों एवं उपलब्धियों को भारत की संस्कृति, परंपरा एवं विरासत के लेंस से देखते है। इस लेंस को कई लोग राष्ट्रवादी एंगल भी कहते है।
महत्वपूर्ण यह है कि यह सभी पुस्तके कोई काल्पनिक कहानी नहीं बता रही है। एक-एक वाक्य तथ्यों एवं साक्ष्यों पर आधारित है। जो कुछ भी मैंने विदेशी लेखकों के सन्दर्भ से भारत या अन्य विषयों के बारे में पढ़ा था, उपरोक्त पुस्तके पूर्व में प्राप्त “ज्ञान” का पुनरावलोकन एवं पुन: समीक्षा करने के लिए फोर्स करती है।
जयशंकर लिखते है कि यह एक निर्विवाद वास्तविकता है कि हमारा जीवन कई बार उन घटनाओ से प्रभावित होता है जो कहीं और घटती है – चाहे वह समस्या हो या उसका समाधान। साथ ही हमें उन घटनाओ से ऐसे निपटना होता है जिससे बाहरी शक्तियां हमारे राष्ट्रीय विचार-विमर्श एवं विकास में हस्तक्षेप ना कर सके।
चाहे उग्रवाद हो या अन्य चुनौतियाँ, उन्हें कुछ समर्थको द्वारा सिविल सोसाइटी (NGO) या पहचान के नाम से बढ़ावा मिलता है और ऐसे लोगो को एक सुदृढ़ प्रतिउत्तर दिया जाना चाहिए। स्थापित समाचारपत्र UN द्वारा प्रतिबंधित व्यक्तियों को अपने सम्पादकीय पेज पर लेख दे रहे है (न्यू यॉर्क टाइम्स को ओर संकेत है) तथा प्रख्यात ब्रॉडकास्टर्स (बीबीसी एवं कुछ भारतीय चैनल की ओर इशारा है) राजनीतिक कुल्हाड़ी चला रहे है जो उनकी मानसिकता एवं उद्देश्य को इंगित करता है।
आश्चर्यजनक रूप से, प्रशासन में सुधार, तकनीकी का प्रयोग (आधार) एवं लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों (370 की ओर संकेत) को सुलझाने को स्वतंत्रता के विरूद्ध कहकर आलोचना की जाती है। यहाँ तक कि प्रमुख संस्थाएँ किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दुष्प्रचार का सहारा लेती है। इतिहास को साफ़ कर दिया जाता है और प्रतिकूल घटनाओ को इग्नोर कर दिया जाता है।
दो-टूक शब्दों में कहें तो, कुछ ऐसे इंटरेस्ट या हित रहे हैं जो एक सशक्त एवं संघटित भारत के विरूद्ध कार्य करते है। पूर्व में, ऐसी शक्तियां हमारे सामाजिक विभाजन (fault lines) – जैसे कि धर्म, भाषा, जातीयता या सामाजिक स्तर – का दोहन करती आयी थी। कदाचित हमें स्वयं से प्रश्न पूछना चाहिए कि भारत में अलगाववाद को विदेश के कुछ हिस्सों में समर्थन क्यों मिल रहा है? या फिर, भारत के विरूद्ध आतंकवाद को क्यों कमतर आँका जाता है या फिर उसे डिफेंड किया जाता है?
और फिर हमारी कमजोरियों के साथ, हमारी आश्रित या मातहत वाली मानसिकता को डिफेंड किया जाता है, जिसे वैश्विक सोच के छद्मवेष में लपेट दिया जाता है।
जयशंकर लिखते है कि एक राष्ट्रवादी दृष्टिकोण सहज रूप से एक राष्ट्रवादी कूटनीति अपनाएगा और यह एक ऐसा तथ्य है जिसका विश्व को अभ्यस्त होना पड़ेगा। वह आगे कहते है कि जीवन में कदाचित ही ब्लैक एंड व्हाइट विकल्प मिलते है (अर्थात, पूर्णतया सही या पूर्णतया गलत) और निर्णय लेने की प्रक्रिया की जटिलता को समझ करके ही अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धो को समझा जा सकता है। फिर भी एक प्रमुख उभरती शक्ति को केवल उचित विश्लेषण एवं क्षमता की ही आवश्यकता नहीं होती है। उस शक्ति को सर्वप्रथम अपने मूल्यों एवं मान्यताओं (beliefs) पर विश्वास होना चाहिए, और अपनी नीतियों को उन प्रतिबद्धताओं के अनुसार बनाना चाहिए। और उन नीतियों को संस्कृति, परंपरा एवं विरासत से प्रेरणा लेनी चाहिए।
अतः इंडिया तभी प्रगति कर सकता है जब वह सही मायने में भारत हो।
That is why India can only rise when it is truly Bharat.