डॉ. पवन विजय : परिवार को चकलाघर बनाना ही फेमिनिष्ट साहित्यकारों का उद्देश्य
कुछ समय पहले प्रगतिशील नारीवादी लेखिकाओं के पटल पर एक चर्चा थी कि 70 प्रतिशत स्त्रियों को शारीरिक सुख नही मिलता अतः उन्हें कहीं भी शारीरिक संबंध बनाने की छूट मिलनी चाहिए, वही स्त्रियां आज अपने पति को दूसरी औरत को सौंपने की बात पर लहालोट हुई जा रही हैं।
आप जब दाम्पत्य संबंध में होते हैं तो वहाँ भावनात्मक जुड़ाव सबसे महत्वपूर्ण होता है। जब एक औरत/आदमी अपने पार्टनर से असंतुष्ट होती/होता है तो अपवाद छोड़ दें तो उसे दुनियां का कोई व्यक्ति संतुष्ट नही कर सकता। हो सकता कि वह फौरी तौर पर किसी से संतुष्ट हो जाए पर थोड़े दिन बाद उससे भी असंतुष्ट होकर उसकी तलाश किसी और के लिए शुरू हो जायेगी।
दरअसल असंतुष्टि देह की नही बल्कि मन की होती है, भाव में होती है। हम जिसे चाहते हैं उससे दृष्टि मिलते संसार के सारे सुख मिल जाते हैं। जो स्त्रियां नैतिकता को तोड़कर किसी भी आदमी की गोद में बैठने की बात को अपना अधिकार बता रहीं या पति को दूसरी के पास भेजने की बात कर रही हैं दरअसल वे पूरी मानव जाति को वेश्यालय में तब्दील करना चाहती हैं जबकि वेश्याएँ नख भर दैहिक सुख से शायद ही परिचित हो पाती हों। सत्तर तीस की असंतुष्टि वाला तर्क आदमियों पर लागू होने लगे तो पड़ोस भी चकले में बदल जाएगा। परिवार को चकलाघर बनाना ही फेमिनिष्ट साहित्यकारों का उद्देश्य है।
वामपंथियों का मुखौटा बदलता रहता है पर मुखौटे के पीछे का चेहरा असंतुष्ट और विद्रूप हमेशा होता है। आज वे नया विमर्श लेकर आए हैं सत्तर प्रतिशत वाला मसला पुराना हो गया है अब प्रेमिका पत्नी पर कुछ दिन हल्ला मचाएंगे।
हांटेड स्त्रीवाद से स्त्रियां बचें, मेरी मंगलकामनाएं हैं।