के. विक्रम राव : “मातृ-पितृ देवो भव” हेतु असम सरकार ने विलक्षण उपाय लागू किये !!
एक उत्कृष्ट मिसाल पेश की है असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्वशर्मा ने अन्य मुख्यमंत्रियों हेतु। अगले सप्ताह दो दिन (9 और 10 फरवरी 2023) का सार्वजनिक अवकाश समस्त राज्य सरकारी कर्मचारियों को दिया जाएगा ताकि वे अपने माता-पिता के साथ वक्त गुजार सकें, सेवा कर सकें। साथ में दूसरे शनिवार व इतवार (7-8 फरवरी) भी जुड़ जाएंगे तो लगातार चार दिन होंगे। यूं तो ऐसी मिलती-जुलती योजना राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री ने (1 जनवरी 2017) से प्रारंभ की थी। इससे कामकाजी गर्भवती महिलाओं की मजदूरी के नुकसान की भरपाई करने के लिए मुआवजा देना और उनके उचित आराम और पोषण को सुनिश्चित करना और गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के स्वास्थ्य में सुधार और नकदी प्रोत्साहन के माध्यम से अधीन-पोषण के प्रभाव को कम करना था।
असम योजना कुछ बेहतर है। वहां राज्य काबीना मंत्रियों से लेकर चतुर्थ श्रेणी के कार्मिकों तक को यह चार दिवसीय छुट्टी विशेष तौर पर दी जा रही है। मगर शर्तें बड़ी स्पष्ट हैं। यह मौका केवल माता-पिता की सुश्रुषा हेतु है। निर्देशों में चेतावनी भी है कि यह निजी आमोद-प्रमोद के लिए नहीं होगा। जिनके माता-पिता और सास-ससुर न हों, उन्हें छुट्टी कतई नहीं मिलेगी। क्योंकि मकसद यह है कि वृध्द मां-बाप को संतान का सान्निध्य मिल सके। आधारभूत भावना जैसा कि हेमंत विश्वशर्मा ने बताया कि सरकारी कामकाज में व्यस्तता के कारण कार्मिकों को परिवार के लिए पर्याप्त अवकाश नहीं मिलता है। फिर आदर्श नागरिक कैसे होगा, जिसका कुटुंब से सरोकार दृढ़ न हो ? असम सरकार ने प्रकाशित विज्ञापन के साथ प्राचीन भारतीय चिंतन के सूत्रों को भी निगदित किया हैं। जैसे : “जगतः पितरौ वन्दे”। “नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गति:। नास्ति मातृसमं त्राणं, नास्ति मातृसमा प्रिया॥ पिता स्वर्गः, पिता धर्म:, पिता हि परमं तप:। पितरि प्रीतिमापन्ने, प्रीयन्ते सर्वदेवता:॥” इत्यादि।
यूं ऐसी श्रद्धा-निष्ठा की भावना नई नहीं है। पितृपक्ष में तो दिवंगत पुरखों को भी याद किया जाता है। पर आजकल कुछ संतानों द्वारा मां-बाप की उपेक्षा की खबरें आम हो गई हैं। खासकर संपत्ति हथियाने के बहाने। यहां मुगल बादशाह शाहजहां की त्रासदी याद आती है। सल्तनत हथियाने के बाद औरंगजेब ने अपने बाप बादशाह शाहजहां को आगरे के किले में नजरबंद कर डाला था। तब वालिद ने बेटे से मिन्नत की : “हिंदूजन तो मरे माता-पिता को भी पानी (तर्पण) पिलाते हैं। तुम तो जिंदा बाप को प्यासा मार रहे हो।”
वरिष्ठ पत्रकार और मेरे लेखक साथी राकेश मंजुल ने कई फिल्मी प्रकरणों की याद दिलाई जिनमें विषयवस्तु यही है। पिता-पुत्र रिश्तों के आचरण, नियम आदि। मंजुल जी ने बताया कि कई वर्ष पूर्व एक फिल्म आई थी संजीव कुमार और माला सिन्हा की (31 दिसंबर 1976)। रवि टंडन निर्देशक थे। नाम था “जिंदगी”। इसमें दो भाई अपने रिटायर्ड पिता और माता को दरबदर कर देते हैं। इसी विचार और व्यवहार को उजागर करती एक अन्य फिल्म मुझे याद आई : “बागबान”, जिसे अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी ने पेश किया था। उससे कुछ पहले राजेश खन्ना और शबाना आजमी की फिल्म “अवतार” भी ऐसे ही थी। ये फिल्में चेतावनी हैं संतानों को कि माता-पिता के प्रति व्यवहार आदरपूर्ण रखो। मगर असम की कार्य योजना सबको अवसर देती है कि सेवाभाव से इन उपलब्ध अवकाश के दिनों का उपयोग करें। यूं तो विश्वभर में हर साल 14 मई को “मातृ दिवस,” 18 जून को “पितृ दिवस” और 24 जुलाई को “मातृ-पितृ दिवस” मनाया जाता है। मगर असम मुख्यमंत्री का यह कदम गौरतलब है। अब संताने बहाना नहीं कर पाएंगी कि दफ्तर के काम से फुर्सत नहीं मिली। मंजुल जी ने एक मर्मस्पर्शी प्रसंग भी बताया। एक युवक किसी रूपवती वेश्या के मोह पाश में फंस कर उससे विवाह करना चाहता था। उस वारंगना ने शर्त रखी कि अपनी मां का जिगर काट कर ले आओ तब तुम्हारी इच्छा पूरी कर दूंगी। पुत्र मां का यकृत काट कर ले गया। तभी घर पर ही देहरी से टकराकर वह गिर पड़ा। तो जिगर से आवाज आई : “बेटा चोट तो नहीं लगी।” बस इसी वाकये को दिल में रखकर “मातृ दिवस” मनाया जाना चाहिए।
अंत में, माता-पिता और संतान के ही संदर्भ में अंतर्मुखी होकर सोचता हूं तो असम सरकार की यह योजना मेरे जैसों के लिए नहीं है। तनिक आत्मकथात्मक हो रहा हूं। कारण ? अधिकतर रिटायर्ड पत्रकार भारत में संकटग्रस्त हैं। पेंशन योजना हर जगह लागू नहीं है। यूपी में तो है ही नहीं। इसीलिए हम सब के संघर्ष से कोरोना काल में हुई विधवाओं को योगी आदित्यनाथ जी ने दस-दस लाख की सहायता देकर भला किया। मैं जीवित रहा, भाग्य था। कुछ और भी किस्मत अच्छी रही। केंद्र सरकार के अतिरिक्त सचिव के समकक्ष पद से रिटायर हुई पत्नी (डा. के. सुधा राव) रेलवे मेडिकल सेवा में मुख्य निदेशक थीं। उसकी पेंशन से हमारा गुजारा होता है। भारत में मीडिया संस्थान लेखों पर परिश्रमिक देने में संकोच करते हैं।
ईश्वर से प्रार्थना पर मेरी पहली संतान बेटी हुई। विनीता, लोरेटो कॉन्वेंट (लखनऊ) में पढ़कर रेलवे मैकेनिकल सर्विस में है। रेलवे बोर्ड में कार्यकारी निदेशक है। रेल की विरासत को संजोने का जिम्मा दिया गया है। बड़ा बेटा सुदेव पुणे से एमबीए प्राप्त मुंबई में कार्यरत है। श्रद्धावान है। वल्लभाचार्य जी की सत्रहवीं पीढ़ी के श्री राकेश गोस्वामी (नाथद्वारा वाले) का जामाता है। उसे देखकर कल्पना कर सकता हूं कि राम कितने प्रिय पुत्र रहे होंगे। कनिष्ठ पुत्र के. विश्वदेव राव लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार है। लखनऊ विश्वविद्यालय से एलएल. बी. पढ़ा। वह मुझे पत्रकारिता और संगठन में मदद देता है। मेरा परामर्शदाता है। तो मुझे अब कैसा अभाव ? तंबाखू, शराब, मांसाहार से सख्त परहेजी हूं। तीन चौथाई संकट तो यूं ही कट गया। आस्थावान हूं। अतः श्रीकृष्ण शरण ममं !
K Vikram Rao
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