बालको से 1.22 अरब की वसूली..लेटर नहीं इस मैटर पर आए वनविभाग.. हाईकोर्ट अधिवक्ता अजय राजवाड़े बोले शीघ्र वसूल होगा ऐसे.. तिलस्म टूटेगा “अक्सर” का…??
कोरबा। गंभीरता से वनविभाग कोरबा द्वारा अगर कार्यवाही की गई होती तो अब तक बालको प्रबंधन के द्वारा छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार रुपये जमा कर दिया गया होता लेकिन वनविभाग और बालको दोनों ही गाय-बिल्ली का खेल खेलकर शासन-प्रशासन-आमजन की आंखों में धूल झोंक रहे हैं।
वनविभाग द्वारा वसूली की कार्यवाही का रास्ता ऐसे है जैसे एक पांव में 6 नंबर और दूसरे पांव में 9 नंबर की चप्पल पहनकर सुपरफास्ट अमेरिका यात्रा या बैलगाड़ी से एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचना। अवमानना याचिका दायर करने की आड़ लेकर पत्राचार एक प्रकार से अपने आप को दूध का धुला सिद्ध करने का प्रयास मात्र था। बड़े-बड़े विशेषज्ञों की टीम के साथ लगातार कानूनी प्रक्रिया से 2-4 होने वाले वनविभाग को क्या मालूम नहीं था कि अवमानना याचिका दायर करने की समय सीमा कितनी होती है ? क्या वन विभाग को यह भी मालूम नहीं था कि वास्तव में वसूली का सीधा रास्ता क्या है ? क्या पता नहीं था वनविभाग को कि वसूली का सीधा रास्ता वन विभाग के कार्यालय से होकर लगभग 1 किलोमीटर पास ही में कहां तक जाता है?
कुल मिलाकर यह कि सार्थक प्रयास करके परिणाम हासिल करने के स्थान पर मात्र कागजों पर खानापूर्ति की कार्यवाही करना वनविभाग का उद्देश्य रहा है।
” नाच न आवे आंगन टेढ़ा” वाली बात भी वसूली के इस simple रास्ते पर वनविभाग के लिए नहीं था। मतलब नाचना भी आता है और आंगन भी टेढ़ा नहीं है। बस नहीं है तो वनविभाग के पास इच्छाशक्ति नहीं है क्योंकि लोगों को भी समझ आ रहा है..सरकार किसी की भी हो सिस्टम की स्थिति किसी से छिपी हुई नहीं है।
माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के द्वारा जारी आदेश माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर का पत्र कमांक / 5328/96 में पारित आदेश 06.02.2009 एवं रिट अपील कमांक 69/2009 में पारित आदेश दिनांक 25.02.2009 के बाद से वनविभाग के अनुसार वर्तमान राशि एक अरब बाईस करोड़ चौदह लाख सत्ताईस हजार तीन सौ पंचानवे रुपये की वसूली के लिए वनविभाग के द्वारा बालको को लगातार स्मरण पत्र लिखा गया है। एक प्रकार से देखा जाए तो लगातार स्मरण पत्र जारी कर वनविभाग द्वारा “अंतिम पत्र है” “कानूनी कार्यवाही करेंगे” “180 वन अधिनियम के तहत कार्यवाही करेंगे” मात्र “चेतावनी भरे पत्र लेखन” की परंपरा का औपचारिक रूप से निर्वहन किया गया है और अगर नहीं की गई है तो “ठोस कार्यवाही।”
विकराल रूप दिखाते हुए 14.12.2015 को अवमानना याचिका दायर करने को लेकर बालको प्रबंधन को वनविभाग के द्वारा पत्र लिखा गया था और उसके बाद अवमानना याचिका के प्रकरण को प्रक्रिया में आते-आते लगभग 3 वर्ष बीते और में परिणाम परम शून्य रहा।
बालको से वनविभाग की इस कार्यवाही से शीघ्रता से होगी वसूली.. बोले हाई कोर्ट अधिवक्ता अजय राजवाड़े..

हाई कोर्ट अधिवक्ता अजय राजवाड़े कहते हैं – “एक अरब बाईस करोड़ चौदह लाख सत्ताईस हजार तीन सौ पंचानवे रुपये वनविभाग कोरबा द्वारा बालको प्रबंधन से वसूली की कार्यवाही शीघ्रता से हो जायेगी। बालको प्रबंधन को अगर किसी भी प्रकार का स्थगन आदेश किसी न्यायालय से नहीं मिला है तो वनविभाग को इस वसूली के लिए जिला न्यायालय में माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय द्वारा जारी आदेश के निष्पादन के लिए एक प्रकरण माननीय जिला न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है। जिला न्यायालय में प्रकरण प्रस्तुत करने के बाद भी अगर बालको प्रबंधन के द्वारा राशि जमा करने के संबंध में सकारात्मक पहल अगर नहीं किया जाता है तो इस स्थिति में वनविभाग द्वारा आगे की कार्यवाही करने के लिए रास्ता साफ हो जाएगा।”
वनविभाग के द्वारा निष्पादन प्रकरण माननीय जिला न्यायालय में प्रस्तुत करने के बाद बालको प्रबंधन की ओर से जवाब दिया जा सकता है। न्यायालय द्वारा उत्तर से संतुष्ट नहीं होने की स्थिति में वसूली की राशि जमा करने का निर्देश जारी किया जा सकता है। इस स्थिति में भी अगर विपरीत परिस्थितियां निर्मित हुई तो संपत्ति का विवरण प्रस्तुत कर कुर्की की कार्यवाही आगे की जा सकती है।
बालको प्रबंधन को अगर किसी भी प्रकार का स्थगन आदेश किसी न्यायालय से अगर नहीं मिला है तो निष्पादन प्रकरण से लेकर आगे की कार्यवाही करने के संबंध में प्रकरण माननीय जिला न्यायालय में प्रस्तुत करने के पश्चात किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आएगी।
वेदांता के लिए एक अरब डॉलर मूंगफली के दाने के बराबर

बालको प्रबंधन क्यों नहीं मूंगफली दाना सूंघा देता
अब मेटल और माइनिंग किंग अरबपति मालिक अनिल अग्रवाल के अनुसार जब इतना बड़ा ऋण मूंगफली के दाने के बराबर है तो बालको प्रबंधन द्वारा क्यों वनविभाग की छोटी वसूली चुकाने में देरी की जा रही है? न्यायालयीन प्रकरण की बात सामने रखकर इतने लंबे अरसे तक यानी कि लगभग 13-14 वर्षो से वनविभाग की राशि को रोके रखना कितना न्यायसंगत है ?? बालको प्रबंधन के लिए तो यह राशि वनविभाग को मूंगफली का दाना सुंघाने के बराबर ही होगा।
हाथ क्यों कांप रहे हैं वनविभाग के
सोचनीय और शोचनीय स्थिति है वनविभाग की
वन संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत वन विभाग द्वारा चिन्हित एवं अधिसूचित भूमि का स्वरूप किसी भी रूप में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। किसी विशिष्ट परियोजना के क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकार को भी ऐसी जमीन की जरूरत होती है तो उसे वन भूमि के उपयोग की अनुमति भारत सरकार से लेनी होती है लेकिन बीते दिनों से भारत सरकार के वन संरक्षण अधिनियम का खुला उल्लंघन करते हुए पिकनिक स्पॉट सतरेंगा जाने वाले मार्ग पर भी जिस प्रकार से बालको प्रबंधन के कारिंदों के द्वारा राखड़ डंप कर जंगल के पर्यावरण को बर्बाद करने की दिशा में काम करना आरंभ किया है, वह चिंता का विषय है।
निष्पादन प्रकरण जिला न्यायालय में वनविभाग की होगी लापरवाही या कार्यवाही..?
“अक्सर” वाला तिलस्मी तिलस्म टूटेगा या.. !!”
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