सर्वेश तिवारी श्रीमुख : सवर्ण आयोग.. बाकी तो जो है सो तो हइए है…

सवर्ण आयोग। नाम तनिक नया नया लग रहा है न? बिहार में आज महाचन्द्र प्रसाद सिंह जी को सवर्ण आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है। इसी बहाने एक बार फिर सवर्णों के लिए बनाए गए आयोग की चर्चा शुरू हुई है।
बिहार में सवर्ण आयोग 2011 में बनाया गया था। तब इसके अध्यक्ष हाई कोर्ट के रिटायर जज थे। इसका लक्ष्य था सवर्ण परिवारों की आर्थिक दशा का आकलन करना और गरीब सवर्णों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास करना। दो वर्ष के बाद सन 2013 में इस आयोग ने अपनी सिफारिश सौंपी थी। यह अलग विषय है कि इस आयोग की सिफारिश वाली फाइलों पर कितने इंच धूल चढ़ी है, इसका कोई अंदाजा नहीं।
अब तनिक 2013 में आये रिपोर्ट की दो चार मुख्य बातें जान लीजिये। रिपोर्ट कहती है कि 55% सवर्णों के पास आय का मुख्य साधन खेती है। और कम से कम बिहार को जानने वाले जानते हैं कि खेती पेशा नहीं टाइम पास है। यहाँ खेती करना दरअसल कुछ नहीं करने को कहा जाता है। यहाँ जमीन का सर्वे लगभग सवा सौ साल पहले हुआ था, और उसके बाद पाँच छह पीढ़ियों में बार बार हुए बटवारे के कारण खेत इतने छोटे छोटे हैं कि खेती कभी भी लाभ का रोजगार नहीं हो सकती। तो यह स्पष्ट है कि 55% सवर्ण कुछ नहीं करते।
जमीन की स्थिति यह है कि 55% सवर्ण परिवारों के पास एक एकड़ से कम जमीन है। यह रिपोर्ट 2013 की है। आज 2025 की स्थिति यह है कि यह आंकड़ा बढ़ कर 75% पर आ गया होगा। 75% से अधिक सवर्णों के पास अब जमीन भी नहीं बची। और यह आंकड़ा अब भी लगातार बढ़ रहा है क्योंकि जमीन बेचने के मामले में सवर्ण आगे हैं। रिपोर्ट ही कहती है कि 46% सवर्ण अपनी जमीनें बेच रहे हैं। हम अपने आसपास भी रोज ही ऐसा देख रहे हैं।
रिपोर्ट कहती है कि 49 प्रतिशत सवर्ण बच्चे गरीबी के कारण पढ़ाई छोड़ देते हैं। सम्भव है कि सरकारी प्रयासों और बढ़ती जागरूकता के कारण इसमें थोड़ी कमी आई हो, पर अभी भी ऐसे बच्चों की संख्या बहुत है। टेक्निकल कामों और दुकानदारी में रुझान नहीं होने के कारण इनके आगे रोजगार के रास्ते बहुत कम हैं, और इसी कारण गरीबी लगातार बढ़ रही है।
सवर्णों में पलायन भी सबसे अधिक है। अपने यहाँ रोजगार है नहीं, धंधा करने की परम्परा नहीं है तो पेट पालने के लिए पलायन ही विकल्प बचता है। पलायन लगभग 70% है।
यह स्थिति तब है जब सवर्णों ने जनसँख्या नियंत्रण पर सर्वाधिक अमल किया है। सवर्णों में वैसे परिवार अब दुर्लभ ही हैं जहां एक दम्पत्ति के दो से अधिक बच्चे हैं।
हालांकि सवर्ण आयोग केवल बनाने के लिए ही बनाया गया है, उसकी सिफारिशों पर कोई काम हुआ नहीं है। गरीब सवर्णों को मुख्य धारा में लाने के लिए जो सुझाव दिए गए थे, वे फाइलों में ही दब कर रह गए। चुनाव को ध्यान में रख कर ही सही, इस सरकार ने दुबारा चर्चा तो शुरू की ही है। दूसरी तरफ श्रीमान राहुल जी लगभग हर मंच से सवर्णों के विरुद्ध जहर ही उगल रहे हैं। उनकी मानें तो इस संसार की हर परेशानी का कारण सवर्ण ही हैं। ऐसे में यह देखना मजेदार होगा कि सरकार सचमुच कुछ करना चाहती है या बात पूरी तरह चुनावी ही रह जाती है।

बाकी तो जो है सो तो हइए है।

Veerchhattisgarh

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *