बालको : मात्र 122करोड़ 1427395 रुपयों की वसूली देने में प्रबंधन के निकल रहे प्राण.. मालिक अनिल अग्रवाल करते 21000 हजार करोड़ रुपयों का महादान…!!!
तो ऐसे डूब जाएंगे शासन के एक अरब बाईस करोड़ चौदह लाख सत्ताईस हजार तीन सौ पंचानवे रुपये…2009 से अब तक कुल 31बार प्रेममय पत्राचार हो चुका है लेकिन परिणाम कुछ भी नहीं निकला है। अब शायद अगले प्रेम पत्र लेखन के लिए किसी शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा की जा रही है!! जबकि वनविभाग को अच्छे से जानकारी है कि कुर्की जैसे कड़े कदम उठाने के बाद ही वसूली का कोई रास्ता निकलेगा। मैनपाट प्रकरण से कोरबा वनविभाग को सीख लेने की आवश्यकता है।
दिन महीने साल गुजरते जायेंगे
हम प्यार में जीते प्यार में मरते जाएंगे
देखेंगे
देख लेना
क्या हुवा अगर कांटे हैं
अपनी राहों में
इन राहों में फूल बिखरते जायेंगे
ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर
के तुम नाराज़ ना होना..
ये दो गीत भले ही पुराने जमाने की मधुर स्मृतियां मनमस्तिष्क पर जादू कर जाती हो लेकिन वर्तमान परिवेश में बालको प्रबंधन और वनविभाग पर यह सटीक बैठ रहा है। नोटिस पर नोटिस देते, कोर्टगिरी करते हुए वनविभाग को बरसों होने जा रहे हैं लेकिन बालको के कांटों भरे राहों में वनविभाग “स्मरण पत्र” के फूल बिछाने में कोई कमी नहीं कर रहा है। कभी लिखा जाता है कि यह हमारा अंतिम पत्र है तो कभी ध्यान आता है कि हम तो सरकार के कारिंदे हैं और सरकार का नमक खा रहे हैं। यह याद आते ही पुनः प्रेम से देनदारी का स्मरण पत्र प्रेषित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लिया जाता है। सरकार भी खुश, सामने वाले भी लहलहाते हुए लहालोट।
वनविभाग कोरबा और बालको प्रबंधन का भावविभोर कर देने वाला लहालोट प्रेम कुछ इसी प्रकार से बरसो से चल रहा है। कुछ इस प्रकार का प्रेम है कि न तो खाने की इच्छा होती है और नहीं उगलने की। बस जो भी है मुंह में भरकर बस जुगाली करते जाइए। न तो भीतर..नहीं बाहर.. जो भी रहेगा बीच में रहेगा, मीडिल में रहेगा लेकिन ऐसा मिडिल में फिक्स होगा कि कोई मिडिलमैन भी न बोल सके।
कुल एक अरब बाईस करोड़ चौदह लाख सत्ताईस हजार तीन सौ पंचानवे रुपये वनविभाग कोरबा को बालको से वसूली करने हैं। दिनांक 29.08.2022 बालको प्रबंधन के द्वारा दिए गए पत्र के प्रतिउत्तर में वनविभाग कोरबा के द्वारा 17.10.2022 को बालको प्रबंधन को स्मरण पत्र लिखकर पुनः वनविभाग कोरबा के द्वारा दिए गए स्मरण पत्रों को सूचीबद्ध करते हुए एक अरब बाईस करोड़ चौदह लाख सत्ताईस हजार तीन सौ पंचानवे रुपये की राशि जमा करने का अनुरोध करते हुए पत्र की प्रतिलिपि संबंधित विभागों को भी प्रेषित की गई है।
नए-पुराने प्रकरणों से वनविभाग को सीख लेना चाहिए
“फूल तुम्हें भेजा है खत में..फूल नही मेरा दिल है” की शैली में ”अंतिम चेतावनी” “अगर स्टे ऑर्डर है तो दिखाए” जैसे “फुलमार पत्राचार” के स्थान पर जब तक तारीख बताकर “कुर्की” के कांटे वाले पत्राचार बालको प्रबंधन को जारी नहीं किए जाएंगे तब तक रुपये जमा करने की आशा आशंकाओं के झोल में झूले झूलते किसी दिन टूट जाएगी जैसा कि अवमानना प्रकरण के विषय पर वनविभाग के हाथों के तोते उड़ चुके थे.. चिड़िया खेत चुग गई थी।
वर्ष 2009 से अब तक कुल 31बार प्रेममय पत्राचार हो चुका है लेकिन परिणाम कुछ भी नहीं निकला है। अब शायद अगले प्रेम पत्र लेखन के लिए किसी शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा की जा रही है!! जबकि वनविभाग को अच्छे से जानकारी है कि कुर्की जैसे कड़े कदम उठाने के बाद ही वसूली का कोई रास्ता निकलेगा। मैनपाट प्रकरण से कोरबा वनविभाग को सीख लेने की आवश्यकता है।
औपचारिक पत्राचार का क्रम हर वर्ष का
प्रथम पत्र 2009 में वनविभाग के द्वारा बालको प्रबंधन को लिखा गया था और अंतिम पत्र 18.08.2022 को लगातार लिखे जाने के बाद सिर्फ एक ही बार दिनांक 29.08.2022 को बालको द्वारा जवाब दिया गया। तब इसी 29.08.2022 बालको के पत्र के प्रतिउत्तर में पुनः दिनांक- 17.10.2022 को स्मरण पत्र जारी किया था। इस प्रकार से वनविभाग के रिकॉर्ड के अनुसार वनविभाग द्वारा अपने दायित्वों के निर्वहन में तेजी लाने के स्थान, सार्थक कड़े कदम उठाने के स्थान पर मात्र खानापूर्ति औपचारिकतावश किया जा रहा है। ये कैसी औपचारिकता है, ये कैसी रिश्तेदारी है, कैसा नाता है जो कड़े कदम उठाने से वनविभाग को रोक रहा है!!
अब तक आदान-प्रदान किए गए “स्मरण पत्रों” की सूची :-
1) माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर का पत्र कमांक / 5328/96 में पारित आदेश 06.02.2009 एवं रिट अपील कमांक 69/2009 में पारित आदेश दिनांक 25.02.2009
2) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक / मा.चि./2070 दिनांक 22.04.2009
3) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक /मा.चि./442 दिनांक 15.06.2009 इस के अंतर्गत प्रदत्त
4) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक /मा.चि./3918 दिनांक 13.07.2009
5) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक /मा.चि./11289 दिनांक 24.11.2009
6) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक / मा.चि./ 149 दिनांक 9.1.2010
7) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक /मा.चि./2191 दिनांक 16.4.2010
8) इस कार्यालय का अर्द्ध शासकीय पत्र क. 09 दिनांक 5.7.2010
9) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक / मा.चि./ 2731 दिनांक 16.4.2011
10) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक /मा.चि./6949 दिनांक 20.9.2011
11) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक /मा.चि./738 दिनांक 11.10.2011
12) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक / मा.चि./4889 दिनांक 25.09.2011
13) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक /मा.चि./795 दिनांक 02.06.2013
14) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक /मा.चि./6273 दिनांक 25.11.2013
15) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक / मा.चि./6862 दिनांक 27.12.2013
16) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक / मा.चि./3970 दिनांक 13.06.2014
17) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक /मा.चि./4876 दिनांक 17.07.2014
18) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक / मा.चि./6109 दिनांक 12.9.2014
19) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक / मा.चि./ 1823 दिनांक 9.3.2015
20) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक / मा.चि./779 दिनांक 56.2015
21) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक / मा.चि./6467 दिनांक 5.8.2016
22) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक /मा.चि. / 3224 दिनांक 10.5.2018
23) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक / मा.चि./5637 दिनांक 4.8.2018
24) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक / तक अ./6543 दिनांक 20.09.2018
25) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक/तक.अ./2598 दिनांक 12.04.2019
26) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक / तक.अ. / 4879 दिनांक 06.08.2019
27 ) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक / तक.अ./ 6901 दिनांक 31.10.2020
28) इस कार्यालय का पत्र क्रमांक/ तक.अ./ 6314 दिनांक 8.10.2021
29) भारत सरकार पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नई दिल्ली के पत्र F No.5-3/2011- FC(Vol-I) दिनांक 19.01.2022
30) इस कार्यालय का पत्र क्र./4735 दिनांक 18.08.2022
31) आपका पत्र दिनांक 29.08.2022
वर्ष 2009 से स्मरण पत्र लिखा जा रहा है। लगातार स्मरण पत्र लिखने वाले वनविभाग द्वारा बार-बार मेंशन किए जाने पर भी बालको प्रबंधन को कोई टेंशन नहीं आता, यह अपने आप में अद्भुत है। क्या बालको प्रबंधन को आशा है कि हर बार की तरह वसूली के इस विषय पर भी कोई न कोई रास्ता भविष्य में निकल जायेगा ? कुल एक अरब बाईस करोड़ चौदह लाख सत्ताईस हजार तीन सौ पंचानवे रुपये वनविभाग कोरबा को बालको से वसूली करने हैं और पत्राचार का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।
कुर्की करने पर ही वसूली संभव
जहां पर सामान्य लोगों की बात आती है, वहां वनविभाग तत्काल द्वारा ही संज्ञान लेकर संबंधित संपत्ति को जप्त करने के साथ ही नीलामी की कार्यवाही शुरू कर दिया जाता है लेकिन बालको के प्रकरण में पता नहीं क्यों वनविभाग के हाथ कांपते हैं। जब तक संपत्ति कुर्क कर नीलामी की कार्यवाही की प्रक्रिया में वनविभाग कड़े कदम नहीं उठाए जाएंगे तब तक वसूली असंभव है।
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ये है मूल प्रकरण
माननीय उच्च न्यायालय, छत्तीसगढ़ बिलासपुर में दायर रिट पिटीशन क्रमांक- 5328/1996 ” बाल्को विरूद्ध छत्तीसगढ़ शासन राजस्व विभाग, कलेक्टर बिलासपुर एवं तहसीलदार कोरबा में पारित आदेश दिनांक 06.02.2009 तथा माननीय उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ बिलासपुर में दायर रिट अपील क्रमांक 69/2002 “छत्तीसगढ़ शासन राजस्व विभाग विरुद्ध बाल्को” में पारित आदेश दिनांक 25.02.2010 के पालन में तत्कालीन वनमंडलाधिकारियों द्वारा बाल्को को 947.95 एकड़ वन भूमि के लिये वैकल्पिक वृक्षारोपण की राशि एवं प्रत्याशा मूल्य की राशि जमा करने के लिए कई बार स्मरण पत्र लिखकर वनविभाग ने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली लेकिन किसी तरह की कठोर कार्यवाही करने में हाथ आज भी कांप रहे हैं।
21000 करोड़ रुपए का महादान करते मालिक अनिल अग्रवाल की छवि धूमिल कर रहा प्रबंधन..
उल्लेखनीय है कि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मालिक अनिल अग्रवाल सामाजिक क्षेत्रों में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करने में सबसे आगे रहते हैं और इस कड़ी में उनके द्वारा वैश्विक परिदृश्य में महान-महान सराहनीय कार्य किए समय-समय पर किए जाते रहे हैं। वही दूसरी ओर बालको प्रबंधन द्वारा निर्णय लेने में लगातार देरी करने के कारण वनविभाग में 10% की दर से ब्याज जोड़ा जा रहा है। ऐसा प्रबंधन जो वर्ष 2009 से अभी तक एक भी निर्णय वनविभाग के क्रमवार जारी 14 वर्षों के पत्रों में मात्र एक ही बार जवाब दे पाएं..?
14 वर्षों में बालको प्रबंधन में लगातार बदलाव हुए हैं, बड़ी परियोजनाओं पर मंथन हुआ है लेकिन एक पत्र की वसूली करने संबंधी नोटिस पर कोई मंथन नहीं..!! प्रश्न उठताहै कि क्या वनविभाग के लोगों की जेबों में ये रुपये जा रहे थे..उत्तर है नहीं। वस्तुतः एक अरब से अधिक की राशि का व्यय पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ही होना है। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बालको प्रबंधन भी काम करने के प्रेस नोट अक्सर जारी करता रहा है। इस प्रकार के प्रकरणों को अनावश्यक उलझाने से मालिक अनिल अग्रवाल की छवि भी धूमिल होती है, प्रबंधन को इस बात का भी विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।
तो ऐसे डूब जाएंगे शासन के एक अरब बाईस करोड़ चौदह लाख सत्ताईस हजार तीन सौ पंचानवे रुपये
आगे बीच मे ऐसी कोई बात तकनीकी रूप से सामने आ जायेगी कि 1,22,14,27,395/- रुपयों की वसूली कभी नहीं हो पाएगी क्योंकि पूर्व में भी कई बार ऐसी स्थिति निर्मित हुई है कि समय रहते उचित कार्यवाही नहीं करने के कारण प्रकरण हाथों से पूरा ही छूट गया और ऐसा छूटा कि दोबारा कभी अवसर भी नहीं मिला। न्यायालय द्वारा अवसर ही समाप्त कर दिया गया।