प्रसिद्ध पातकी : वेद विज्ञान के अनुसार सृष्टि के निर्माण में वराह वायु की भूमिका

भगवान वराह की यह मुद्रा मुझे बहुत आकर्षक लगती है. मानों भगवान कृष्ण ब्रह्माण्ड की नीरवता में बंसी की मधुर तान छेड़ रहे हो. और उस तान में पूरी धरा प्लावित हो गयी हो. बदला कुछ भी नहीं है. वहाँ बांसुरी थी. यहाँ हाथों में समूची धरा है.

वेद विज्ञान के अनुसार सृष्टि के निर्माण में वराह वायु की महती भूमिका है. समुद्र में जो बुलबुले उठते हैं, झाग बनते हैं, वे इसी वराह वायु के कारण बनते हैं. यह वायु अपनी सघनता के कारण जल कणों में फंस जाती है. और इससे बना फेन बाद में सूखकर रेत कण बनता है. यही रेत कण भूमि के आधार हैं.

मनुजता के इतिहास में सभ्यताओं के बनने और मिट जाने का कारण नदियाँ रही हैं. पर केवल नदियाँ उफन कर महाकाल का अस्त्र बनती हो, ऐसा नहीं है. समुद्र भी कभी कभी मचलकर तटबंध तोड़ते हैं. समूचा प्राणी जगत त्राहिमाम कर उठता है. सुनामी उसी जल प्रलय की एक छोटी झलक है.


ऐसे में कोई सत्ता है, जो उस जल प्रवाह को धकेल कर इस पूरे भूमंडल को उबार सकती है, उसी शक्ति का नाम वराह है. भगवान विष्णु प्राणी मात्र ही नहीं इस निखिल धरा की रक्षा करते है. पृथ्वी की रक्षा में जो भी प्रयास हो रहे हो, भले ही वे कितने अल्प हों, सब प्रणम्य हैं, क्योंकि उनके पीछे भगवान महाविष्णु, आदि वराह भगवान की प्रेरक शक्ति काम कर रही है.
वेद विज्ञान के अनुसार सृष्टि के निर्माण में वराह वायु की महती भूमिका है. समुद्र में जो बुलबुले उठते हैं, झाग बनते हैं, वे इसी वराह वायु के कारण बनते हैं. यह वायु अपनी सघनता के कारण जल कणों में फंस जाती है. और इससे बना फेन बाद में सूखकर रेत कण बनता है. यही रेत कण भूमि के आधार हैं.
अजी! हटाओ जे विज्ञान की जटिल बात. बस फायदे की बात याद रखिये कि भगवान वराह का स्मरण करने से उद्धार की चिंता नहीं करनी पड़ती.
जलौघमग्ना सचराचर धरा विषाणकोट्याऽखिलविश्वमूर्तिना
समुद्धृता येन वराहरूपिणा स मे सवयंभूर्भगवान प्रसीदतु

वराह जयंती की राम राम।।

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