बालको प्रबंधन का प्रताप.. जंगल में राख की आग.. किस गुफा में सोया वन विभाग.. 420,120बी में प्राथमिकी..? सांसद पर टिकी अंतिम आस…!!
कोरबा। करील बेचकर जीविकोपार्जन करने वाले, वनोपज के सहारे जीवन काटने वाले गरीबी की मार झेल रहे आदिवासियों, ग्रामीणों पर वनविभाग का डंडा लगातार चलता रहता है लेकिन बड़े प्रकरणों में इसके उलट स्थिति निर्मित होती है। ताजा उदाहरण जिले के पर्यटन केन्द्र सतरेंगा की ओर जाने वाले सड़क का है, सड़क के दोनों ओर प्रकृति का आलोक बिखेरते हरे-भरे वनों की बर्बादी का है।
सतरेंगा के हरे-भरे वनों में राख की कालिमा पोतकर प्राकृतिक दृष्टि से मनोहारी वन की सुंदरता को ग्रहण लगने की शुरुआत हो गई है। सबसे बड़ी चुनौती जल, जंगल, जीव के संरक्षण के साथ यहां निवासियों के सामने मुंह बांयें खड़ी है तो इसका मात्र एक ही कारण वन विभाग की उदासीनता है। वन्य प्राणियों के विचरण क्षेत्र में राख से भरे भारी लोडेड वाहनों के लगातार आवागमन से भविष्य में वन्य जीवन भी बुरी तरह से प्रभावित होगा, जिसकी अनदेखी वन विभाग द्वारा किए जाना जिले भर में चर्चा का विषय बना हुआ है।

वन संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत वन विभाग द्वारा चिन्हित एवं अधिसूचित भूमि का स्वरूप किसी भी रूप में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। किसी विशिष्ट परियोजना के क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकार को भी ऐसी जमीन की जरूरत होती है तो उसे वन भूमि के उपयोग की अनुमति भारत सरकार से लेनी होती है। लेकिन बीते दिनों से भारत सरकार के वन संरक्षण अधिनियम का खुला उल्लंघन करते हुए पिकनिक स्पॉट सतरेंगा जाने वाले मार्ग पर भी जिस प्रकार से बालको प्रबंधन के कारिंदों के द्वारा राखड़ डंप कर जंगल के पर्यावरण को बर्बाद करने की दिशा में काम करना आरंभ किया है, वह चिंता का विषय है।
फिल्मी पुलिस से भी कमजोर…
हिंदी फिल्मों में देखा गया है कि जब सब कुछ हीरो ठीक कर चुका होता है तब कही जाकर पुलिस की एंट्री होती है लेकिन यहां पर स्थित विपरीत है। सूचना है, जानकारी है, विभाग के लोग उस सड़क पर लगातार आते-जाते रहते हैं लेकिन कार्यवाही 0/ 0 है।
वन विभाग का इस विषय पर कोई कार्यवाही नहीं करना अनेक प्रकार के संदेहों को जन्म दे रहा है। वनवासियों पर बात-बात में डंडा चलाने वाले वन विभाग को सांप सूंघ गया है या कुछ और बालको प्रबंधन के द्वारा सूंघा दिया गया है। खुलेआम खुलकर राख डंपिंग हो रहा है और कार्यवाही करने तो दूर की बात है, एक नोटिस जारी करने में ही वन विभाग के हाथ क्यों कांप रहे हैं ?
फिल्मी पुलिस से भी कमजोर वन विभाग इसलिए है क्योंकि सैकड़ों की संख्या में लगातार पेड़ काटे जाते हैं और सैकड़ों पेड़ कोई एक दिन में तो नहीं काटे जा सकते लेकिन नोटिस भेजने में ही समय लग जाता है।

जनमानस व वन्य जीवों का जीवन खतरे में
इसमें कोई दो मत की बात नहीं है कि इस प्रकार लगातार राख डंप किया जाता रहा तो आने वाले समय में रहने वाले इस क्षेत्र के लोगों का जीवन दूभर हो जाएगा। इस क्षेत्र में मुख्यतः पहाड़ी कोरवा आदिवासी समाज के लोग निवासरत है, जो महामहिम राष्ट्रपति जी के दत्तक पुत्र के रूप में जाने जाते है। इसके साथ ही संरक्षित वन्य प्राणियों का जीवन भी लगातार खतरों से घिरा हुआ है। भारी मात्रा में राख से भरे तेज गति से चलने वाले भारी वाहनों की चपेट में आकर कब कौन सा वन्य जीवन समाप्त हो जाए..कहा नहीं जा सकता?
राख से भरे हेवी लोडेड वाहन भीड़भाड़ से भरे क्षेत्रों में भी किस रफ्तार से मौत बांटते हुए गुजरते हैं, यह एक आम दृश्य है। जंगल में खाली सपाट सड़क पर इन यमदूतों की रफ्तार क्या होगी, इसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है। तब जंगल में दौड़ रहे इन यमदूतों की चपेट में निरीह वन्य प्राणियों का जीवन किसी भी प्रकार से सुरक्षित नहीं रहेगा।
राख डंप के लिए अनुमति नहीं
इस संबंध में यह भी उल्लेखनीय है कि सतरेंगा की ओर जाने वाला मार्ग चारों तरफ़ से घने जंगलों से घिरा हुआ है, और यह जंगल वन विभाग कोरबा के अधीन है, वन विभाग कार्यालय से भी राख पाटने के संबंध में कोई अनुमति/अनापत्ति नही ली गयी है।

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…लेकिन लगता है कि सतरेंगा के विकास कार्यों पर ग्रहण लगने की शुरुआत हो गई है। छ.ग. पर्यावरण संरक्षण मंडल कोरबा के क्षेत्रीय अधिकारी द्वारा जिले में पेसा कानून 1996 लागू होने के बाद भी, जहाँ ग्रामसभा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, जिसके कारण किसी प्रकार के कार्य हेतु ग्रामसभा की अनुमति/स्वीकृति अनिवार्य है, वहां पर नियम विरुद्ध बालको को राखड़ पाटने की अनुमति दिया गया है।
छत्तीसगढ़ क्रांति सेना के जननायक दिलीप मिरी ने भी पूर्व में एक पत्र लिखकर सघन वनक्षेत्र में राख डंप किए जाने को लेकर कार्यवाही की मांग किए जाने को लेकर लिखे जाने पर कहतें हैं – ” कार्यवाही करना तो दूर की बात है, यहां तो आज तक पत्र का जवाब ही नहीं आया है। “
जननायक दिलीप मिरी ने लिखा था ये पत्र
“जिला-कोरबा के अनुविभागीय कार्यालय (रा०) कोरबा के अंतर्गत ग्राम-सतरेंगा स्थति है, यह गाँव को वर्तमान में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा प्रमुखता से पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है, और यहाँ प्रति वर्ष लाखो पर्यटक अपने परिवार सहित आते हैं। संपूर्ण कोरबा जिला अनुसूचित जिला है, और यह भारतीय संविधान की 5वीं अनुसूची में आता है, संपूर्ण जिले में पेसा कानून 1996 लागू है, जहाँ ग्रामसभा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, यहाँ किसी प्रकार के कार्य हेतु ग्रामसभा की अनुमति/स्वीकृति अनिवार्य है, साथ ही यह गाँव मिनीमाता बांगो डेम का कैचमेंट एरिया है, और जलभराव की स्थिति बनी रहती है, इस गाँव में बालको कंपनी को उनके पॉवर प्लांट से निकलने वाले राखड़ को पाटने की अनुमति दी गई है।” छत्तीसगढ़ क्रांति सेना के क्रांतिकारी जननायक दिलीप मिरी ने उक्ताशय का एक ज्ञापन कोरबा जिलाधीश को सौंपकर उचित कार्यवाही की मांग कुछ दिनों पूर्व की थी।
“छ.ग. पर्यावरण संरक्षण मंडल कोरबा के क्षेत्रीय अधिकारी द्वारा पहली बार बालको के अधिकारी G.Venkat Reddy C.O.O. (POWER) को सतरेंगा गाँव के निजी भूमि को लो-लाईन्ग एरिया बताते हुए लगभग 25 एकड़ में दिनांक:- 24/12/2021 को 300000 (3 लाख) MT राखड पाटने की अनुमति दी गयी, फिर इसी भूमि में बालको के अधिकारी G. Venkat Reddy C.O.O.(POWER) को दिनांक:- 11/05/2022 को फिर से 300000 (3 लाख) MT राखड पाटने की अनुमति दी गयी, और इसी भूमि में फिर से 31/10/2022 को 500000 (5 लाख) MT राखड पाटने की अनुमति दी गयी, कुल राखड़ पाटने के लिए अनुमति की मात्रा 1100000 ( 11 लाख) MT है, इतनी बड़ी मात्रा में राखड पाटा गया तो समझिए पुरा सतरेंगा गाँव राखड़ से पट जाएगा।”
श्री मिरी ने आगे अपने दिए गए ज्ञापन में ग्रामीणों के जीवन के प्रति चिंता जताते हुए उल्लेख किया था कि वहां रहने वाले लोगों का जीवन जीना दूभर हो जाएगा, इस क्षेत्र में मुख्यतः पहाड़ी कोरवा आदिवासी समाज के लोग निवासरत है, जो महामहिम राष्ट्रपति जी के दत्तक पुत्र के रूप में जाने जाते है, लेकिन क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए नियम विरुद्ध बालको को राखड़ पाटने की अनुमति /NOC दिया है, जिसे निरस्त किया जाना पर्यावरण संरक्षण के निमित्त व जनहित में आवश्यक है।”
इन बिंदुओ पर जांच की मांग की थी मिरी ने
1) यह कि राखड़ पाटने हेतु अनुमति/NOC देने के पूर्व ग्राम-सतरेंगा के ग्रामसभा से विधिवत रूप से प्रस्ताव पारित कर अनुमति नहीं ली गयी है।
2) यह कि बालको-सतरेंगा रोड प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनाया गया है, और इस सड़क में 12 टन से अधिक क्षमता के भारी वाहन नहीं चलने का प्रावधान है, और राखड़ पाटने हेतु अनुमति/NOC देने के पूर्व PMGSY विभाग से अनुमति नही ली गयी है।
3) यह कि बालको से सतरेंगा पुरी तरफ़ से घने जंगलों से घिरा हुआ है, और यह जंगल DFO कोरबा के अधीन है,DFO कार्यालय से भी अनुमति/अनापत्ति नही ली गयी है।
4) दिनांक:- 24/12/2021 को 300000 (3 लाख) MT राखड़ पाटने की अनुमति देने के बाद दुबारा NOC/अनुमति देने के पूर्व किसी तरफ़ का भौतिक सत्यापन नही किया गया है।
5) बहुत से जमीन कृषि भूमि है और CENARA BANK KORBA व छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक में गिरवी (MORTGAGED) के रूप में बंधित है, NOC/अनुमति देने के पूर्व उक्त बैंक कार्यालय से भी अनुमति/अनापत्ति नही ली गयी है।
सांसद श्रीमती ज्योत्सना महंत ही हैं जनमानस की आस
लोकसभा क्षेत्र कोरबा में प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक पहल करने लोकसभा सत्र में शून्यकाल के दौरान संसद में जागरूक सांसद श्रीमती ज्योत्सना महंत ने इस प्रकरण को संसद के पटल रखा था। कोरबा को देश का 17वें सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्र बताते हुए एक पत्र में कहा था – ” कारखानों से निकलने वाले दूषित जल व अन्य अपशिष्ट के सुचारू प्रबंधन का पालन नहीं करने वाले उद्योगों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई आवश्यक है।”
प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर सतरेंगा वन क्षेत्र के संरक्षण की दिशा में अब लगातार हो रहे राख डंप पर रोक लगाने को लेकर वे आगे अब क्या करेंगी..इस पर जिलेवासियों की अंतिम आस टिकी हुई है।
जननायक दिलीप मिरी का गंभीर आरोप 420,120बी में प्राथमिकी दर्ज करने की मांग
“लो-लाईन्ग एरिया का मायने ही बदल दिया गया है,सतरेंगा क्षेत्र पहाड़ों से घिरा हुआ है, और पहाड़ की चोटी से देखने से नीची जमीनों ऊपर नीचे लगता है, अगर ऐसा ही लो-लाईन्ग एरिया होता है तो पहाड़ों के नीचे सभी जमीनें लो-लाईन्ग एरिया में आएगा, साथ ही बालको कंपनी को चोटियां के पास एक कोयला खदान स्वीकृत है, यहाँ उत्खनन के बाद ख़ाली जगह में राखड पाटा जा सकता ह,जबकि बालको/वेदांता कंपनी को SECL मानिकपुर खदान में भी राखड़ पाटने की अनुमति मिली हुई है, जहाँ राखड़ पाटने हेतु पर्याप्त जगह है।”
श्री मिरी ने मांग की है कि निजी जमीनों पर राखड़ पाटने हेतु दिए गए अनुमति को निरस्त किया जाए, और भविष्य में बालको/वेदांता कंपनी को किसी भी निजी एवं सरकारी भूमियों पर राख डालने की अनुमति नही दिया जाए, साथ ही सतरंगा में बिना भौतिक सत्यापन के राखड़ पाटने हेतु दिए गए सभी अवैधानिक अनुमतियों को निरस्त करते हुए, संबंधित बालको के अधिकारीयों एवं क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारीयों के विरुद्ध 420,120बी एवं अन्य धाराओं में प्रथम सुचना दर्ज कराके के क़ानूनी कार्यवाही किया जाए।”
“स्वस्थ गांव अभियान” के दावे का सच…??
“स्वस्थ वन..स्वच्छ नदी-नाले” अभियान की आवश्यकता
एक ओर तो मालिक अनिल अग्रवाल के द्वारा अपनी संपत्ति का 75 प्रतिशत सामाजिक भलाई और जनता के उत्थान के लिए देने का संकल्प लिया जाता है और और इसी क्रम में विगत वर्ष जुलाई 2021 में अनिल अग्रवाल फाउंडेशन द्वारा अगले 5 वर्षों में भारत के सामाजिक विकास को मजबूत करने के लिए महत्वाकांक्षी योजना का शुभारंभ करते हुए ग्रामीण भारत को सशक्त करने के लिए 5,000 करोड़ रुपयों के निवेश का संकल्प “स्वस्थ गांव अभियान” के नाम से एक बड़ी परियोजना का शुभारंभ ग्रामीण भारत के विकास के समग्र पहल की घोषणा करते हुए बड़े-बड़े दावे मीडिया में किए जाते हैं।
इन दावों में कितना सच है, यह तो समय आने पर सबके सामने होगा लेकिन ” इसके साथ अब “स्वस्थ वन..स्वच्छ नदी-नाले” अभियान भी चलाया जाना चाहिए और इस पर अमल भी किया जाना चाहिए। प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण करने की दिशा में अगर सही मायने में काम नहीं किया गया तो गांव कैसे स्वस्थ रहेंगे और “स्वस्थ गांव अभियान” की प्रासंगिकता क्या रहेगी…?
अनिल अग्रवाल फाउंडेशन द्वारा अपनी नवीन पहल के तहत् पशु कल्याण के लिए आश्रय और सहायता प्रदान करने पर भी ध्यान देने की बात भी कही गई थी लेकिन राखड़ पाटने की योजना से “स्वस्थ गांव अभियान” के सतरेंगा के ग्रामीण परिवेश पर, पशुओं, वन्य जीवों पर क्या किसी प्रकार का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा?
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