कौशल सिखौला : बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने का भ्रम
जो काम सबसे आसान है वह है राहुल गांधी के मुख से कुछ भी कहला देना । अब देखिए ना , इंडिया गठबंधन बना है पर राहुल गांधी ने पीएम बनते ही किसानों के लिए एमएसपी की घोषणा अकेले ही कर दी है । मानों गठबंधन ने उन्हें ही पीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया हो ? राहुल का दोष भी क्या , उन्हें जो लिखकर दिया गया , वह बोल दिया।
कांग्रेस के नीति निर्धारक जानते हैं कि गठबंधन का कबाड़ा हो चुका है , अकेले ही लड़ना पड़ेगा । बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने के भ्रम को आगे बढ़ाते हुए भैया से एमएसपी की घोषणा करा दी । अभी देखते रहिए पीएम बनने के स्वप्न में राहुल WTO aur FTA से अलग होने की घोषणा भी कर देंगे । क्या जाता है , कोई जवाबदेही है क्या ? अब राज्यों में कोई सीट ही नहीं दे रहा तो फिर एमएसपी की घोषणा करने में क्या जाता है।
वैसे राहुल भैया ! 2006 से मई 2014 तक तो आप सुपर पीएम थे , सोनिया जी सुपर mom थीं । स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट 2006 में आ गई थी । कोई अड़चन ही नहीं थी ! दस साल से एक्सीडेंटल पीएम थे मनमोहन सिंह ? तभी कर लेते सिफारिशों को स्वीकार ? सच बताना , तब अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने मना कर दिया था क्या ? जी हां यही सच है । मनमोहन की सलाह पर ही सोनिया ने कमीशन की रिपोर्ट बट्टेखाते डाल दी थी । अब पुत्र तमाशा कर रह रहे हैं , अध्यक्ष खड़गे मौन हैं।
पंजाब के किसान सदा से समृद्ध हैं , बहुत से तो बीएमडब्ल्यू और मर्सडीज में घूमते हैं । वे बिना एमएसपी ही बेतहाशा कमाते हैं । निश्चित रूप से छोटे किसानों के लिए काम होना चाहिए , जिन्हें खेतों पर भी और आंदोलनों में भी लड़ने के लिए अग्रिम पंक्ति में मोर्चे पर खड़ा किया जाता है । बड़े बड़े जमीदार , अलंबरदार , चौधरी और सरमायेदार पीछे रहते हैं । पंजाब के ये वही 250 किसान संगठन हैं , जिन्होंने पिछली बार विधानसभा चुनाव लडा था और एक भी सीट नहीं जीते थे , लगभग सभी ने जमानत गंवाई थी।
इस बार तो सिर्फ पंजाब के किसान आंदोलन पर हैं । आमतौर पर पंजाब , हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसान ही धरने प्रदर्शन करते हैं । तो क्या मध्य प्रदेश , झारखंड , बंगाल , बिहार , ओडिसा , गुजरात , हिमाचल , उत्तराखंड और दक्षिण के राज्यों में किसान नहीं हैं । उन्हें तो आंदोलन करते बहुत कम देखा है ? जाहिर है हिन्दी बैल्ट में राजनीति चरम पर है तो किसान भी उस राजनीति का हिस्सा हैं । राजनीति में थके हारे नेताओं ने किसानों को आगे कर अपनी गोट बैठाई है । गठबंधन की बर्बादी के बाद किसान आंदोलन के जरिए एक और रास्ता राजनीति ने खोला है । परिणीति देखनी बाकी है।