कौशल सिखला : भारत में लोकतंत्र.. गार्गी ने याग्वल्क्य को,भारती ने शंकराचार्य को और…

लोकतंत्र की बात करें तो भारतवर्ष तो है ही जन्मजात लोकतंत्र!
स्वरूप भले ही कुछ बदले रहे हों !
न होता तो सतयुग में राजा हरिश्चंद्र ने श्मशान पर उनके पुत्र का शव लेकर आई अपनी पत्नी से कर के रूप में आधी साड़ी का पल्लू न मांग लिया होता !
न होता तो त्रेता युग में सौतेली मां की आज्ञा से राम वन न गए होते !

लोकतंत्र न होता तो द्वापर में संपूर्ण साम्राज्य के अधिकारी भीष्म पितामह अविवाहित रहने का वचन न निभाते !
कलयुग के राजकुमार गौतम राजपाट त्यागकर गौतम बुद्ध न बन गए होते !
लोकतंत्र था तभी तो एक धोबी की भी सुनी गई , केवट को गले लगाया गया , जामवंत के आदेशों का पालन किया गया , राम के साथ भाई और पत्नी भी वनगमन कर गए और भी न जाने क्या क्या !

आर्यावर्त भारतवर्ष का लोकतंत्र राजशाही में निहित था । राम चाहते तो अकेले ही रावण और उनकी सेना को मार डालते । लेकिन उन्होंने प्रजा को साथ लिया और सुग्रीव के नेतृत्व में युद्ध लड़ा । कृष्ण चाहते तो रण होता ही नहीं । लेकिन उन्होंने यह अधिकार प्रजा पर छोड़ा और जन जन का महाभारत होने दिया। लोकतंत्र के लिए न जाने कब से संघर्ष हो रहा है ।

लोकतंत्र स्थापना के लिए क्रांतिकारियों ने दुनियाभर पर राज करने वाली ब्रिटिश सत्ता को घुटनों पर लाकर दम लिया । शिवाजी , प्रताप , भगत सिंह , लक्ष्मीबाई , चंद्रशेखर आज़ाद आदि न जाने कितने रणबाकुरों ने लोकतंत्र की स्थापना के लिए अपने प्राणों को उत्सर्ग कर दिया । भारतवर्ष आदिकाल से लोकतंत्र है । तभी गार्गी याग्वल्क्य को हरा देती है , भारती शंकराचार्य को और सावित्री यमराज को । हमारा लोकतंत्र सदा सुरक्षित और संरक्षित रहा है ।

लोकतंत्र की सबसे बड़ी रक्षक हमारी जनता है , आज से नहीं , लाखों सालों से है । ऐसे में यदि कोई सात समुंदर पार जाकर कहता है कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है तो उसकी बुद्धि पर तरस आता है , संगठन पर शर्म आती है । भारत तो सदा सदा से लोकतंत्र का रक्षक रहा है । तभी तो हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र कहलाते हैं । खोजिए , हमारी राजशाही के लोकतंत्र को ।

पृथ्वीराज चौहान लोकतांत्रिक न होते तो सत्रह बार गजनवी को हराकर भी जिंदा न छोड़ देते । जन जन का मान जितना भारत में रहा , कहीं नहीं रहा । लोकतंत्र की मूल इकाई है जन । जन ही जनतंत्र है , लोकतंत्र है । जन ही तो है जिसके लिए गुरु रविंद्रनाथ टैगोर सौ बरस पहले जन गण मन गा रहे थे । भारत के लोकतंत्र की रक्षा हम खुद करना जानते हैं । आप बेवजह विदेशी धरती पर ” हैल्प हैल्प ” मत चिल्लाइए ? जमाना आप के चिंतन पर हंस रहा है ?

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