देवांशु झा : भारतीय सिने संसार में दूसरा राजकुमार नहीं हुआ.. तालियों के विषय पर अमिताभ दूसरे नंबर पर…

भारतीय सिने संसार में दूसरा राजकुमार नहीं हुआ। आप कह सकते हैं कि दूसरा दिलीप कुमार, दूसरा अमिताभ, दूसरा नसीर और कमल हसन भी नहीं हुआ। लेकिन सभी महान अभिनेता अपनी प्रतिच्छायाओं के साथ जीते-मरते हैं। दिलीप कुमार से लेकर अमिताभ बच्चन और कमल से नसीर तक के अक्स देखे जा सकते हैं, राजकुमार का कोई अक्स नहीं है। वे इकलौते थे। जैसे जीवन भर रहे, वैसे ही मृत्यु को प्राप्त हुए। मरने के बाद उनकी लीगेसी खत्म हो गई। परदे पर जिये उनके पात्रों का पटाक्षेप हो गया। वे राजकुमार के साथ ही चले गए। वे आए, जिये और सबकुछ खत्म कर चले गए। उनके आगे-पीछे कुछ नहीं रहा।

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राजकुमार एक ऐसे अभिनेता थे, जो सबसे कम जाने गए। लेकिन कहानियां उनकी खूब कही सुनीं गईं। वे सर्वाधिक रिजर्व भी थे–अंतर्मुखी। अन्य बड़े सितारों की तरह लाइमलाइट में नहीं रहते थे। उनके बहुत कम साक्षात्कार हैं। लेकिन जो थोड़े बहुत हैं, उन्हें देख सकते हैं। वे एक बुद्धिमान, तार्किक, समझदार और स्पष्टवादी व्यक्ति थे। उन्हें अपने किए का दृढ़ विश्वास था। उनमें अभिमान था। ईर्ष्या या प्रतिस्पर्धा की अग्नि नहीं थी। वे जानते थे कि अपना मान किस तरह से सुरक्षित रखना है। किन शर्तों पर चलना है और कैसे उन शर्तों को प्रासंगिक और आवश्यक बनाए रखना है।

मैं नहीं जानता, हम में से कितने लोगों ने उनकी पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में ध्यान से देखीं हैं? राजकुमार के चेहरे पर आने वाले एक्सप्रेशंस कई बार unparalleled होते हैं। और वे उन दृश्यों में होते हैं, जहां उनकी दबंगई नहीं, करुणा देखी जा सकती है। आप पैगाम से लेकर दिल एक मंदिर और पाकीजा तक देख लीजिए। वे बहुत विविध तो नहीं थे लेकिन गहन अवश्य थे। उनमें कुछ ऐसा था कि सामने खड़ा बड़े से बड़ा अभिनेता भी कांतिहीन पड़ जाता था। राजकुमार पर कोई चढ़ न सका। बाद में राजकुमार ने अपने अभिनय के ताप को एक विशिष्ट शैली की संवाद अदायगी से मढ़कर फैंस तो खूब बना लिए लेकिन वे स्वयं अपनी ही प्रभा से उतरते चले गए। राजकुमार ने एक ऐसी धारा बहाई कि कोई और उसमें तैरने का साहस न कर सका। उस धारा के इकलौते तैराक थे राजकुमार। वे एकरस लग सकते हैं लेकिन ऊबाऊ कभी नहीं।

राजकुमार ने अपने दर्शकों को कभी गंवाया नहीं। उन्हें विश्वास था कि बदलते दौर को भी वह देख लेंगे। उन्होंने अपनी सीमा में सारे बड़े अभिनेताओं को देखा। उन्हें कोई नहीं देख सका।वह जीवन के उत्तर काल में अनाकर्षक दीखते हुए भी आवश्यक बने रहे। कोई उनकी अवहेला न कर सका। यही उनकी कमाई थी। मैं दावे के साथ कह सकता हूॅं कि उनके हर डायलॉग पर सिनेमा हॉल में जितनी तालियां मैंने सुनीं, उतनी तालियां किसी और अभिनेता के लिए कभी नहीं सुनीं। तालियों के मामले में दूसरे नंबर पर अमिताभ बच्चन हो सकते हैं।

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