बालको दिखा रहा रोज दम.. सांसद श्रीमती ज्योत्सना महंत का पत्र हुआ बेदम.. जंगल का चीरहरण कर शहर में सर्कस की तैयारियों में बालको प्रबंधन…

राखड़ ही है, जिसके चलते कोरबा देश का भले ही 17 वां सबसे प्रदूषित शहर है लेकिन जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधि की बात को हवा में उड़ाने में कोरबा स्थित बालको प्रबंधन टापोंटॉप पर है.. एक नंबर पर परचम लहरा रहा है और यह कोई हवा-हवाई बात नहीं है, दस्तावेजों में है, नित घट रहा है।

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जागरूक सांसद श्रीमती ज्योत्सना महंत के द्वारा कुछ समय पूर्व पत्र लिखकर प्रदूषण फैला रहे उद्योगों पर वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ), कारखानों से निकलने वाले दूषित जल व अन्य अपशिष्ट के सुचारू प्रबंधन का पालन नहीं करने की स्थिति में अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की बात कही गई थी लेकिन इसके बाद से जिस प्रकार से बालको प्रबंधन के द्वारा शहर के साथ अब संरक्षित वन क्षेत्रों को बर्बाद करने की दिशा में काम किया जा रहा है वह निंदनीय है, गंभीर चिंता का विषय है और सबसे बड़ी दुर्भाग्य की बात यह है कि यह सब क्रम सांसद श्रीमती महंत द्वारा आवाज उठाने के बाद बढ़ा है।

कोरबा में प्रदूषण का स्तर दिल्ली के बराबर

ऊर्जा नगरी कोरबा प्रदूषण को लेकर दिल्ली शहर के बहुत करीब पहुंच चुका है। प्रदूषण को लेकर नई दिल्ली स्थित एक एनजीओ एनवायरनिक्स ट्रस्ट की कुछ समय पूर्व जारी रिपोर्ट के अनुसार कोरबा में कई बार ऐसा हुआ है, जब दिल्ली से भी अधिक प्रदूषण की मार कोरबा के रहने वालों को झेलनी पड़ी है और यह स्थिति 9 अक्टूबर 2022 को निर्मित हुई जब कोरबा में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) 227 तो दिल्ली का 43 रहा।

बंजर जंगलों में रेगिस्तान उगाने की तैयारियां

बालको प्रबंधन को हरे-भरे जंगल शायद बंजर जमीन नजर आते हैं और यही कारण है कि अब सतरेंगा जाने वाले मार्ग में जगह-जगह रेगिस्तान उगाने के लिए जहरीले राखड़ को डंप किया जा रहा है। किसी भी राखड़ डैम के आसपास की कृषि भूमि की स्थिति तो यह होती है कि फसलों की पैदावार घटकर आधी हो जाती है, सो सैकड़ों किसानों का रोजगार लूटना स्वाभाविक है। किसान अपनी व्यवस्था तो कर लेंगे…

….लेकिन बड़ा यक्ष प्रश्न तो जंगल में बसने वाले निरीह पशु-पक्षियों का है। तेज़ हवा चलने पर जब यह राखड़ उड़ेगा तो पेड़-पौधों पर उसकी राख जमेगी और जब राख जमेगी तो पेड़ पौधों की पत्तियां गलेंगी।

राख के जम जाने से और पत्तियों के गलने से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया रुक जाएगी, जिसके कारण पेड़-पौधों में फल आने कम हो जाएंगे और वन्य प्राणियों का जीवन इन्हीं फलों पर निर्भर रहता है। जब फलों की कमी से जीवन पर संकट आएगा तो वन्य प्राणियों का समूह शहर की ओर आएगा। अभी हाल ही में हाथियों का तांडव नृत्य शहरी क्षेत्रों में होते-होते रह गया है। अब राखड़ जंगल में जायेगा तो जंगलवासियों को भी ठिकाने के लिए जगह चाहिए और ऐसे में बालको के सौजन्य से शहर में सर्कस दिखाने वे आएंगे ही।

जंगल के शांत वातावरण में सन्नाटे की गूंज

सबसे बड़ी बात तो यह भी है कि वन्य प्राणियों के संरक्षण में सबसे बड़ी समस्या हेवी लोडेड मालवाहक वाहनों की होती है। अभी तो बालको प्रबंधन द्वारा पिक्चर का ट्रेलर ही जारी किया जा रहा है, जब फ़िल्म पूरे लब्बोलुआब के साथ रिलीज करेंगे तो किस प्रकार की अराजकता की स्थिति वन्य प्राणियों में निर्मित होगी और क्या इसके बाद प्रशासन भी इस स्थिति को सम्हाल पाएगा?

-संरक्षित वन क्षेत्र में पिकनिक स्पॉट सतरेंगा की ओर जाने वाले प्रधानमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत निर्मित सड़क पर सफेद जहर।
  • राख से भरे हेवी लोडेड वाहन भीड़भाड़ से भरे क्षेत्रों में भी किस रफ्तार से मौत बांटते हुए गुजरते हैं, यह एक आम दृश्य है। जंगल में खाली सपाट सड़क पर इन यमदूतों की रफ्तार क्या होगी, इसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है। तब जंगल में दौड़ रहे इन यमदूतों की चपेट में निरीह वन्य प्राणियों का जीवन किसी भी प्रकार से सुरक्षित नहीं रहेगा।

 

प्रदूषण रोकने किए यह उपाय, फिर भी नतीजा…!!
बाल्को पॉवर प्लांट में लगे चिमनी से धुएं के साथ निकलने वाले राख के कण को रोकने इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर सिस्टम (ईएसपी) लगाए गए हैं।

 

कौन करेगा वन्य जीवों का स्वास्थ्य परीक्षण

राखड़ में पाए जाने वाले जहरीले घातक पदार्थों आर्सेनिक, पारा यानी मरकरी, सीसा यानी लेड, वैनेडियम, थैलियम, मॉलीबेडनम, कोबाल्ट, मैंगनीज़, बेरीलियम, बेरियम, एंटीमनी, एल्युमिनियम, निकेल, क्लोरीन और बोरोन सहित अन्य तत्व भी पाए जाते हैं और अस्थमा, फेफड़े गलना, कैंसर जैसी बीमारियों की चपेट में लोग इसके कारण आते हैं और हॉस्पिटल की शरण लेते हैं.. वन्य जीव कहां जाएंगे…?

राखड़ के आगे कोरोना पानी मांगता है

उफान पर होने की स्थिति में कोरोना से पूरे देश में में 4 हजार से ज्यादा लोगों की मौतें मात्र एक ही दिन में हुई थी। आपको बता दें कि राखड़ के आगे कोरोना पानी मांगता है, सिर्फ भारत में हर रोज 6500 से ज्यादा लोगों की असमय अकाल मृत्यु प्रदूषण के कारण हो रही है। यही कारण है कि कुछ दिनों पूर्व ही प्रदूषण को लेकर अपनी चिंता जताते हुए जागरूक सांसद श्रीमती ज्योत्सना महंत ने एक पत्र लिखकर कहा था- “वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ), कारखानों से निकलने वाले दूषित जल व अन्य अपशिष्ट के सुचारू प्रबंधन का पालन नहीं करने वाले उद्योगों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई आवश्यक है।”

प्रदूषण के मामले में कोरबा की दयनीय दशा पर ये कहा था सांसद श्रीमती ज्योत्सना महंत ने…

सांसद ज्योत्सना महंत ने कहा था-” कुछ समय पूर्व नासा व प्रदूषण को लेकर जानी मानी संस्था ग्रीनपीस द्वारा जारी विश्लेषित रिपोर्ट में कोरबा का हालात अत्यंत खराब बताया है। वर्तमान में कोरबा परिवहन व औद्योगिक क्लस्टर के सबसे खराब नाइट्रोजन आक्साइड का हाट स्पाट बन गया है। प्रदूषण फैलाने वाले शहरों में कोरबा 17 वें स्थान पर है।”

उद्योगों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई आवश्यक

लापरवाही बरतने वाले उद्योगों पर कार्यवाही करने के संबंध में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व कलेक्टर संजीव कुमार झा को लिखे पत्र में सांसद श्रीमती महंत ने कहा था- “लोकसभा क्षेत्र कोरबा में प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक पहल करने लोकसभा सत्र में शून्यकाल में मामला उठा कर भारत सरकार के संज्ञान में लाया था। भारत सरकार ने इस विषय की गंभीरता को ध्यान रखते हुए छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण बोर्ड (सीईसीबी) से इस संबंध में जानकारी ली गई। इसमें कोरबा के अलावा रायपुर, भिलाई शहरों की परिवेशी वायु गुणवत्ता को बढ़ाने के लिये आइआइटी खड़गपुर की सिफारिशों अनुसार समयबद्ध कार्य योजना में कार्य संपादित कराया जाना है। सांसद ने कहा कि कोरबा व आसपास के अन्य जिलों में स्थापित विभिन्ना संयंत्रों, कारखानों का नियमित निरीक्षण व जांच की जाए, साथ ही वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ), कारखानों से निकलने वाले दूषित जल व अन्य अपशिष्ट के सुचारू प्रबंधन का पालन नहीं करने वाले उद्योगों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई आवश्यक है।”

सांसद श्रीमती महंत ने आगे निगरानी करने की बात करते हुए कहा था- “उद्योगों द्वारा प्रदूषण कम करने के लिए किए जा रहे विभिन्ना कार्यों की समय पर समीक्षा आवश्यक है। साथ ही केंद्र, राज्य सरकार, सीएसआर व अन्य मद से प्रदूषण नियंत्रण के लिए प्रदत्त राशि की उपयोगिता की समीक्षा भी आवश्यक है। उन्होंने कहा था कि कोरबा व अन्य निकट जिले में स्थापित सभी कारखानों, उद्योगों की प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम व पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम में तय मानकों तथा प्रदूषण नियंत्रण एवं खतरनाक अपशिष्ट के निपटान के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भारत सरकार द्वारा जारी नियम का पालन करने के लिए संबंधितों को आवश्यक निर्देश दिया जाए।”

 

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