सुरेंद्र किशोर : यदि बदले की भावना से ही जांच हो रही है तो नवीन पटनायक और नीतीश कुमार के यहां एजेंसियां क्यों नहीं जा रही हैं ?
देश में यह शोर मचा हुआ है–केंद्र सरकार,सी.बी.आई.और इ.डी.बदले की भावना से अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ अभियान चला रहे हैं।
अरे भई !
तथाकथित बदले की इस कार्रवाई में नवीन पटनायक और नीतीश कुमार क्यों लगातार मुक्त रहते जा रहे हैं ? !!
जबकि नवीन पटनायक ने अपने मंत्रिमंडल से भाजपा के मंत्रियों को निकाल बाहर कर दिया था।
नवीन से बदला लेने का तो भाजपा का ‘हक’ बनता था।
इधर नीतीश कुमार ने तो बारी -बारी से दो बार अपने मंत्रिमंडल से भाजपा मंत्रियों को हटाया।
नीतीश कुमार से बदला लेने का तो भाजपा का ‘डबल हक’ बनता था।
नीतीश कुमार के पाला बदलने से तो बिहार में भाजपा की अगली जीत भी अनिश्चित सी हो गई है।
मेरी समझ से इसके बावजूद नवीन और नीतीश के घर जांच एजेंसियां इसलिए नहीं जा रही हैं क्योंकि इन दो नेताओं पर नाजायज तरीके से करोड़ों-अरबों रुपए बनाने का कोई आरोप नहीं है।
यानी एजेंसियां उनके यहां ही जा रही हैं जिनके यहां जाने का जांच एजेंसियों को आधार ठोस मिला हुआ है।
सच कहें तो सन 2024 में पूरे प्रतिपक्ष की ओर से नीतीश कुमार को ही नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रधान मंत्री का उम्मीदवार होने का हक बनता है –राजनीतिक,प्रशासनिक और व्यक्तिगत ईमानदारी की दृष्टि से हक।
ऐसा होता तो प्रतिपक्ष को मोदी के खिलाफ एक प्रतिष्ठित राजनीतिक आधार मिलता।
नीतीश कुमार,नरेंद्र मोदी की तरह ही ईमानदार हैं और परिवारवाद से मोदी की तरह ही दूर है।
किंतु लगातार जांच एजेंसियों को झेलने वाला प्रतिपक्ष यह काम नहीं करेगा।यानी,नीतीश को आगे नहीं करेगा।
क्योंकि उसके सामने यह भी खतरा है कि प्रधान मंत्री बन जाने के बाद चरण सिंह और चंद्रशेखर की तरह केस उठाने से नीतीश कुमार इनकार कर सकते हैं।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सन 2024 में किसे केंद्र की सत्ता मिलेगी।
मैं तो सिर्फ एक प्रतिष्ठित चुनाव मुकाबले की बात कर रहा हूं।
यदि प्रतिपक्षी दलों के बीच बहुत बड़ी एकजुटता इस बीच न हो जाए तब तो मोदी का पलड़ा ही फिलहाल भारी लगता है।